इफ़्तिख़ार कोलकाता आए थे गायक बनने बन गए अभिनेता

Story by  जयनारायण प्रसाद | Published by  [email protected] | Date 23-02-2024
Birthday special: Iftikhar came to Kolkata to become a singer and became an actor.
Birthday special: Iftikhar came to Kolkata to become a singer and became an actor.

 

जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता

यह वर्ष 1936 के आखिरी दिनों का वाकया है. तब इफ़्तिख़ार अभिनेता नहीं बने थे. कलकत्ता में तब अच्छी फिल्में बनती थीं. गायक कुंदनलाल सहगल (केएल सहगल) का उन दिनों कलकत्ता में बड़ा क्रेज़‌ था. वे अभिनय भी करते थे. फिल्मों में गाते भी थे. कुंदनलाल सहगल की आवाज़ का असर तब पूरे देश में था. उनकी जादुई आवाज़ इंडियन ग्रामाफोन कंपनी में तब सिर चढ़कर बोलती थीं.

 'बाबुल मोरा नैहर छूटो जाएं...' गाना हरेक की जुब़ान पर था. यह कुंदनलाल सहगल का ही गाया हुआ गाना है. फिल्म थीं 'स्ट्रीट सिंगर. वर्ष 1938 में आई थीं. इसमें कुंदनलाल सहगल ने डूबकर अभिनय भी किया था. गाना भी गाया था.'स्ट्रीट सिंगर' का निर्देशन फनी मजुमदार ने किया था. तब के नामी डॉयरेक्टर थे फनी मजुमदार.
 
सहगल की आवाज़ का असर था, इफ़्तिख़ार कलकत्ता आ पहुंचे

अपनी गायिकी को आज़माने के लिए एक रोज़ इफ़्तिख़ार कलकत्ता आ पहुंचे ऑडिशन देने. इफ़्तिख़ार, दरअसल कुंदनलाल सहगल की आवाज़ के दीवाने थे. एचएमवी वालों का कलकत्ता में तब बड़ा नाम था. संगीतकार कमल दासगुप्ता एचएमवी के प्रमुख थे. 
 
कोई दस-बारह युवक ऑडिशन देने पहुंचे थे उस रोज़. उसमें  एक इफ़्तिख़ार भी थे. पहली नज़र में इफ़्तिख़ार के व्यक्तित्व और आवाज़ ने संगीतकार कमल दासगुप्ता को मोह लिया. बाकी युवक छांट दिए गए. उसके दो-तीन हफ़्ते बाद इफ़्तिख़ार का एल्बम निकला . इफ़्तिख़ार कलकत्ता से ‌लेकर बंबई तक छा गए.
 
इफ़्तिख़ार को पहली फिल्म

 इफ़्तिख़ार की आवाज़ ‌और उनकी पर्सनैलिटी ने ऐसा असर डाला कि महज़ 20 साल की उम्र में पहली फिल्म मिल गई.  फिल्म थी 'कज्ज़ाक की लड़की' (1937).रेनबो फिल्म्स के बैनर तले बनीं  'कज्ज़ाक की लड़की' के तीन निर्देशक थे. पहले वाले का नाम था के. सरदार, दूसरे थे सुल्तान मिर्ज़ा. तीसरे थे एस बर्मन. इफ़्तिख़ार इस फिल्म में लीड रोल में थे. फिल्म 'कज्ज़ाक की लड़की' रिलीज़ हुई थीं 25 जून, 1937 को.
 
रौबदार आवाज़ और दमदार नाक-नख्श 

 इफ़्तिख़ार की रौबदार आवाज़ और दमदार नाक-नख्श की वज़ह से उसे फौरन दूसरी फिल्म भी मिल गई. नाम था 'फैशनेबल वाइफ' (1938). धीरुभाई देसाई ने इसे डॉयरेक्टर किया था. इसके बाद इफ़्तिख़ार को तीसरी फिल्म भी मिली 'तकरार' (1944).
 
 'तकरार' के निर्देशक थे हेमेन गुप्ता. फिल्म 'तकरार' में मोतीलाल, जमुना, तुलसी चक्रवर्ती और इफ़्तिख़ार की मुख्य भूमिका थी. हेमेन गुप्ता हिंदी और बांग्ला दोनों जुबान में फिल्में बनाते थे. 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस' और 'काबुलीवाला' हेमेन गुप्ता की तब खूब चली हुई फिल्में थीं. हेमेन गुप्ता वर्ष 1914 में झारखंड में पैदा हुए. उनका निधन बंबई में मई, 1967 में हुआ.
 
इफ़्तिख़ार का पूरा नाम यह था 

अभिनेता इफ़्तिख़ार का पूरा नाम था इफ़्तिख़ार अहमद ‌शरीफ़. चार भाई और एक बहन में इफ़्तिख़ार सबसे बड़े थे. इफ़्तिख़ार का जन्म जालंधर (पंजाब) में  22 फरवरी, 1920 को  और इंतक़ाल  4 मार्च, 1995 को बंबई में. तब उनकी उम्र  75 साल थीं. इफ़्तिख़ार के सभी रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए थे.
 
बचपन कानपुर में बीता  

इफ़्तिख़ार के अब्बा कानपुर में नौकरी करते थे. कानपुर में उनका बचपना बीता. बड़े हुए तो इफ़्तिख़ार लखनऊ आ गए. मैट्रिकुलेशन करने के बाद लखनऊ के एक आर्ट स्कूल से पेंटिंग में डिप्लोमा किया और कलकत्ता आ गए. 
 
 सहगल न होते, तो इफ़्तिख़ार कलकत्ता नहीं आते

यह गायक कुंदनलाल सहगल थे, जिनकी आवाज़ ने इफ़्तिख़ार पर जादू कर दिया था. कहते हैं कि इफ़्तिख़ार सोते-जागते केएल सहगल के गानों को हमेशा गुनगुनाते रहते थे. बहुत कम लोगों को मालूम है गायक कुंदनलाल सहगल का आखिरी समय जालंधर में बीता.
 
उनकी मौत भी जालंधर में ही हुई. यह महज़ संयोग है. कुंदनलाल सहगल की पैदाइश जम्मू की थीं. सहगल जम्मू में 11 अप्रैल, 1904 को पैदा हुए. मौत जालंधर में 18 जनवरी, 1947 को हुईं.
 
इफ़्तिख़ार ने की थी यहूदी लड़की से शादी

अभिनय की दुनिया से छह दशकों तक जुड़े रहे इफ़्तिख़ार ने कलकत्ता में यहूदी लड़की से प्यार किया. उस युवती का नाम था हन्नाह जोसेफ़. हन्नाह जोसेफ़ ने बाद में इस्लाम धर्म अपनाया. वह हन्नाह जोसेफ़ से हिना अहमद हो गई. उससे अभिनेता इफ़्तिख़ार को दो खूबसूरत बेटियां हुईं. सलमा और सईदा.सईदा बाद में कैंसर से गुजऱी
 
न्यू थिएटर में  अभिनेता अशोक कुमार से हुआ परिचय

उन‌ दिनों कलकत्ता के न्यू थिएटर स्टुडियो का बड़ा नाम था. तब एक से बढ़कर एक फिल्में कलकत्ता में  बनती थीं.  न्यू थिएटर स्टुडियो में अभिनेता अशोक कुमार भी तब अभिनय करते थे. एक रोज़ इफ़्तिख़ार से अशोक कुमार की मुलाकात हुई. आवाज़ और पर्सनैलिटी ने अशोक कुमार पर  अच्छा असर डाला.इफ़्तिख़ार को बंबई आने को कहा. इस तरह हुई बॉलीवुड में अभिनेता इफ़्तिख़ार की एंट्री.
 
 चार सौ से ‌ज्यादा फिल्मों में किया काम

बॉलीवुड में रहते हुए अभिनेता इफ़्तिख़ार ने 400से ज्यादा फिल्मों में तरह-तरह का किरदार निभाया. पुलिस कमिश्नर और पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में इफ़्तिख़ार दर्शकों को ज्यादा अच्छे लगते थे. उनकी बेहतरीन फिल्मों में श्री420 (1955), देवदास (1955), जागते रहो (1956), अब दिल्ली दूर नहीं (1957), दिल्ली का ठग (1958), प्रोफेसर (1962), बंदिनी (1963), संगम (1964), शहनाई (1964), दूर गगन की छांव में (1964), गाइड (1965), फूल और पत्थर (1966), तीसरी मंजिल (1966), तीसरी कसम (1966) साजन‌ (1969), प्रेम पुजारी (1970), जंजीर (1973), पत्थर और पायल (1974), बेनाम (1974), दीवार (1975), शोले (1975), साजिश (1975), जानेमन (1976), विदेश (1977), एजेंट विनोद ( 1977), डॉन (1978), त्रिशूल (1978), अंखियों के झरोखे से (1978), सुरक्षा (1979)‌ और महान (1983) है.
 
गोविन्द निहलानी के धारावाहिक 'तमस' (1988) में भी इफ़्तिख़ार ने ‌शानदार अभिनय किया था.
 
अंग्रेजी फिल्मों में भी  किया अभिनय

जेम्स आइवेरी निर्देशित अंग्रेजी फिल्म 'बांबे टॉकी' (1970) में इफ़्तिख़ार ने अभिनय किया था. फिल्म में मुख्य भूमिका शशिकपूर और उनकी पत्नी जेनिफर केंडल की थीं. इसके अलावा रोलांड जोफे निर्देशित अंग्रेजी फिल्म 'सिटी ऑफ ज्वॉय' (1992) में भी अभिनेता इफ़्तिख़ार (हजारी के पिता बने थे) ने  खास भूमिका निभाई थीं.