अरब डायरी : ट्यूनीशिया से इराक तक: सिनेमा में आतंक के खिलाफ आवाज़

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-12-2024
Arab Diary: From Tunisia to Iraq: Voice against terror in cinema
Arab Diary: From Tunisia to Iraq: Voice against terror in cinema

 

ajit rayअजित राय

जेद्दा, सऊदी अरब से

सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई कई फिल्में मध्य पूर्व देशों में इस्लामिक स्टेट ( आईएसआईएस) के नृशंस आतंकवाद का सीधा सिनेमाई प्रतिरोध करती है. ऐसे मामलों में उन देशों की सरकारें अक्सर मौन साध लेती हैं. ट्यूनीशिया के लुत्फी अचूर की फिल्म ' रेड पाथ ' ऐसी ही सच्ची घटनाओं पर आधारित है.

पिछले साल ट्यूनीशिया की ही महिला फिल्मकार कौथर बेन हनिया की फिल्म ' फोर डॉटर्स ' काफी चर्चित हुई थी जिसमें इस्लामिक स्टेट द्वारा भोली भाली मुस्लिम लड़कियों के ब्रेन वाश और यौन शोषण को मार्मिक तरीके से उजागर किया गया था.

 ट्यूनीशिया के लुत्फी अचूर को उनकी साहसिक फिल्म ' रेड पाथ ' के लिए चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में बेस्ट डायरेक्टर ( दस हजार डॉलर) और बेस्ट फिल्म का गोल्डन यूसर अवार्ड ( एक लाख डालर) प्रदान किया गया.

जूरी के अध्यक्ष बॉलीवुड के मशहूर अश्वेत फिल्मकार स्पाइक ली ने इस अवार्ड की घोषणा करते हुए कहा कि ' रेड पाथ ' एक असाधारण फिल्म है जो हमारे समय की एक बहुत बड़ी समस्या को उजागर करती है. फिल्म के निर्देशक लुत्फी अचूर ने कहा कि जब इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने दूसरे भाई की भी हत्या कर दी तो उन्होंने इस फिल्म को बनाने का दृढ़ निश्चय कर लिया.

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बड़े भाई को वे पहले ही मार चुके थे और लोगों में डर फैलाने के लिए उसके दोनों हाथ पीछे बांधकर घुटनों पर बैठा के सिर काटने का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल चुके थे.' रेड पाथ ' उत्तरी ट्यूनीशिया के पहाड़ी इलाकों में भेड़ चराने वाले गडरिया समुदाय के एक दस साल के बच्चे अशरफ की घायल मनोदशा की असाधारण यात्रा है.

अशरफ और उसका चचेरा बड़ा भाई नाजिर एक पहाड़ी गांव में अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. वे रोज पहाड़ों और जंगल में भेड़ चराने जाते हैं और नदियों में खूब मौज मस्ती करते हैं. वे दोनों भाई इस बात से अनजान हैं कि उनके पहाड़ों में इस्लामिक स्टेट ने अपना डेरा जमा रखा है.

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नाजिर अपने गांव की ही एक लड़की से प्रेम करता है और जल्दी ही दोनों की शादी होने वाली है.  एक दिन जब ये दोनों भाई नदी में नहा रहे होते हैं कि अचानक इस्लामिक स्टेट के लड़ाके इन्हें पकड़ लेते हैं और अशरफ के सामने हीं उसके भाई का सिर काट देते हैं. अपने धारदार हथियार की जांच के लिए पहले वे एक भेड़ का सिर काटते हैं.

वे अशरफ को नाजिर का कटा हुआ सिर थैले में डाल कर घरवालों तक पहुंचाने का हुक्म देते हैं. यह एक दिल दहला देने वाला दृश्य है. अब नाजिर के पिता की समस्या यह है कि उसके धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार कैसे करें जब तक कि उसका बाकी शरीर नहीं मिल जाता. उसका पिता गांव वालों के साथ जंगल में नाजिर की सिर कटी लाश को अशरफ की मदद से खोजने निकलता है.

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आश्चर्य है कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन इन गांव वालों की कोई मदद नहीं करते.इस वार जोन में अशरफ के बाल मन पर हमेशा के लिए एक सदमा चस्पा हो जाता है. नाजिर की प्रेमिका उसे संभालने की कोशिश करती हैं. अशरफ को बार-बार नाजिर का भूत दिखाई देता है और वह उससे बात करता है.

फिल्म उसकी मानसिक यात्रा को बखूबी उभारती है. सच तो यह था कि बाद में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी अशरफ को भी मार देते है लेकिन निर्देशक ने यहां सिनेमाई छूट लेते हुए कहानी बदल दी है. फिल्म में दिखाया गया है कि अशरफ के पिता उसे शहर के बोर्डिंग स्कूल में भेज रहे हैं.

अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि एक बंद गाड़ी में अशरफ अपने सामान के साथ शहर के लिए प्रस्थान करता है. नाजिर की प्रेमिका उसके पीछे-पीछे दौड़ती है और गाड़ी से उड़ने वाली धूल में गुम हो जाती है. शायद वह अशरफ से आखिरी बार कुछ कहना चाहती है.

इराक के उदय रशीद की जादुई यथार्थवादी फिल्म ' सांग्स आफ आदम '  को बेस्ट पटकथा का अवार्ड ( दस हजार डॉलर) मिला. इसकी पटकथा भी उदय रशीद ने हीं लिखा है.दस साल का बच्चा आदम अपने छोटे भाई अली के साथ अपने दादा की लाश को दफनाने से पहले नहलाते हुए देखता है.

यह इराक के एक सुदूर गांव में 1946 का समय है. उसकी चचेरी बहन इमान को यह सब देखना मना है क्योंकि वह एक लड़की है और इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता. इस दृश्य को देखकर आदम को कुछ आध्यात्मिक अनुभूति होती है और वह अचानक ऐलान करता है कि उसे बड़ा नहीं होना है.

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उसी क्षण उसकी उम्र ठहर जाती है. गांव वालों को लगता है कि उस पर बुरी आत्मा का साया है और उसे गांव से बाहर एक अकेले कमरे में कैद कर दिया जाता है. समय बीतता रहता है. 1964 में इस्लामिक स्टेट और सेना की गोलीबारी में उसके पिता की हत्या हो जाती है . पूरी फिल्म एक दस साल के बच्चे आदम की रूहानी नजर से इराक के धुंधले इतिहास की यात्रा है.