मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
भारत में मुस्लिम समुदाय के बच्चे स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ (ड्रॉप आउट) देते हैं. उनके सामने आर्थिक तंगी और सामाजिक रुकावट सबसे ज्यादा होती है. बहुत कम लड़कों को उच्च शिक्षा मुश्किल से मिल पाती है, जबकि लड़कियों का ड्रॉप आउट स्तर और भी ज्यादा है.
हालिया दिनों में इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज की तरफ से एक रिपोर्ट स्टेटस आफ मुस्लिम ड्रॉप आउट इन कम्परेटिव पर्सपेक्टिव पेश की गई है. इस किताब को रुबीना तबस्सुम ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के शिक्षक प्रो. बृजेश की मदद से तैयार की है.
जिसमें शैक्षिक संस्थानों में मुस्लिम ड्रॉप आउट्स की स्थिति पर विस्तृत जानकारी पेश की गई है और मुस्लिम ड्रॉप आउट्स के बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं. जिसमें कहा गया है कि मुस्लिमों में स्कूल प्रवेश की दर कम हो रही है.
साथ ही उनके बीच ड्रॉपआउट्स की दर बढ़ रही है. पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत है, वहां मुस्लिम ड्रॉप आउट प्रतिशत 27.2 है, जबकि हिन्दुओं के ड्रॉप आउट का 22.0 है. बिहार में 13.9 प्रतिशत मुसलमान ड्रॉप आउट है.
इसी तरह मुसलमानों की आमदनी तो बढ़ी है, लेकिन वह शिक्षा पर फोकस नहीं कर पा रहे हैं. आजादी के बाद से मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद से कोई कम्युनिटी लीडर नहीं पैदा हुआ, जो एजूकेशन की बात करे.
इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज की तरफ से जो रिपोर्ट पेश की गई है, उसे एक किताब की शक्ल दी गई है, जिसका स्टेटस आफ मुस्लिम ड्रॉप आउट इन कम्परेटिव पर्सपेक्टिव है. रुबिया तबस्सुम इससे पहले भी दलित और आदिवासी समुदाय के ऊपर रिपोर्ट पेश कर चुकी है. रुबीना तबस्सुम के मुताबिक राष्ट्रीय स्कूल छोड़ने की औसत दर 18.96 प्रतिशत की तुलना में मुस्लिम ड्रॉप् आउट दर 23.1 प्रतिशत है.
रुबीना तबस्सुम कहती हैं कि साल 2017-18 में शिक्षा मंत्रालय ने ड्रॉप आउट 80.96 प्रतिशत निकाला था, इसमें मुस्लिम समुदाय का 23.01 प्रतिशत ड्रॉपआउट था. देश के वह राज्य जहां मुसलमान बड़ी संख्या में हैं, वहां मुस्लिम छात्र दूसरे समुदाय के मुकाबले में ज्यादा ड्रॉप आउट होते हैं.
रुबीना बताती हैं कि बंगाल, लक्षदीप, असम जैसे राज्य में ड्रॉपआउट का प्रतिशत ज्यादा है. हमारी कम्युनिटी का झुकाव औपचारिक शिक्षा में बहुत कम है. लोग शिक्षा को अहमियत दे रहे हैं, लेकिन जिस तरह देना चाहिए, उस तरह नहीं दे रहे हैं. 6-14 साल के बच्चे को, जिसको अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है, वहां तक मां बाप पढ़ाई की जिम्मेदारी उठा लेते हैं, जैसे ही बच्चा 15 साल से ऊपर जाता है, तो अभिभावक बच्चें को ड्रॉपआउट करने लगते हैं और उनको आमदनी के स्रोत्र को तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
जम्मू कश्मीर में मुसलमानों का ड्रॉप आउट ज्यादा
जम्मू व कश्मीर जहां मुसलमान बहुसंख्यक में है, वहां भी स्थिति बेहतर नहीं है. ड्रॉप आउट कुछ इस तरह है, प्री क्लास में हिन्दू 0.0, मुसलमान 0.7, ईसाई 0.0, प्राइमरी क्लास में हिन्दू 6.5, मुसलमान 5.5, ईसाई 0.0, मिडिल या अपर क्लास में हिन्दू 6.0, मुसलमान 12.8 और ईसाई 0.0, सेकेंड्री क्लास में हिन्दू 17.3, मुसलमान 25.8 और ईसाई 63.9 प्रतिशत है. वहीं हायर सेकेंड्री क्लास में हिन्दू 15.0, मुसलमान 15.4 प्रतिशत हैं.
असम में हालत बेहतर नहीं
2011 की जनगणना के मुताबिक असम में मुसलमान 34.22 प्रतिशत है, यहां भी मुसलमानों के ड्रॉप आउट चिंताजनक है. प्री एंड प्राईमरी क्लास में हिन्दू 6.0, मुसलमान 5.9 और ईसाई 28.8, प्राईमरी में हिन्दू 15.0, मुसलमान 12.5 और ईसाई 26.4, मिडिल और अपर क्लास में हिन्दू 28.0, मुसलमान 26.0 और ईसाई 30.0, सेकेंड्री क्लास में हिन्दू 25.8, मुसलमान 30.2, ईसाई 32.0, हायर सेकेंड्री क्लास में हिन्दू 13.9, मुसलमान 19.6 और ईसाई 19.2 हैं. इसी तरह पोस्ट ग्रेजुएशन में हिन्दू 11.5, मुसलमान 9.6 और ईसाई 0.0 हैं.
बंगाल में मुसलमान ड्रॉप आउट में सबसे आगे
पश्चिम बंगाल जहां 2011 जनगणना के अनुसार मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत है, वहां मुस्लिम ड्रॉप आउट प्रतिशत 27.2 है, जबकि हिंदुओं के ड्रॉप आउट का 22.0 है. झारखंड में मुस्लिम ड्रॉप आउट 15.9, हिन्दू ड्रॉप आउट 13.4 और ईसाई बच्चों का ड्रॉप आउट प्रतिशत 16.2 है. गुजरात में हिन्दू 17.1 और मुसलमान 26.4 प्रतिशत है. कर्नाटक में मुसलमान 14.1, हिन्दू 13.3 और ईसाई 6.2, केरल में मुसलमान 15.3, हिन्दू 14.4 और ईसाई 9.6 प्रतिशत हैं. तेलंगाना में मुसलमान 11.3, हिन्दू 9.4 और ईसाई 6.3 प्रतिशत हैं. दिल्ली में मुसलमान 16.2, हिन्दू 4.3 और ईसाई 8.3 प्रतिशत हैं. उत्तर प्रदेश में मुसलमान 8.2, हिन्दू 6.1 और ईसाई 17.2 प्रतिशत हैं. बिहार में मुसलमान 13.9, हिन्दू 9.7 और ईसाई 14.7 प्रतिशत हैं.
ड्रॉप आउट का कारण आर्थिक
वह आगे कहती हैं कि आर्थिक तंगी भी ड्रॉपआउट की बड़ी वजह है. उनके मुताबिक जिनके घर की आमदनी 1231-1700 महीने है, वहां प्राईमरी से मिडिल क्लास तक 23.0 प्रतिशत मुसलमान बच्चे ड्रॉप आउट हो रहे हैं, जबकि हिन्दुओं में ये 18.7 प्रतिशत है. 1700-2500 रुपये प्रतिमाह कमाने वाले परिवार के 20.8 प्रतिशत मुस्लिम, हिन्दू 17.0 ड्रॉप आउट हैं.
असम में मदरसों को बंद करने से ड्रॉप आउट बढ़ा
मुस्लिम समाज में नकाब, लड़कियों की शादी जल्दी करने से ड्रॉप आउट थोड़ा ड्रॉपआउट ज्यादा है. सच्चर कमेटी ने मुसलमानों के उत्थान के लिए जो रिपोर्ट पेश की है, उसे आज तक अमली जामा नहीं पहनाया गया.
मौजूदा सरकार ने मौलाना आजाद एजुकेशन फेलोशिप बंद कर दिया है, तो इसका असर मुस्लिम समाज पर ज्यादा होगा, कर्नाटक में बुर्का, नकाब पर पाबंदी लगाई गई है, उससे ड्रॉपआउट में इजाफा होगा. असम में जब मदरसों को बंद कर दिया गया, तो वहां ड्रॉपआउट बहुत ज्यादा हो गया. रुबीना तबस्सुम पश्चिम बंगाल के बारे में बताया कि वहां मुसलमानों का प्रतिशत 27 से ज्यादा है, लेकिन सबसे अधिक ड्रॉपआउट इसी राज्य में होता है.
मुसलमानों में कम्युनिटी लीडरशिप की कमी
स्कूलों में बच्चों के ड्रॉपआउट होने का सबसे बड़ा कारण रुबीना मुसलमानों में लीडरशिप की कमी मानती हैं. वह इस बारे में कहती हैं कि लीडरशिप बहुत कमजोर है और एजुकेशन की बात करने वाले लोग बहुत कम हैं. मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद मुसलमानों ने कोई ऐसा रहनुमा नहीं पाया, जो उसे सही रास्ता दिखा सके और भारत में मुसलमानों को शिक्षा से जोड़े. ऐसे मुसलमान लीडर नहीं हैं, जो किसी पॉलिसी में भूमिका अदा कर सकें.
भारत में मुसलमानों में 14.23 प्रतिशत बहुत गरीब हैं. मुसलमान दूसरे समुदाय की तरह कमा रहे हैं, लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई पर कम खर्च कर रहे हैं. हमें ये देखना होगा कि कहां ड्रॉपआउट हो रहा है, प्राइमरी, मिडिल क्लास में इसे कैसे रोकें.
वहीं रुबीना तबस्सुम ने ईसाई समुदाय के हवाले से बताया कि देश में उनकी आबादी बहुत कम है, लेकिन इनका पूरा फोकस शिक्षा पर है., इसीलिए इस कम्युनिटी में सबसे ज्यादा शिक्षित बच्चे हैं. मुसलमानों को भी फोकस होना और शिक्षा में निवेश होना जरुरी है.
कहां आ रही हैं बाधाएं?
मुसलमान लड़कियां दूसरे समुदाय की लड़कियों से बहुत कमजोर हैं. बच्चियां ज्यादा पढ़ लेंगीं, तो शादी नहीं होगी. लड़के कम्युनिटी में उतने पढ़े लिखे नहीं हैं. दूसरा ये कि वह बच्चियों को बाहर जा शिक्षा हासिल करने और जॉब करने की इजाजत नहीं दी जाती हैं, शादी की उम्र को लेकर फिक्रमंद होते हैं.
मुस्लिम संस्थानों को क्या करना चाहिए?
मुस्लिम बच्चों के ड्रॉपआउट को रोकने के लिए मुस्लिम संस्थानों को चाहिए कि वह लोगों को जागरूक करें. एससी और एसटी आजादी से पहले शिक्षा में मुसलमानों से बहुत नीचे थे. मगर आजादी के बाद पॉलिसी बनाई गई. उस कम्युनिटी को जागरूक किया गया, तो आज की तारीख में मुसलमान उनसे बहुत पीछे हो गए हैं. ये बात समझने वाली है. जो मुस्लिम संस्थाएं इस पर काम कर रही हैं, तो उन्हें चाहिए कि जगह-जगह शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करें. इससे होने वाले फायदे बताएं. कम्यूनिटी को थोड़ा बड़ा दिल दिखाना होगा कि अगर लड़कियां बाहर जाकर पढ़ाई कर रही हैं, कमा रही हैं, तो ये गलत नहीं है. जिस-जिस जगह मदरसा हैं, वहां मॉडर्न एजुकेशन की भी शिक्षा दी जाए, यूपी में सबसे कम ड्रॉपआउट है, उसका कारण मदरसा है, जहां लड़कियों को भी शिक्षा दी जाती है.
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