एम मिश्र / लखनऊ.
दारुल उलूम नदवातुल उलमा (नदवा) के तुलबा (स्टूडेंट) आसमानी किताब कुरान की आयतों के साथ देव भाषा संस्कृत के श्लोक भी पढ़ेंगे. अलग-अलग भाषा सीखने का शौक रखने वाले तुलबा के लिए नदवा मैनेजमेंट जल्द ही संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स शुरू करेगा.
इस्लामिक तालीम के लिए दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखने वाले लखनऊ के नदवा में छात्रों को कुरान, हदीस, इस्लामिक स्टडीज, फारसी के अलावा निसानियात यानी भाषा और पत्रकारिता विभाग में अरबी, उर्दू, अंग्रेजी के अलावा हिंदी, अंग्रेजी स्पीकिंग के कोर्स कराए जाते हैं. नदवा के सेक्रेटरी व मैनेजर मौलाना जाफर हसनी नदवी के मुताबिक तमाम स्टूडेंट संस्कृत पढ़ना चाहते हैं.
नदवा में अरबी के विद्वान रहे स्व. मौलाना हिफजुर्रहमान को संस्कृत और फ्रेंच भाषा में भी महारत हासिल थी. संस्कृत पढ़ने के शौकीन तुलबा काे वे रात आठ बजे संस्कृत पढ़ाते थे. यह सिर्फ शौकिया पढ़ाई का हिस्सा थी. पिछले साल उनका इंतकाल होने के बाद से संस्कृत पढ़ाने या इसकी जानकारी देने वाला कोई नहीं है.
ऐसे में अब डिप्लोमा कोर्स शुरू करने की तैयारी की जा रही है. इससे स्टूडेंट इस्लाम के अलावा हिंदू मजहब के मूल ग्रंथों को को भी आसानी से समझ सकेंगे. शुरू में संस्कृत का एक टीचर रखा जाएगा. स्टूडेंट की संख्या बढ़ने पर इसे पढ़ाने वालों की तादाद भी बढ़ाई जाएगी.
100 साल पहले होती थी संस्कृत की पढ़ाई
नदवा में 118 साल पहले बकायदा संस्कृत की तालीम दी जाती थी. कलकत्ता यूनिवर्सिटी से नदवा पर पीएचडी करने वाले डा. उबैद उर रहमान का कहना है कि यहां 1905 में अंग्रेजी अनिवार्य तौर पर शामिल किया गया था.
उसी दौरान यहां संस्कृत की पढ़ाई भी शुरू हुई थी. हालांकि यह अनिवार्य नहीं थी. संस्कृत के लिए दो टीचरों की नियुक्ति भी की गई थी.