राकेश चौरासिया
आजादी के समय, भारतीय मुसलमानों की शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. विभाजन के बाद के हालात, आर्थिक स्थिति और अन्य सामाजिक बाधाओं ने इस समुदाय को शिक्षा में पीछे कर दिया. ब्रिटिश शासन के दौरान मुस्लिम समुदाय को शिक्षा से वंचित रखने की नीति अपनाई गई थी. इसका परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम समुदाय के अधिकांश लोग अशिक्षित थे, लेकिन आजादी के बाद उनमें उल्लेखनीय सुधार हुआ है.
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मुस्लिम शिक्षा में सुधारों की जरूरत
मुस्लिम समुदाय के शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए भी कई योजनाएं शुरू की गईं. इनमें सरकारी स्तर पर मदरसों के आधुनिकीकरण, मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और विशेष कोचिंग क्लासेस शामिल हैं. तो एएमयू, जामिया, रहमानी-30, अजमल फाउंडेशन, इमारते शरिया आदि अर्द्धसरकारी और निजी इदारों की मदद से मुस्लिम बच्चे लोकसेवाओं और निजी क्षेत्र में कामयाब हुए हैं.
मुस्लिम समुदाय की शिक्षा में प्रगति
आजादी के बाद से मुस्लिम समुदाय ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति की है. मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ है. मुस्लिम समुदाय के लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी आगे आ रहे हैं. हालांकि, अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
मुस्लिम समुदाय की शिक्षा में कई चुनौतियां हैं. मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है. इससे मुस्लिम बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है. भारत में कई मदरसे हैं, जो इस्लामी शिक्षा देते हैं. इन मदरसों में आधुनिक शिक्षा की कमी है. मुस्लिम समुदाय के लोगों में रोजगार के लिए आवश्यक कौशल का अभाव है. मदरसों में आधुनिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें कौशल विकास से जोड़ा जाना चाहिए. शिक्षा के महत्व के बारे में समाज में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए.
मुसलमानों की शिक्षा की स्थिति
सच्चर समिति (2006) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति कमजोर है. रिपोर्ट के अनुसार, केवल 59 फीसद मुस्लिम समुदाय के लोग साक्षर थे, जो राष्ट्रीय औसत से 74.04 फीसद से कम था. मुस्लिम बच्चों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट काफी अधिक था. उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों की हिस्सेदारी भी केवल 4 फीसद थी.
दो दहाईयों में बदली सूरत
2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम समुदाय में साक्षरता दर लगभग 68 फीसद हो गई, जो पहले के मुकाबले सुधार दर्शाती है. मुस्लिम छात्रों का उच्च शिक्षा में दाखिला बढ़कर 5.5 फीसद तक पहुंच गया है. पिछले दशक में मुस्लिम महिलाओं की भी शिक्षा में रूचि बढ़ी है. 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार, मुस्लिम छात्राओं की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है.
कहां के मुसलमान आगे
भारत में मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति अलग-अलग राज्यों में काफी विविधतापूर्ण है. कुछ राज्यों में मुस्लिम समुदाय ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में यह समुदाय अभी भी चुनौतियों का सामना कर रहा है. यहाँ पर हम भारत में मुसलमानों के शैक्षिक स्तर पर राज्यवार विश्लेषण करेंगे, जिसमें सबसे अधिक साक्षरता वाले राज्यों से लेकर सबसे कम साक्षरता वाले राज्यों तक का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है.
1. केरल
राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, केरल भारत का सबसे साक्षर राज्य है, और यहां मुस्लिम समुदाय की साक्षरता दर भी सबसे अधिक है. केरल में शिक्षा के प्रति जागरूकता, सामुदायिक समर्थन और सरकारी योजनाओं के कारण मुसलमानों में पढ़ाई का स्तर अन्य राज्यों से कहीं अधिक है. राज्य में मुस्लिम साक्षरता दर 93 फीसद से भी ऊपर है, जो यह दर्शाता है कि यहाँ के मुसलमान शिक्षा में सक्रिय हैं. यहाँ मदरसे की शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी खूब लोकप्रिय है, जिससे युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिलते हैं.
2. तमिलनाडु
तमिलनाडु में मुसलमानों की साक्षरता दर भी काफी अच्छी है. यहाँ की मुस्लिम आबादी में शिक्षा के प्रति विशेष रूचि देखी जाती है, विशेष रूप से महिलाओं में. तमिलनाडु में मुस्लिम महिलाओं का शैक्षिक स्तर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है. यहाँ की साक्षरता दर 85 फीसद के करीब है. राज्य में अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक योजनाओं और छात्रवृत्तियों की उपलब्धता से यहाँ की मुस्लिम आबादी में शिक्षा का स्तर बढ़ा है.
3. महाराष्ट्र
महाराष्ट्र भी उन राज्यों में शामिल है, जहाँ मुसलमानों ने शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया है. यहाँ मुस्लिम साक्षरता दर लगभग 82 फीसद है. पुणे, मुंबई, और औरंगाबाद जैसे शहरों में मुस्लिम छात्रों के लिए कई प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं, जो उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने में मददगार साबित होते हैं. राज्य सरकार की योजनाएँ और गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग भी यहाँ मुसलमानों के शैक्षिक विकास में सहायक रहा है.
4. कर्नाटक
कर्नाटक में भी मुस्लिम समुदाय की शिक्षा का स्तर संतोषजनक है. राज्य में मुस्लिम साक्षरता दर 79 फीसद के करीब है. बेंगलुरु और मैसूर जैसे शहरों में मुसलमानों के लिए उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे अवसर उपलब्ध हैं. यहाँ की राज्य सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने अल्पसंख्यक छात्रों को शिक्षा में सहायता प्रदान करने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई हैं.
1. बिहार
बिहार में मुस्लिम समुदाय की साक्षरता दर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. यहां पर मुस्लिम साक्षरता दर लगभग 50 फीसद के आस-पास है. शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ापन, आर्थिक कमजोरियाँ और शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण हैं. सरकारी स्तर पर योजनाएँ होने के बावजूद यहाँ मुसलमानों में शिक्षा का स्तर अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है, और ड्रॉपआउट रेट भी काफी अधिक है.
2. उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम समुदाय की साक्षरता दर कम है. राज्य में मुस्लिम साक्षरता दर लगभग 56 फीसद है. शिक्षा के क्षेत्र में संसाधनों की कमी और आर्थिक रूप से पिछड़ेपन ने यहाँ की मुस्लिम आबादी को प्रभावित किया है. हालाँकि, कुछ प्रमुख शहरों जैसे अलीगढ़, लखनऊ और बनारस में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, परन्तु ग्रामीण इलाकों में अभी भी शिक्षा का स्तर काफी कमजोर है.
3. झारखंड
झारखंड में मुसलमानों की साक्षरता दर लगभग 55 फीसद के करीब है. राज्य में शिक्षा की आधारभूत सुविधाओं का अभाव और मुस्लिम समुदाय में जागरूकता की कमी से यहाँ की स्थिति चिंताजनक है. राज्य सरकार ने मुसलमानों की शिक्षा में सुधार के लिए कुछ योजनाएँ शुरू की हैं, परन्तु जमीनी स्तर पर उनके कार्यान्वयन में काफी दिक्कतें आ रही हैं.
4. राजस्थान
राजस्थान में भी मुसलमानों की साक्षरता दर कम है, जो लगभग 57 फीसद है. यहाँ की ग्रामीण मुस्लिम आबादी में शिक्षा के प्रति रूचि की कमी और आर्थिक तंगी के कारण यह समुदाय शिक्षा से वंचित रह जाता है. विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा का स्तर यहाँ और भी अधिक कमजोर है. सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, परन्तु जागरूकता की कमी के चलते उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है.
इस तरह भारत में मुसलमानों की शिक्षा के स्तर में सुधार की दिशा में कई प्रयास किए गए हैं. केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों के लिए बेहतर अवसर प्रदान किए हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड जैसे राज्यों में अभी भी चुनौतियाँ हैं. शिक्षा में सुधार के लिए न केवल सरकारी प्रयास, बल्कि सामाजिक संगठनों और मुस्लिम समुदाय के भीतर जागरूकता की भी आवश्यकता है. हालांकि राज्यवार अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारत में मुसलमानों की शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति असमान है और इसे बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है.
शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के प्रयास
पिछले कुछ दशकों में मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं शुरू कीं. प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के तहत मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज और छात्रावास का निर्माण किया गया. शिक्षा के अधिकार अधिनियम का लाभ मुस्लिम समुदाय के बच्चों को शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में मिला. मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन विशेष रूप से अल्पसंख्यक छात्रों की शिक्षा के लिए काम कर रहा है.
भविष्य की संभावनाएं
आजादी के बाद से मुस्लिम समुदाय की शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं. शिक्षा की गुणवत्ता और रोजगार के अवसरों में सुधार से मुसलमानों की स्थिति और सुदृढ़ हो सकती है. यदि सरकार और समाज के सभी वर्ग मिलकर काम करते हैं, तो मुस्लिम समुदाय की शिक्षा में सुधार लाया जा सकता है. आने वाले समय में मुस्लिम समुदाय के लोग शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक प्रगति करेंगे.