शाहताज खान / पुणे
आजादी की 75 वीं वर्षगांठ और हर घर तिरंगा अभियान को लेकर पूरा देश जश्न में डूबा है. हर कोई स्वतंत्रता दिवस की खुशियों का हिस्सेदार बनना चाहता है. मगर महाराष्ट्र के अकोला के शेख इमाम और उनके साथी पहली बार इस खास अवसर पर कुछ विशेष नहीं कर रहे हैं. वे अपने इलाके में हर स्वतंत्रता दिवस पर ऐसे आयोजन करते रहे हैं, ताकि लोग आजादी के मायने समझ सकें और खुशियां मना सकें. मगर अभी तो जैसे हर गली, मोहल्लों में आजाद के जश्न का शोर है.
शेख इमाम जब श्क्षिक के पद पर नियुक्त हुए, थे तब वह से आयोजन करते रहे है. अब वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं. बावजूद इसके ऐसे आयोजनों में वह और उनके रिटायर्ड शिक्षक मित्र भागीदार बनते रहे है.
अकोला के शेख इमाम 1970 में 15 अगस्त के जशन मनाने की तैयारियों को याद करते हुए, आवाज द वॉयस से कहते हैं कि हफ्तों पहले से हमने अपने स्कूल में भाषण. ड्रामा, देश भक्ति गीत और विभिन्न प्रकार के रंगारंग प्रोग्रामों की तैयारी शुरू कर दी थे.
पूरा स्कूल तीन रंगों से सजा दिया गया था. बच्चों में बहुत जोश होता था. मैं भी जोश से भरा हुआ था. क्योंकि , शिक्षक की हैसियत से यह मेरा पहला स्वतंत्रता दिवस था. जिसकी तैयारी के लिए, मुझे इंचार्ज बनाया गया था.
आज आजादी का 75 वां जशन मनाने की तैयारियां जोरों हैं, लेकिन यह पहली बार है कि देश में अजादी के जश्न के व्यापक माहौल को देखते हुए, शेख इमाम को खास कुछ नहीं करना पड़ रहा है.
मौजूदा माहौल को देखते हुए, उन्होंने भी अपने घर पर तिरंगा फहराया है. वह कहते हैं कि मैं और मेरे सभी रिटायर्ड टीचर इस खास दिन पर कुछ खास करने पर विचार कर रहे थे, पर अब हमने भी देश की खुशियों में शरीक होने की योजना बनाई है.
इसके अलावा वे स्कूलों व अलग-अलग जलसों में जाकर लोगों को आजादी के मायने और महत्व समझा रहे हैं. यह काम वह हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के अवसर पर करते रहे है.
बुलंदी पर लहराता रहे तिरंगा हमारा
शेख रहमान अकोलवी कहते हैं कि जब हम अपने स्कूल में 15 अगस्त की तैयारियां करते थे तो जोश और उत्साह से भरा माहौल होता था. यह सही है कि नई नस्ल को आजादी का महत्व समझाया जा.
वह कहते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज, हमारा तिरंगा देश के गौरव का प्रतीक है. आने वाली नस्लों को जब हम इसे संभालने की जिम्मेदारी दें तो उन्हें इसके महत्व की जानकारी देना भी उतना ही आवश्यक है. हाथ में ही नहीं बल्कि दिल में भी तिरंगा हो. देश के लिए, प्रेम हा.
हम सिर्फ हिन्दुस्तानी हैं
रिटायर्ड टीचर शाहिद तारिक का कहना है कि रिटायर होने से पहले तो कौमी त्योहार मनाना, उसकी तैयारी करना हमारी जिम्मेदारी थी. काम का हिस्सा था.
रिटायर होने के बाद भी हमने हर साल उसी शान से 26 जनवरी और 15 अगस्त का जश्न मनाया. वह बताते हैं कि हम सब रिटायर टीचरों ने ,ग्रुप बनाया है जिसमें हम कई प्रोग्राम करते हैं.
हमारे रहनुमा के विषय पर हम लेख और भाषण प्रतियोगिता आयोजित करते रहे हैं. यह प्रतियोगिता विभिन्न स्कूलों की सहायता से कराते हैं. जिस में बच्चे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.
मिल करें यही काम
शेख इमाम कहते हैं कि इस बार हम सब रिटायर टीचरों की डिमांड बहुत बढ़ गई है. पहले तो हमें केवल ,एक दिन यानी 15 अगस्त के दिन ही मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जाता था.
इस बार तो हमें 13 अगस्त से ही स्कूलों के विभिन्न प्रोग्रामों में शामिल होने के निमंत्रण मिल रहे हैं. कई दिन तक चलने वाले इन प्रोग्रामों में शामिल होने के कारण अब हमें बच्चों से अपने देश क गौरवशाली इतिहास की बात करने का अधिक अवसर मिलेगा.
वह बताते हैं कि मैं 2008 में रिटायर हो गया, लेकिन शिक्षा से आज भी जुड़ा हुआ हूं. जब भी अवसर मिलता है हम सभी अपने अनुभव बच्चों से साझा करते है.
कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें
शेख रहमान अकोलवी कहते हैं कि कई दिनों से प्रोग्राम चल रहे हैं. अधिकतर स्कूल के बच्चे नारे, झंडों और बैनरों के साथ प्रभात फेरियां, रेलियां और नारे लगाते हुए सड़कों पर नजर आ रहे हैं.
मैं यह भी चाहता हूं कि यह बच्चे स्वतंत्रता संग्राम में अपने जीवन की आहुति देने वाले वीरों को भी याद करें- वह इस बात को समझें कि जिस आजाद हवा में वे सांस ले रहे हैं वो कितनी मेहनत, कोशिश और बलिदानों के बाद हासिल हुई है.
शेख इमाम कहते हैं कि यह हमारा उत्तरदायित्व है कि हम नई नस्ल को यह याद दिलाते रहें कि हमें आजादी आसानी से नहीं मिली.इस के लिए देश के शूरवीरों व आजादी के मतवालों ने बलिदान देकर इसे हासिल किया है. इसे संभालने की जिम्मेदारी अब उनकी है. हम सब रिटायर टीचर नई नस्ल से उम्मीद करते हैं कि वह हमेशा रंगे का मान रखें.