जेएमआई ने सार्वजनिक नीति, शिक्षाशास्त्र, ज्ञान और संचार पर संगोष्ठी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-11-2024
JMI organizes seminar on public policy, pedagogy, knowledge and communication
JMI organizes seminar on public policy, pedagogy, knowledge and communication

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) के संस्कृति, मीडिया और शासन केंद्र (सीसीएमजी) ने "सार्वजनिक नीति: शिक्षाशास्त्र, ज्ञान और संचार" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया.उद्घाटन समारोह एफटीके सीआईटी, जेएमआई के सेमिनार हॉल में हुआ, जिसमें जेएमआई के कुलपति प्रोफेसर मजहर आसिफ और मुख्य अतिथि प्रोफेसर मोहम्मद महताब आलम रिजवी की उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष बनाया.कार्यक्रम में प्रोफेसर मुस्लिम खान, सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रोफेसर अमरजीत सिंह परिहार और मुख्य वक्ता प्रोफेसर चंद्र भूषण शर्मा सहित अन्य विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे.

संगोष्ठी के दौरान, बिस्वजीत दास, संतोष पांडा और विबोध पार्थसारथी द्वारा संपादित पुस्तकपेडागॉजी इन प्रैक्टिस’का विमोचन भी किया गया.संगोष्ठी की शुरुआत डॉ. विबोध पार्थसारथी ने की, जिन्होंने संयोजक के रूप में कार्यक्रम का परिचय दिया.कुलपति प्रोफेसर मजहर आसिफ ने अपने उद्घाटन भाषण में शिक्षा, ज्ञान और संस्कृति के महत्व पर जोर दिया, जिसमें उन्होंने पारंपरिक भारतीय ग्रंथों, पवित्र कुरान और भगवद गीता से उदाहरण देकर संगोष्ठी के केंद्रीय विषय को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया.

प्रोफेसर चंद्र भूषण शर्मा ने 'शिक्षाशास्त्र के उभरते परिदृश्य' पर मुख्य भाषण दिया, जिसमें भारत में नीति निर्माण पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण साझा किए गए और सार्वजनिक नीति, शिक्षाशास्त्र तथा ज्ञान उत्पादन पर आवश्यक हस्तक्षेपों पर चर्चा की.संगोष्ठी में विभिन्न सत्रों के दौरान, नीति अध्ययन के बदलते संदर्भों में सामाजिक विज्ञान के महत्व पर चर्चा की गई.

इसके अलावा, इस संगोष्ठी का आयोजन सीसीएमजी के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर बिस्वजीत दास की सेवानिवृत्ति के अवसर पर किया गया था.संगोष्ठी का उद्देश्य शिक्षा और सार्वजनिक नीति के बीच के संबंधों को समझना और नीति संवादों में गहरी समझ विकसित करना था.पहले दिन "शिक्षाशास्त्र और सार्वजनिक नीति" पर सत्र के दौरान प्रोफेसर अमित प्रकाश, डॉ. सरदिंदु भादुरी और प्रोफेसर बिस्वजीत दास द्वारा प्रस्तुत किए गए शोधपत्रों ने भारत में नीति अध्ययन के बढ़ते प्रभाव को स्पष्ट किया.

इसके बाद, फुरकान कमर की अध्यक्षता में "हितों और संस्थाओं" पर एक सत्र हुआ, जिसमें राजनीतिक संस्थाओं और नीति निर्माण के बीच संबंधों पर चर्चा की गई.तीसरे सत्र में "अंतर-विषयकता और नीति अध्ययन" पर महत्वपूर्ण विचार-विमर्श हुआ, जहां प्रोफेसर बाबू पी. रेमेश और वीना नारेगल ने नीति अध्ययन में अंतःविषयक सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला.

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संगोष्ठी के दूसरे दिन, जटिल नीति अनुसंधान मुद्दों पर गहरी चर्चा की गई.प्रोफेसर लॉरेंस लियांग ने "सूचना का कानूनी निर्माण" पर और डॉ. सुचारिता सेनगुप्ता ने "जलवायु राजनीति पर शोध" जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की.अंतिम सत्र में टी.के. अरुण ने "नीति का संचार" पर संबोधन दिया, जिसमें मीडिया और नीति के क्षेत्र की अंतःक्रियाओं पर जोर दिया गया.

इस संगोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक नीति एक स्थिर क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह एक विकसित अनुशासन है जिसमें निरंतर संवाद, रचनात्मक शैक्षिक दृष्टिकोण और भारत में सार्वजनिक नीति परिदृश्य के साथ निरंतर संपर्क की आवश्यकता है.अंततः, नीति अनुसंधान और शिक्षण का भविष्य अंतःविषय सहयोग में निहित है, जिससे न केवल ज्ञान का संवर्धन होगा, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी संचार भी सुनिश्चित होगा.