जमीयत उलेमा हिंद और मदनी चैरिटेबल ट्रस्ट ने 46 गैर-मुस्लिम छात्रों सहित 915 छात्रों को शैक्षिक छात्रवृत्ति प्रदान की

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-03-2025
Jamiat Ulema-e-Hind and Madani Charitable Trust provided educational scholarships to 915 students including 46 non-Muslim students
Jamiat Ulema-e-Hind and Madani Charitable Trust provided educational scholarships to 915 students including 46 non-Muslim students

 

नई दिल्ली. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने शैक्षणिक वर्ष 2024-2025 के लिए मेरिट के आधार पर चुने गए 915 छात्रों के लिए 1.6 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति जारी की है. आज यहां जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, इन छात्रों में हमेशा की तरह इस बार भी 46 गैर-मुस्लिम छात्र शामिल हैं. छात्रवृत्ति की राशि सीधे छात्रों के खातों में ट्रांसफर की जा रही है.

ज्ञात हो कि आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन मेधावी छात्रों को उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के उद्देश्य से जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने वर्ष 2012 से हर वर्ष छात्रवृत्ति प्रदान करने की घोषणा की थी. इसके लिए मौलाना हुसैन अहमद मदनी चेयर टेबल ट्रस्ट देवबंद और जमीयत उलेमा-ए-हिंद अरशद मदनी पब्लिक ट्रस्ट द्वारा एक शैक्षिक सहायता कोष की स्थापना की गई तथा शिक्षा विशेषज्ञों की एक टीम बनाई गई जो हर वर्ष योग्यता के आधार पर छात्रों का चयन करती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वर्ष बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम छात्रों ने छात्रवृत्ति के लिए आवेदन भेजे थे, जिनमें से 46 छात्रों को मेरिट के आधार पर छात्रवृत्ति के लिए चुना गया.

इसका एकमात्र उद्देश्य बुद्धिमान बच्चों को गरीबी और वित्तीय समस्याओं के कारण बिना किसी बाधा के अपनी शिक्षा यात्रा जारी रखने में सक्षम बनाना है. मौलाना मदनी ने कहा कि शिक्षा ही एकमात्र और प्रभावी साधन है जिसके माध्यम से कोई भी राष्ट्र न केवल अपनी रक्षा कर सकता है बल्कि अपने खिलाफ योजनाबद्ध दुष्प्रचार का प्रभावी जवाब भी दे सकता है. हमें यह अच्छी तरह याद रखना चाहिए कि दुनिया में केवल वही राष्ट्र प्रगति करते हैं जिनकी युवा पीढ़ी उचित रूप से प्रशिक्षित और शिक्षित होती है.

उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद धर्म के आधार पर काम नहीं करता है, बल्कि वह जो कुछ भी करता है वह मानवता और सहिष्णुता के आधार पर करता है, इसलिए इस बार भी मापदंडों पर खरा उतरने वाले छात्रों में बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम छात्र भी शामिल हैं.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा एमएचए मदनी चौरिटेबल ट्रस्ट, देवबंद के सहयोग से प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति में धर्म पर कोई प्रतिबंध नहीं है, हालांकि, यह आवश्यक है कि छात्र छात्रवृत्ति के लिए निर्धारित मानक शर्तों को पूरा करता हो.

उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे अब न केवल व्यावसायिक शिक्षा बल्कि प्रतियोगी शिक्षा में भी पूरे उत्साह के साथ आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन यह एक दुखद तथ्य है कि समग्र रूप से मुसलमान आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं, शिक्षा का खर्च बहुत बढ़ गया है, इसलिए कई बुद्धिमान और प्रतिभाशाली छात्र बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं, जिनके माता-पिता शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकते. दूसरी ओर, एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि सांप्रदायिक मानसिकता मुस्लिम बच्चों की शिक्षा में प्रगति के मार्ग में रोड़ा अटका रही है. मौलाना आजाद फाउंडेशन समेत मुसलमानों के शैक्षिक विकास के लिए चलाई जा

उन्होंने एक बार फिर कहा कि यह आरोप लगाया जा रहा है कि हम लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ हैं, जो पूरी तरह से झूठा और निराधार आरोप है. हम लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि सहशिक्षा के खिलाफ हैं, जिससे समाज में सामाजिक बुराइयां फैलने का खतरा है. दुनिया का कोई भी धर्म सामाजिक बुराइयों को फैलने की इजाजत नहीं देता.

उन्होंने कहा कि देश की आजादी के बाद हम एक राष्ट्र के तौर पर इतिहास के बहुत नाजुक मोड़ पर हैं. एक तरफ हमें तरह-तरह की समस्याओं में उलझाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक विकास के रास्ते बंद किए जा रहे हैं. अगर हमें इस साजिश को नाकाम करना है और खुशहाली हासिल करनी है तो हमें अपने बेटे-बेटियों के लिए शिक्षण संस्थान स्थापित करने होंगे.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रों का इतिहास गवाह है कि हर युग में विकास की कुंजी शिक्षा रही है. इसलिए हम एक बार फिर राष्ट्र के दानवीरों और गणमान्य लोगों से अपील करेंगे कि वे आगे बढ़कर बेटे-बेटियों के लिए अलग-अलग शिक्षण संस्थान स्थापित करें, जहां वे अपनी धार्मिक पहचान और इस्लामी तालीम के साथ-साथ बिना किसी डर और भय के शिक्षा प्राप्त कर सकें. यह कोई मुश्किल काम नहीं है. इसके लिए हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है.

मौलाना मदनी ने कहा कि ऐसे शिक्षण संस्थानों को आदर्श बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि गैर-मुस्लिम माता-पिता भी अपने बेटे-बेटियों को उनमें पढ़ाने के लिए मजबूर हों. इससे न केवल आपसी मेलजोल और भाईचारा बढ़ेगा बल्कि सांप्रदायिक तत्वों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों के खिलाफ लगातार फैलाई जा रही गलतफहमियों का भी खात्मा होगा.

मौलाना मदनी ने कहा कि हमारे बच्चों में बुद्धि और प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. हाल ही में हुए कुछ सर्वेक्षणों की रिपोर्ट से पता चला है कि मुस्लिम बच्चों में न केवल शिक्षा का अनुपात बढ़ा है, बल्कि शिक्षा के प्रति उनकी रुचि पहले से कहीं अधिक देखी जा रही है. इसलिए हमें निराश होने की जरूरत नहीं है, बल्कि अगर हम उन्हें प्रेरित करें और उनका हौसला बढ़ाएं, तो वे तौरात की राह में आने वाली हर बाधा को पार कर सकते हैं और सफलता हासिल कर सकते हैं. हमें याद रखना चाहिए कि घर बैठे कोई क्रांति हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए प्रयास के साथ-साथ त्याग भी करना पड़ता है.

मौलाना मदनी ने हाल ही में कहा कि एक तरफ जहां धार्मिक कट्टरपंथ को भड़काने और लोगों के मन में नफरत पैदा करने का नापाक अभियान पूरी ताकत से जारी है, वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों को शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से कमतर आंकने की खतरनाक साजिश भी शुरू की गई है.

मौलाना मदनी ने कहा कि पिछले कुछ सालों में देश की आर्थिक और वित्तीय स्थिति बेहद कमजोर हो गई है और बेरोजगारी खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है. हालांकि इसके बावजूद सत्ता में बैठे लोग देश के विकास का ढिंढोरा पीट रहे हैं और पक्षपाती मीडिया इस अभियान में उनका पूरा साथ दे रहा है. उन्होंने कहा कि आर्थिक और बेरोजगारी की समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए धार्मिक कट्टरपंथ का इस्तेमाल किया जा रहा है.