नई दिल्ली. तालीम को लेकर भारत का मुसलमान अब बेदार हो रहा है. सरकार ने सोमवार को बताया है कि मुसलमानों के लिटरेसी रेट में इजाफा हुआ है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि साल 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक, 7 साल और उससे ज्यादा उम्र के मुसलमानों के बीच लिटरेसी रेट 59.1 फीसदी थी, जबकि इसी आयु-समूह के लिए आल इंडिया लिटरेसी रेट 64.8 फीसदी थी. किरेन रिजीजू ने बताया कि 2011 की जनगणना के मुताबिक, 7 साल और उससे ज्यादा उम्र के मुसलमानों में लिटरेसी रेट 68.5 फीसदी थी जबकि इसी आयु वर्ग में आल इंडिया लिटरेसी रेट 73 फीसदी थी.
रीजीजू ने कहा, ‘‘इस तरह, साल 2001 में हुई जनगणना के बनिस्बत में साल 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों के बीच लिटरेसी रेट में 9.4 फीसदी का इजाफा हुआ है.’’ उन्होंने बताया कि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2023-24, के मुताबिक, साक्षरता दर 7 साल और उससे ज्यादा आयु वर्ग के मुसलमानों में लिटरेसी रेट 79.5 फीसदी थी, जबकि जबकि इसी आयु वर्ग के सभी धर्मों के लोगों की लिटरेसी रेट 80.9 फीसदी थी.
रीजीजू ने कहा, ‘‘अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने तालीम पर खास जोर देने के साथ साथ अल्पसंख्यक समुदायों के विकास के लिए एक खास रणनीति अपनाई है, जिसमें उनका सशक्तिकरण, बुनियादी ढांचा विकास, आर्थिक सशक्तिकरण, खास जरूरतों को पूरा करना और अल्पसंख्यक संस्थानों को मजबूत करना शामिल है.’’
गौरतलब है कि मुसलमानों में शिक्षा का स्तर राष्ट्रीय औसत से बेहद कम है. खासकर महिला शिक्षा और महिलाओं की उच्च शिक्षा के मामले में स्थिति और भी निराशाजनक है. हालांकि, पिछले १० सालों में इसमें सकारात्मक बदलाव देखे जा रहे हैं. बुनियादी तालीम के साथ ही आला तालीम में भी मुस्लिम लड़कियों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है.