असम में संस्कृत भाषा की पैरोकार डॉ. रेजवी सुल्ताना

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-07-2024
Dr. Rezvi Sultana of USTM
Dr. Rezvi Sultana of USTM

 

मुन्नी बेगम / गुवाहाटी

संस्कृत सहित कोई भी भाषा किसी विशेष धर्म से संबंधित नहीं है, यह मानव विकास की एक सार्वभौमिक विरासत है. डॉ. रेजवी सुल्ताना इस विचार का एक जीवंत उदाहरण हैं. एक संस्कृत विद्वान के रूप में, वह इस प्राचीन भारतीय भाषा के माध्यम से ज्ञान का प्रकाश फैला रही हैं, जिसके बारे में कई लोग सोचते हैं कि यह एक धर्म के लोगों का विशेषाधिकार है.

वह वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेघालय (यूएसटीएम) के तहत आयुर्वेदिक कॉलेज में संस्कृत की सहायक प्रोफेसर के रूप में छात्रों को संस्कृत पढ़ा रही हैं.

आवाज-द वॉयस असम से बात करते हुए डॉ. रेजवी सुल्ताना ने कहा, ‘‘जब मैंने आठवीं कक्षा में चौथे विषय के रूप में संस्कृत का अध्ययन किया, तो मेरे अंदर इस विषय के लिए एक विशेष जुनून पैदा हो गया. मेरे परिवार या समाज के किसी भी व्यक्ति ने मुझे इसे लेने से नहीं रोका.

मैंने राज्य में संस्कृत में सर्वोच्च अंकों के साथ अपनी हाई स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर मैंने कॉटन कॉलेज में दाखिला लिया और संस्कृत में दूसरे सर्वोच्च अंकों के साथ अपनी उच्चतर माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की.

मैंने 2006 में दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत हिंदू कॉलेज से सम्मान के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 2016 में एम.फिल और 2017 में गुवाहाटी विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. इसलिए मुझे लगता है कि सभी को संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि संस्कृत में जानने के लिए बहुत कुछ है.‘‘

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डॉ. रेजवी सुल्ताना कहती हैं, ‘‘आजकल, कुछ लोग संस्कृत को एक मृत भाषा मानते हैं. सच तो यह है कि ऐसे लोग इसे केवल पढ़ने के लिए पढ़ते हैं और इसकी समृद्धि और सुंदरता को समझने की इच्छा नहीं रखते हैं. हम अपने दैनिक जीवन में संस्कृत का उपयोग नहीं करते हैं, क्योंकि इसे एक मृत भाषा माना जाता है. संस्कृत एक मृत भाषा नहीं है. प्राचीन काल से ही सभी वेदों, उपनिषदों आदि में संस्कृत का प्रयोग किया जाता रहा है. वर्तमान में सीबीएससी और एसईबीए के अंतर्गत सभी विद्यालयों में विद्यार्थियों के बीच संस्कृत को अनिवार्य कर दिया गया है.’’

संस्कृत एक दिव्य भाषा है और सभी भाषाओं का मूल संस्कृत है. संस्कृत पढ़ने से हमारी भाषा शुद्ध होती है. हालांकि, वर्तमान पीढ़ी में संस्कृत पढ़ने में बहुत कम रुचि है. संस्कृत को लेकर हमारे बीच यह धारणा है कि यह वेदों और उपनिषदों की बहुत कठिन भाषा है. विद्यार्थी केवल अंक पाने के लिए इस संस्कृत विषय का अध्ययन करते रहे हैं.

संस्कृत को केवल एक विषय के तौर पर पढ़ने के बजाय समग्र रूप से आत्मसात किया जाना चाहिए, इस पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान पीढ़ी में संस्कृत पढ़ने में बहुत कम रुचि है. वे इसे एक निश्चित स्तर तक पढ़ते हैं, लेकिन बाद में छोड़ देते हैं.

ऐसी धारणा है कि वेदों और उपनिषदों में यह भाषा सबसे कठिन है. इसीलिए विद्यार्थी इस विषय का अध्ययन करते रहे हैं, क्योंकि संस्कृत गणित की तरह है और केवल श्लोक याद करके अच्छे अंक प्राप्त किए जा सकते हैं. इसलिए विद्यार्थियों की रुचि बढ़ाने के लिए श्लोक पढ़ाए जाते हैं, पंचतंत्र की कहानियां पढ़ाई जाती हैं और कुछ दैनिक गतिविधियां करने की अनुमति दी जाती है.’’

डॉ. रेजबी सुल्ताना ने कहा, ‘‘हम अपने आस-पास धर्म के नाम पर अलग-अलग राय सुनते हैं. लेकिन कुरान और वेदों में कहीं भी दूसरे धर्मों से नफरत करने के लिए नहीं कहा गया है. मैं कुरान और वेदों का अध्ययन करती हूं.

लेकिन मैंने कभी भी हिंदुओं के ईश्वर में विश्वास और हिंदुओं के ईश्वर को अलग-अलग रूपों में पूजने में कोई अंतर नहीं पाया. दूसरों के धर्म का सम्मान उसी तरह किया जाना चाहिए, जैसे कोई अपने धर्म का सम्मान करता है.’’