जामिया मिलिया इस्लामिया में भारतीय ज्ञान प्रणाली और हिंदू पहचान पर चर्चा

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 21-01-2025
 Jamia Millia Islamia
Jamia Millia Islamia

 


नई दिल्ली. जामिया मिलिया इस्लामिया 'भारतीय ज्ञान प्रणाली' की महत्वपूर्ण चर्चा में शामिल हो रहा है. सोमवार को विश्वविद्यालय में हिंदू पहचान और विविध प्रथाओं पर चर्चा की गई. विश्वविद्यालय की प्रोफेसर चारु गुप्ता ने हिंदू पहचान और उसके ऐतिहासिक विकास की बुनियादी समझ के बारे में चर्चा की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिंदू होने का विचार समय के साथ विविध प्रथाओं और व्याख्याओं से आकार लेता रहा है.  

अपनी नवीनतम पुस्तक 'हिंदी, हिंदू और इतिहास' से प्रेरणा लेते हुए प्रो. गुप्ता ने विवाह जैसे सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला. विशेष रूप से ऐसे उदाहरण जहां विवाह ने जाति की सीमाओं को पार किया है और कठोर सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी है.

जामिया मिलिया इस्लामिया के सामाजिक समावेश अध्ययन केंद्र (सीएसएसआई) ने 'विकसित भारत 2047' की दूरदर्शी पहल के अंतर्गत सोमवार को 'भारतीय ज्ञान प्रणाली' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें भारत की समृद्ध बौद्धिक विरासत के महत्व और एक स्थायी तथा समावेशी भविष्य को आकार देने में इसकी प्रासंगिकता पर मंथन हुआ.

अध्ययन केंद्र की निदेशक डॉ. तनुजा ने 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) - 2020' में उल्लिखित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर प्राचीन और आधुनिक दृष्टिकोणों के बीच की खाई को पाटने के लिए भारतीय ज्ञान के विभिन्न विषयों के व्यापक अध्ययन की बात कही. 21वीं सदी की समकालीन चुनौतियों और चिंताओं के लिए डॉ. तनुजा ने प्रामाणिक शोध और नवाचार को बढ़ावा देने की पहलों को रेखांकित किया.

कार्यशाला में जामिया मिलिया इस्लामिया के सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो. मोहम्मद मुस्लिम खान मुख्य अतिथि थे. प्रोफेसर अनीता रामपाल ने इस बात पर बल दिया कि हमारे देश में अपार विविधता के कारण भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक ही ढांचे तक सीमित नहीं रखा जा सकता.

उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों से ज्ञान को शामिल करने की बात कही. उसका जश्न मनाने के महत्व पर प्रकाश डाला, जबकि अवैज्ञानिक सोच को बनाए रखने वाले छद्म विज्ञान एवं विश्वास प्रणालियों की आलोचनात्मक व्याख्या की.

प्रो. अनिकेत सुले ने स्वदेशी ज्ञान को संजोने के महत्व पर प्रकाश डाला. साथ ही बिना सबूत के अतीत का महिमामंडन करने के खिलाफ चेतावनी दी. उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में समाज में व्यापक गलत धारणाओं को भी संबोधित किया.

उन्होंने यूनानियों, अरबों और चीनियों के साथ सूचनाओं के व्यापक आदान-प्रदान के माध्यम से ज्ञान के विकास को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष निकाला. सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन के मुताबिक भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) कोई नई खोज नहीं है, अपितु यह हमारे शास्त्रों में गहराई से निहित है.

उन्होंने इसे प्रगतिशील और समावेशी भविष्य के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए शोध और चर्चा की आवश्यकता पर बल दिया.