AMU की प्रो. सलमा अहमद ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर ग्रीन वॉशिंग के खतरे को किया उजागर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-04-2025
AMU's Prof. Salma Ahmed exposed the danger of green washing on the international platform
AMU's Prof. Salma Ahmed exposed the danger of green washing on the international platform

 

आवाज द वाॅयस/अलीगढ़

 अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के व्यवसाय प्रशासन विभाग की अध्यक्ष, प्रोफेसर सलमा अहमद ने क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, एनसीआर द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में संधारणीय विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विचार साझा किए. "संयुक्त राष्ट्र संधारणीय विकास लक्ष्यों (UN SDGs) को प्राप्त करने में स्केलेबल प्रभाव के लिए अभिनव व्यवसाय मॉडल" विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में उन्होंने विशेषज्ञों के बीच अपनी गहन अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए विशेष सराहना प्राप्त की.

पैनल चर्चा के दौरान प्रो. सलमा अहमद ने विशेष रूप से संधारणीय विनिर्माण (Sustainable Manufacturing) पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि आधुनिक औद्योगिक परिदृश्य में संसाधन-कुशल उत्पादन प्रक्रियाओं को अपनाना समय की मांग है. इसके तहत:

  • -पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए ऊर्जा दक्षता बढ़ाना,
  • -परिपत्र उत्पाद डिजाइन को बढ़ावा देना ताकि उत्पाद जीवनचक्र के अंत में पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग संभव हो सके,
  • -फाइबर-आधारित पैकेजिंग जैसी हरित विकल्पों को प्राथमिकता देना,
  • -स्थानीय सोर्सिंग को प्रोत्साहित करना ताकि कार्बन फुटप्रिंट घटे,
  • और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करने जैसे उपायों को अपनाना आवश्यक बताया.


प्रो. अहमद ने जोर देकर कहा कि यदि व्यवसाय स्थायी रूप से विकसित होना चाहते हैं, तो उन्हें उत्पादन से लेकर आपूर्ति श्रृंखला तक हर चरण में संधारणीयता के सिद्धांतों को गहराई से समाहित करना होगा.

प्रो. अहमद ने "ग्रीन वॉशिंग" (Greenwashing) की प्रवृत्ति पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की, जिसमें कंपनियां अपने उत्पादों या सेवाओं को पर्यावरण-अनुकूल दर्शाने के लिए भ्रामक या असत्यापित दावे करती हैं.

उन्होंने कहा,"सिर्फ सतही ब्रांडिंग से काम नहीं चलेगा। उपभोक्ता अब जागरूक हैं. कंपनियों को चाहिए कि वे पर्यावरणीय दावों में पारदर्शिता रखें और संधारणीयता के प्रति प्रामाणिक प्रतिबद्धता दिखाएं."

प्रोफेसर अहमद ने यह भी जोड़ा कि सच्ची संधारणीयता तभी संभव है जब कंपनियां अपने व्यावसायिक लक्ष्यों में पर्यावरणीय और सामाजिक जिम्मेदारियों को समाहित करें, न कि केवल विपणन अभियानों के माध्यम से सतही छवि बनाने की कोशिश करें.

प्रो. सलमा अहमद ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और भारतीय कंपनियों के उदाहरण देते हुए समझाया कि कैसे संसाधनों का कुशल प्रबंधन और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व अपनाने से न केवल प्रकृति की रक्षा संभव है, बल्कि दीर्घकालिक व्यावसायिक सफलता भी सुनिश्चित की जा सकती है.

उनकी बातों को पैनल के अन्य विशेषज्ञों और उपस्थित श्रोताओं ने गहन रुचि और सराहना के साथ सुना. सम्मेलन में कई युवा उद्यमियों और स्टार्टअप प्रतिनिधियों ने प्रोफेसर अहमद से मार्गदर्शन भी प्राप्त किया, जो इस बात का संकेत है कि संधारणीयता अब नए कारोबारों के लिए भी एक अनिवार्य रणनीति बनती जा रही है.

शिक्षा और अनुसंधान में संधारणीयता की भूमिका

सम्मेलन के अंत में, प्रो. अहमद ने उच्च शिक्षा संस्थानों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों को चाहिए कि वे संधारणीय व्यावसायिक प्रथाओं पर केंद्रित पाठ्यक्रम और शोध कार्यक्रम विकसित करें ताकि भविष्य के कारोबारी नेता इस वैश्विक चुनौती का समाधान ढूंढने में सक्षम बनें.

क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, एनसीआर में आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन न केवल संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को लेकर विचार-विमर्श का एक महत्वपूर्ण मंच बना, बल्कि प्रोफेसर सलमा अहमद जैसे शिक्षाविदों के विचारों ने इसमें गहराई और दिशा प्रदान की.

उनकी साफ और व्यावहारिक सोच ने यह स्पष्ट कर दिया कि संधारणीयता अब केवल एक वैकल्पिक पहल नहीं, बल्कि किसी भी सफल व्यवसाय मॉडल की केंद्रीय आवश्यकता बन चुकी है.