अजमेर. शिक्षा विभाग ने अजमेर में लंबे समय से संचालित उर्दू माध्यम स्कूलों को हिंदी माध्यम में मर्ज करने के फैसले किया है. इस पर कांग्रेस ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है. कुछ अभिभावकों ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि यह फैसला अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ है.
1941 से संचालित गवर्नमेंट प्राइमरी उर्दू स्कूल, बड़बाव और गवर्नमेंट गर्ल्स हाई प्राइमरी उर्दू स्कूल समेत आठ उर्दू माध्यम स्कूलों को अब हिंदी माध्यम में बदल दिया गया है. इसके लिए माध्यमिक शिक्षा निदेशक, बीकानेर ने 17 जनवरी 2025 को आदेश जारी किए थे. इन स्कूलों में अब उर्दू के बजाय हिंदी में शिक्षा दी जाएगी.
इस निर्णय के बाद मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जबरदस्त नाराजगी देखी जा रही है.एक अभिभावक ने कहा, ‘‘उर्दू हमारी पहचान है, इसे खत्म करना हमारी संस्कृति पर हमला है.’’
सोमवार को कांग्रेस नेता महेंद्र सिंह रलावता ने जिला कलेक्टर लोकबंधु को ज्ञापन सौंपा और इस फैसले को अल्पसंख्यक हितों के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि ‘‘यह फैसला न केवल नियम विरुद्ध है, बल्कि अल्पसंख्यक बच्चों के शिक्षा के अधिकार को भी प्रभावित करता है.’’
मुस्लिम इलाकों में उर्दू स्कूलों की अहमियत
दरगाह क्षेत्र के अंदरकोट इलाके में स्थित ये स्कूल 1941 से अल्पसंख्यक बच्चों को उर्दू माध्यम में शिक्षा प्रदान कर रहे थे. वर्तमान में इन स्कूलों में लगभग 300 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं. अभिभावकों का कहना है कि इन स्कूलों का उर्दू माध्यम में होना क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है.
इस फैसले को लेकर अभिभावकों और स्थानीय नेताओं ने राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर भेदभाव का आरोप लगाया है. स्थानीय निवासियों ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नाम ज्ञापन सौंपकर फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है.
उर्दू बने वैकल्पिक भाषा
क्षेत्रवासियों ने कहा है कि यदि यह आदेश जल्द रद्द नहीं किया गया तो बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा. उन्होंने सुझाव दिया है कि उर्दू को स्कूलों में एक वैकल्पिक भाषा के रूप में बनाए रखा जाए.