आपके लिए शाह ज़ुबैर के बारे में जानना क्यों जरूरी है

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 18-12-2021
आपके लिए शाह ज़ुबैर के बारे में जानना क्यों जरूरी है !
आपके लिए शाह ज़ुबैर के बारे में जानना क्यों जरूरी है !

 

सेराज अनवर/पटना

बिहार की सियासत में दिलचस्पी रखते हैं तो आपको शाह जुबैर के बारे में जरूर जानना चाहिए. शाह ज़ुबैर एक ऐसी शख्सियत    है जिसने बिहार की राजनीति में मुस्लिम समाज को आगे बढ़ाने में अहम किरदार निभाए हैं.

उन्हें क़ौमी एकता के प्रतीक के तौर पर भी याद किया जाता है.कांग्रेस कई दशकों तक शाह ज़ुबैर की रखी आधारशिला पर बिहार प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही. बाद में कांग्रेस बिहार की सत्ता से ऐसी बेदखल हुई कि अब तक लौटकर नहीं आई है.

कांग्रेस को बाद में शाह ज़ुबैर जैसा शिल्पकार भी उसे नहीं मिला.शाह जुबैर ने श्री बाबु से प्रसिद्ध श्रीकृष्ण सिंह को बिहार का प्रथम मुख्यमंत्री बनाने में खास रोल निभाया था. कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि यदि शाह ज़ुबैर न होते तो श्री बाबु नहीं बिहार की सियासत में नहीं चमक पातेे.

दीगर बात है कि आज शाह ज़ुबैर जैसी शख्सियत को कांग्रेस ही बिसरा गई है.उनके बारे में एक बार बीआरएम कॉलेज के प्रो. बीसी पांडेय ने कहा था कि श्रीकृष्ण सिंह को श्री बाबु बनाने वाले शाह ज़ुबैर थे .मुंगेर के स्वतंत्रता सेनानी डॉ शाह मोहम्मद  ज़ुबैर की जीवनी पर डॉ आसिफ अली ने ‘ बिलडर्स ऑफ़ मॉडर्न इंडिया ’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी है.

इसमें उनकी जंग ए आज़ादी में भूमिका और श्री बाबु की राजनीतिक यात्रा का उल्लेख किया है. पुस्तक के अनुसार, दोनों में गहरी दोस्ती थी.अंतरिम सरकार में बिहार के तीसरे प्रधानमंत्री तथा स्वतंत्र भारत में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह ख़ुद को शाह मोहम्मद ज़ुबैर का शागिर्द मानते थे.

कौन थे शाह ज़ुबैर?

बिहार के अरवल जिला के ज़मींदार ख़ानदान से ताल्लुक रखने वाले शाह मोहम्मद ज़ुबैर के पिता सैयद अशफ़ाक़ हुसैन अंग्रेज हुकूमत में मुलाज़िम थे. वह उंचे पद पर जहानाबाद में पदस्थापित थे.1904में शाह मोहम्मद ज़ुबैर पटना के  टी.के.घोष से स्कूली पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1908 में इंगलैंड चले गए.

वहां उनकी दोस्ती उन भारतीय से हुई जो अपने मुल्क को आज़ाद कराना चाहते थे.बचपन से 1857की बग़ावत  और क्रांतिकारियों की कहानियां सुनते आ रहे शाह ज़ुबैर के अंदर भी वतनपरस्ती की चिंगारी सुल उठी. इंगलैंड में रहते बार-बार ये ख़््याल आने लगा कि इतना छोटा मुल्क इतना ख़ुशहाल क्यों ?

मेरा मुल्क इतना बड़ा हो कर भी इतने छोटे मुल्क का ग़ुलाम क्यों ? इन्हीं सब सवाल को दिल में लिए बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर 1911में पटना वापस आए. उस समय टी.के.घोष स्कूल पटना और इंगलैंड से बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर लौटे लोगों ने बंगाल से बिहार को अलग करने की तहरीक छेड़ रखी थी.

इसमें अली इमाम,सच्चिदानंद सिन्हा,मौलाना मज़हरुल हक़,हसन इमाम का नाम उल्लेखनीय है. शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने भी इस तहरीक को अपना समर्थन दिया.इसके बाद वो पटना में वकालत करने लगे.अरवल में रहते थे और नाव के सहारे नहर के रास्ते अरवल से खगौल आते और फिर टमटम से पटना. यह उनकी दिनचर्या थी.

मुंगेर की बीबी सदीका से शादी

1914 में मुंगेर की रहने वाली बीबी सदीक़ा से उनकी शादी हो गई.इसके बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर मुंगेर चले गए. वहीं प्रैक्टिस शुरू कर दी.साथ ही सियासत में हिस्सा लेने लगे.इस दौरान मुंगेर ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए. श्रीकृष्ण सिंह इनके अधीन थे.

उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया .यहीं से शुरु होता है श्रीकृष्ण सिंह का सियासी सफ़र.बिहार के नामचीन समाजसेवी मसीह उद्दीन बताते हैं कि शाह ज़ुबैर उन्हें प्यार से ‘ श्री ’ बुलाते थे. उनका प्यारा सा यह उर्फी नाम अमर हो गया. आज उन्हें इसी नाम से याद किया जाता है.यानी श्रीकृष्ण सिंह को श्री बाबु का ख़िताब शाह ज़ुबैर ने ही दिया था.

आज़ादी के लिए वकालत छोड़ी

1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन के समर्थन में खि़लाफ़त दिवस मनाया गया था.इस आंदोलन के साथ ही शाह मुहम्मद ज़ुबैर ने वकालत छोड़ दी .मुस्लिम समाज पर उनका असर इस क़द्र था कि ख़ानक़ाह मुजीबिया फुलवारी शरीफ़ के प्रभावशाली लोग भी खि़लाफ़त तहरीक में कूद पड़े.

ख़ानक़ाह मुजीबिया के सज्जादानशीं शाह बदरुद्दीन ने अंग्रेजों द्वारा दिया गया शम्सुल उलेमा का खि़ताब वापस कर दिया गया.शाह सुलेमान फुलवारी शरीफ़ ने मजिस्ट्रेट और मौलवी नुरुल हसन ने लेजिस्लेटिव कौंसिल के पद से त्यागपत्र दे दिया.

जुलाई 1921में प्रिंस ऑफ़ वेल्स का पूर्ण बहिष्कार किया गया. शाह मोहम्मद ज़ुबैर के नेतृत्व में मुंगेर भी आगे आगे था.इस वजह से उन्हें नज़रबंद किया गया. फिर उन्हें, श्रीकृष्ण सिंह,शफ़ी दाऊदी, बिंदेशवरी और क़ाज़ी अहमद हुसैन को गिरफ़्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया.

गांधी ने इस गिरफ़्तारी की आलोचना की पर शाह मोहम्मद ज़ुबैर को दो साल क़ैद की सज़ा हुई. 1922में कांग्रेस का इजलास गया शहर में हुआ. स्वराज पार्टी वजूद में आई. मोती लाल नेहरु उसके नेतृत्वकर्ता थे.1923में जेल से छूटने के बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर स्वाराज पार्टी में शामिल हो गए.

उन्हें सचिव बनाया गया.1923में जिला परिषद  और नगर पालिका का चुनाव हुआ. मुंगेर ज़िला से शाह मुहम्मद ज़ुबैर जीते. वह चेयरमैन निर्वाचित हुए. श्रीकृष्ण सिंह को डिप्टी चेयरमैन बनाया गया.उस साल शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने सबसे पहले किसान सभा नाम का संगठन बनाया और  किसानों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई.वह इस संगठन के अध्यक्ष थे. श्रीकृष्ण सिंह उपाध्यक्ष.

श्रीकृष्ण सिंह की हार,शाह ज़ुबैर जीते

1925 में बिहार स्टेट सियासी कान्फ्रेंस पुरुलिया में हुई जिसमें गांधी जी भी शरीक थे.शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने इस कान्फ्रेंस की अध्यक्षता की.1926में शाह मोहम्मद ज़ुबैर कॉऊंसिल ऑफ़ स्टेट के लिए नामज़द हो कर दिल्ली पहुंचे.चार में से एक सीट उनके हिस्से आई.बाक़ी तीन से अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ.राजेंद्र प्रासाद और दरभंगा महराज कामयाब हुए.

यहां श्रीकृष्ण सिंह दरभंगा महराज के मुक़ाबले हार गए. इस बीच कांग्रेस ने मुकम्मल आज़ादी की मांग की तो शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने कॉऊंसिल ऑफ़ स्टेट से इस्तीफ़ा दे दिया.अंग्रेज़ांे ने उन्हें प्रलोभन दिया कि अगर वो साथ दें तो उन्हें ‘सर ’ का खि़ताब दिया जाएगा.

लेकिन  कोर्ट टाई पहनने वाला शख़्स अब खादी के कपड़े पहनता था.वो अब कहां बिकने वाला था. उन्होंने यह कहते हुए इससे इंकार कर दिया के मेरे पास ‘सर’ से भी बड़ा खि़ताब है और वो है गांधी का भरोसा.1927में शाह मोहम्मद ज़ुबैर साईमन कमीशन को बिहार से भगाने वाले वास्तविक सूत्रधारों में से थे.

1928में बिहार यूथ कान्फ्रेंस मुंगेर शहर में हुई. यहां सारी ज़िम्मेदारी शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने अपने कांधे पर ले ली. उन्होंने कान्फ्रेंस को कामयाब बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ी.सविनय अवज्ञा आंदोलन के समर्थन में शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने 23 अप्रैल 1930 को बड़ेहिया में ख़ुद अपने हाथ से नमक बनाया.

उनके नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने नमक तैयार करके नमक क़ानून तोड़ दिया. गोल मेज़ सम्मेलन में हिस्सा लेने इंग्लैंड जाना था, पर जेल से निकलने के बाद उनकी सेहत गिरती चली गई. 12सितंबर 1930को मात्र 46की उम्र में मुल्क की आज़ादी का ख़्वाब सीने में लिए शाह ज़ुबैर दुनिया से रुख़सत हो गए.

विडंबना यह है कि जिन्होंने श्रीकृष्ण सिंह को तराशा और जो बिहार में लंबे अर्से तक सत्ता के सूत्रधार बने, उन्हें कांग्रेस ने भुला दिया .श्रीकृष्ण सिंह की जयंती,बरसी मनायी जाती है मगर भूल से भी श्री बाबु के शिल्पकार शाह ज़ुबैर याद नहीं आते.

उर्दू के प्रो. डॉ ज़ैन शम्सी कहते हैं कि  इतिहास के पढ़ने और गढ़ने की दिशा ने भी हमारे मन को गंदा किया है. हम अपने पूर्वजों को भुलाते जा रहे हैं. ज़रूरत है कि हम इतिहास से सीखें. आज के भारत निर्माण में अपना सहयोग सुनिश्चित करें.

shah zubair

पुस्तक में ज़ुबैर की चर्चा

अगस्त में पुस्तक का लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बीसी पांडेय ने नमक सत्याग्रह में शाह ज़ुबैर के योगदान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा था कि शाह ज़ुबैर हिंदू-मुस्लिम एकता के  प्रतीक हैं. उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में कई जगहों पर यह व्यावहारिक रूप से साबित किया.पुस्तक अंग्रेज़ी में है. उन्होंने पुस्तक के लेखक डॉ आसिफ अली से कहा कि  यह पुस्तक एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है.

इसका अनुवाद हिंदी और उर्दू में भी होना चाहिए.इससे ही शाह ज़ुबैर के राजनीतिक महत्व का अंदाज़ा लगता है.पुस्तक के लेखक डॉ आसिफ अली कहते हैं कि इतिहास ने मुंगेर के इस महान नायक को भुला दिया, इसलिए हमने ये छोटी सी कोशिश की है .

अंतरिम सरकार में बिहार के तीसरे प्रधानमंत्री तथा स्वतंत्र भारत में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह ख़ुद को शाह मोहम्मद ज़ुबैर का शागिर्द मानते थे .मुंगेर शहर के ज़ुबैर हाऊस में ही श्रीकृष्ण सिंह ने सियासत सिखी.

यहीं उनकी मुलाक़ात भारत के बड़े-बड़े नेताओं से हुई.चाहे वो महात्मा गांधी हों या मोती लाल या मौलाना मोहम्मद अली जौहर. रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने गांधी के साथ मिल कर इस की मुख़ालफ़त की थी.

खि़लाफ़त और असहयोग आंदोलन  में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. तहरीक के दौरान मुंगेर की एक मस्जिद में तक़रीर करना था. काफ़ी तादाद में लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे.तब शाह मोहम्मद ज़ुबैर मस्जिद में श्रीकृष्ण सिंह का हाथ थामे दाखि़ल हुए और श्रीकृष्ण सिंह को तक़रीर करने को कहा.

श्रीकृष्ण सिंह ने मस्जिद से हिन्दु-मुस्लिम एकता,खिलाफ़त और असहयोग आंदोलन  के समर्थन में इंक़लाबी तक़रीर की, जिसकी गूंज काफ़ी दूर तक सुनाई दी और हिन्दु-मुस्लिम हर जगह मज़बूती से खड़े नज़र आने लगे. इतिहासकार डॉ श्याम कुमार के मुताबिक़,  शाह ज़ुबैर पूरे बिहार से उन चार लोगों में शामिल थे जो काउंसिल के लिए चुने गए थे.

इसमें डॉ राजेन्द्र प्रसाद,डॉ अनुग्रह नारायण सिंह, दरभंगा महाराज एवं शाह ज़ुबैर साहेब थे. इतिहासकारों ने शाह ज़ुबैर के साथ बेईमानी की. उन्हें गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया.