मुसलमान मुहर्रम क्यों मनाते हैं?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 26-06-2024
 Muharram
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राकेश चौरासिया

मुहर्रम शोक और बलिदान का महीना है. मुहर्रम, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना, शिया मुसलमानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह महीना हजरत इमाम हुसैन, हजरत हसन और उनके परिवार की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए थे.

हजरत इमाम हुसैन, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के नाती और चौथे खलीफा हजरत अली (अलैहिस्सलाम) के बेटे थे. उन्हें उमय्यद शासक यजीद प्रथम द्वारा अन्यायपूर्ण रूप से सत्ता हस्तांतरण के विरोध में आवाज उठाने के लिए कर्बला की यात्रा पर जाने के लिए मजबूर किया गया था.

कर्बला में, हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों को, जो ज्यादातर उनके परिवारजन और दोस्त थे, यजीद की विशाल सेना ने घेर लिया था. उन्होंने कई दिनों तक भूख और प्यास सहते हुए लड़ाई लड़ी, और अंत में 10 मुहर्रम को शहीद हो गए.

मुहर्रम का महत्व

मुहर्रम का महीना शिया मुसलमानों के लिए शोक और स्मरण का समय होता है. वे हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को मातम मनाकर याद करते हैं.

इस महीने के दौरान, शिया मुसलमान विभिन्न अनुष्ठानों और कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिनमें शामिल हैंः

  • मातमः वे काले कपड़े पहनते हैं, सीना पीटते हैं, और नौहे (शोक गीत) गाते हैं.
  • ताजियाः वे हजरत इमाम हुसैन और उनके शहीद साथियों के मकबरे (ताजिया) के प्रतीकात्मक जुलूस निकालते हैं.
  • मजलिसः वे धार्मिक सभाओं में इकट्ठा होते हैं, जहां वक्ता हजरत इमाम हुसैन की जिंदगी और शहादत के बारे में व्याख्यान देते हैं.
  • खैरातः वे गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और अन्य सहायता वितरित करते हैं.

मुहर्रम का संदेश

मुहर्रम का संदेश केवल शोक का ही नहीं, बल्कि बलिदान, साहस, और न्याय के लिए खड़े होने का भी है. हजरत इमाम हुसैन ने हमें सिखाया कि सच बोलने और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो, डटकर खड़ा होना महत्वपूर्ण है. मुहर्रम का महीना मुसलमानों को एक बेहतर इंसान बनने और मानवता के लिए काम करने की प्रेरणा देता है.