अंग्रेजों ने क्यों किए थे मुहम्मद एहसानुल हक अफेंदी के पैम्फलेट जब्त ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-03-2023
अंग्रेजों ने क्यों किए थे मुहम्मद एहसानुल हक अफेंदी के पैम्फलेट जब्त ?
अंग्रेजों ने क्यों किए थे मुहम्मद एहसानुल हक अफेंदी के पैम्फलेट जब्त ?

 

साकिब सलीम

"गवर्नर एतद द्वारा सोनारई, डोमार के मुहम्मद एहसानुल हक अफेन्दी द्वारा बंगाली में 'बर्तमन राजनैतिक संकट ओ मुसलमानेर करतब्या' (मुसलमानों का वर्तमान राजनीतिक संकट और कर्तव्य) शीर्षक वाले पैम्फलेट की सभी प्रतियाँ महामहिम को ज़ब्त करने की घोषणा करते हैं.

रंगपुर और काली कृष्णा मशीन प्रेस, रंगपुर में मुद्रित, इस आधार पर कि उक्त पैम्फलेट में-ऐसे पदार्थ हैं जो घृणा या अवमानना ​​करने का प्रयास करते हैं और ब्रिटिश भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को उत्तेजित या उत्तेजित करने का प्रयास करते हैं.

सरकार के मुख्य सचिव के वेलोदी ने 7अगस्त 1939को ब्रिटिश भारत के सभी प्रांतों के मुख्य सचिवों को यह लिखा था.कौन थे एहसानुल हक अफ्फंदी? इस पैम्फलेट पर प्रतिबंध क्यों लगाया जा रहा था? छह पन्नों के लंबे लेख से ब्रिटिश सरकार को डर क्यों लगा?

1857के बाद से अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ा डर हिंदू मुस्लिम एकता था. उन्होंने ऐसे 'नेताओं' को प्रायोजित किया जो साम्प्रदायिक नफरत की आग जलाते रहे और इस तरह देश को बांटते रहे. विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ने के किसी भी प्रयास को देशद्रोही के रूप में देखा गया.

एहसानुल बंगाल के एक स्थानीय कांग्रेस नेता थे जो मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ लड़ रहे थे. उन दिनों की कांग्रेस में विविध विचारधाराओं के राष्ट्रवादी शामिल थे. मार्क्सवादी, हिन्दू, मुस्लिम, समाजवादी, अकाली, हरिजन, आदिवासी आदि राष्ट्रीय एकता पर सहमत कांग्रेस के अंग थे.

पैम्फलेट आम बंगाली मुसलमानों को मुस्लिम लीग के बुरे मंसूबों के खिलाफ चेतावनी देने के लिए लिखा गया था. एहसानुल ने तर्क दिया कि कांग्रेस और हिंदुओं पर लगाए गए सांप्रदायिक आरोप निराधार हैं.

उन्होंने लिखा है कि 1888में, सर सैयद अहमद खान और उनके समर्थकों ने उलेमा से एक फतवा मांगा था कि वे मुसलमानों को पार्टी में शामिल होने से रोकेंगे.कांग्रेस का विवरण जानने के बाद, एहसानुल ने लिखा, "1888के उसी वर्ष में सैकड़ों उलेमा और सिद्ध संत जैसे इनामुल उलेमा कुतुबुल अकतब हजरत शाह राशिद अहमद गंगोही, 'दयालु संतों के परिवार' का एक उज्ज्वल नमूना, और शैखुल हिंद हज़रत मौलाना महमदुल हसन ने 'नसरतुल अबरार' नाम की किताब प्रकाशित कर इसके औचित्य का बखान किया था.

और न केवल उन्होंने इसकी औचित्य की घोषणा की बल्कि उन्होंने जीवन भर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अहिंसक सत्याग्रह भी किया. आज भी मुस्लिम जगत के सर्वमान्य गुरु हजरत नायबे, शैखुल हिंद अल्लामा मदनी, मुफ्ती-ए-हिंद अल्लामा केफयेतुल्ला, सोभनुल हिंद अल्लामा अहमद सईद, हजरत मौलाना हबीबुर रहमान, पंजाब के शेर, मुफ्ती-ए-आजम मौलाना मोहम्मद नईम लुधियानवी, मौलाना शाह अताउल्ला शाह बुखारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना सैय्यद सुलेमान नदवी और अन्य कई संत और उलेमा, धर्म के लिए विश्व प्रसिद्ध सेनानी बार-बार इसकी औचित्य की घोषणा कर रहे हैं और खुद लंबे समय से इसके साथ जुड़े हुए हैं.”

एहसानुल ने मुस्लिम लीग से पूछा कि वे कैसे दावा कर सकते हैं कि आम हिंदुओं ने आम मुसलमानों पर अत्याचार किया था. उन्होंने पूछा कि कौन मुसलमानों को शैक्षिक रूप से पिछड़ा बना रहा है, उनकी जमीनें छीन रहा है और उन्हें एक नई शिक्षा प्रणाली के साथ बदलने की कोशिश कर रहा है.

उन्होंने लिखा, "मुस्लिम, कहो, सच कहो कि वे कौन हैं. क्या वे 22करोड़ हिंदू हैं या स्वयं ब्रिटिश सरकार?"

एहसानुल ने मुस्लिम लीग पर इस्लाम के नाम पर मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप लगाया. उन्होंने टिप्पणी करते हुए निष्कर्ष निकाला, "उन्होंने (मुस्लिम लीग) इस्लाम के खतरे की दुहाई देकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरल दिमाग वाले मुसलमानों को कांग्रेस (और हिंदुओं) के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया है.

मुझे उम्मीद है कि मुसलमान हर चीज की अच्छी तरह से जांच करेंगे और फिर फैसला करेंगे. कर्तव्य और किसी भी अस्थायी उत्तेजना के प्रभाव में अपनी खुद की बर्बादी नहीं करेंगे.”

एहसानुल का अपराध गंभीर था. उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव यानी भारत के धार्मिक विभाजन पर हमला करने की कोशिश की. पैम्फलेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और साम्राज्य को बचाने के लिए इसकी प्रतियों को जब्त कर लिया गया था.