साकिब सलीम
आप उस व्यक्ति के बारे में क्या सोचेंगे जो आपको एक कहानी सुनाता है जहां एक राजा की एक बड़ी सेना ने एक व्यक्ति और उसके परिवार को बेरहमी से मार डाला.फिर यह दावा करता है कि मारा गया व्यक्ति वास्तव में लड़ाई जीत गया था? दुनिया भर के मुसलमान इस कहानी पर विश्वास करते हैं और इस दिन को हर साल मुहर्रम के रूप में मनाया जाता है.पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ खुद को बलिदान कर दिया,लेकिन सच्चाई की लड़ाई नहीं हारे.
हर साल दुनिया भर के मुसलमान कर्बला (अब इराक में) हुसैन, उनके परिवार के सदस्यों और अनुयायियों की मौत पर शोक मनाते हैं.खलीफा के पद पर अवैध रूप से कब्ज़ा करने वाले यज़ीद की एक बड़ी सेना ने 680 ई. में हुसैन और उनके परिवार को मार डाला.हुसैन पैगंबर के नवासे थे.
यजीद चाहता था कि वह अपने शासन पर कानूनी अधिकार का दावा करने के लिए उसके शासन को स्वीकार कर ले.हुसैन उसके प्रति अपनी निष्ठा नहीं रखेंगे,क्योंकि उन्होंने शासक बनने के लिए सभी इस्लामी कानूनों का उल्लंघन किया था.
यज़ीद की सेना की एक बड़ी टुकड़ी ने कर्बला में हुसैन के सौ से भी कम लोगों के समूह को घेर लिया और लगभग सभी पुरुष सदस्यों को मार डाला.हुसैन ने आत्मसमर्पण नहीं किया और अपने परिवार के साथ शहीद हो गये.
चौदह शताब्दियों के बाद भी दुनिया भर में लोग इस घटना को धोखे पर सच्चाई की जीत के रूप में याद करते हैं.एक तर्कसंगत दिमाग के लिए यह विचित्र लगता है कि हम इस घटना को अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं.जब हुसैन मारे गए,उसके बाद यज़ीद ने शासन किया तो हम जीत का दावा कैसे कर सकते हैं?
शायर मोहसिन नकवी ने लिखा, 'विक्टर ने भी खरीद लिए होंगे इतिहासकार, लेकिन इस दुनिया में हर दिन किसको याद किया जा रहा है?' निःसंदेह यजीद को इस तथ्य के अलावा कोई नहीं जानता कि उसकी सेना ने हुसैन को मार डाला था.
आपको यज़ीद नाम के आदमी नहीं मिलेंगे,लेकिन लाखों लोगों के नाम में हुसैन है.इस तरह हुसैन की जीत हुई. उन्होंने मानवता को आशा दी. उनके बलिदान ने लोगों को अत्याचारियों के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया.
कर्बला में, पैगंबर के परिवार, बूढ़े और जवान, ने सत्य की स्थापना के लिए खुद को बलिदान कर दिया; धर्म का सत्य. यह एक ऐसा धर्म है जो न्याय, करुणा, प्रेम, दयासिखाता है.अपने बलिदान से, पैगंबर के परिवार के सदस्यों ने आने वाले युगों के लिए स्थापित किया कि सत्य और झूठ के बीच लड़ाई में जीवन कोई मायने नहीं रखता.सत्य, चाहे कितना भी अकेला क्यों न हो, कभी भी शक्तिशाली अत्याचारी झूठ के सामने समर्पण नहीं करेगा.
वास्तव में उत्पीड़ित लोगों को ऐसे उदाहरणों की आवश्यकता है जो शक्तिशाली लोगों के खिलाफ खड़े हुए हों.यहां जीतना कोई मायने नहीं रखता,लेकिन झुकना नहीं सबसे साहस वाली बात मानी जाती है. यही कारण है कि भारत में लोग महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानते हैं.
वह अकबर को हरा नहीं सका,लेकिन कभी हार स्वीकार नहीं की.इसी तरह शिवाजी एक ऐसे योद्धा का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जो एक शक्तिशाली सेना के खिलाफ लड़े और कभी हार नहीं मानी.हुसैन की शहादत सर्वोच्च स्थान पर है.
उन्होंने न केवल संघर्ष किया,अपना बलिदान दिया.बल्कि अपने परिवार का भी बलिदान दिया.यह बलिदान हमें अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने का साहस देता है.जब सत्य दांव पर हो तो क्या हमें अपने जीवन की परवाह करनी चाहिए? क्या मौत हमें हरा सकती है? हुसैन की शहादत हमारे सभी सवालों का जवाब देती है.
इसीलिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद लिखते हैं, "इस बलिदान की शिक्षा हमेशा सिखाई जानी चाहिए और इस पवित्र शहादत की भावना को हर साल कम से कम एक बार याद किया जाना चाहिए."