राकेश चौरासिया
इस्लामी परंपराओं में ईद पर बकरे की कुर्बानी को त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है. ईद-उल-अजहा या ईद-उल-अधा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, जो मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है. यह हजरत इब्राहिम (अ.स.) द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल (अ.स.) की कुर्बानी देने की इच्छा की याद में मनाया जाता है.
इस त्योहार पर, मुस्लिम समुदाय कुर्बानी के रूप में जानवरों, आमतौर पर बकरों, भेड़ों या ऊंटों की बलि देते हैं. यह परंपरा हजरत इब्राहिम (अ.स.) के प्रति समर्पण और आज्ञाकारिता का प्रतीक है, जिन्होंने अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी देने की तैयारी की थी.
लेकिन, बकरीद सिर्फ जानवरों की बलि देने तक सीमित नहीं है. यह त्याग, समर्पण और ईश्वर के प्रति भक्ति का भी त्योहार है. कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है. एक तिहाई गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, एक तिहाई रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच बांटा जाता है और एक तिहाई खुद के लिए रखा जाता है.
यह त्योहार समुदायिक भावना और भाईचारे को बढ़ावा देने का भी अवसर है. लोग एक दूसरे के घरों जाते हैं, बधाई देते हैं और मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं.
बकरीद हमें सिखाता है कि हमें अपनी इच्छाओं और भौतिक सुखों को अल्लाह की इच्छा के ऊपर नहीं रखना चाहिए. यह हमें गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने और दूसरों के प्रति दयालु और उदार होने की भी प्रेरणा देता है.
कुर्बानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यः
ईद-उल-अजहा एक ऐसा अवसर है जब हम अल्लाह के प्रति अपनी आभार व्यक्त करते हैं और उनकी इच्छा के अनुसार जीवन जीने का संकल्प लेते हैं.