राकेश चौरासिया
कर्बला ऐसी भीषण त्रासदी थी कि कुछ चुनिंदा लोग ही इस जंग के बाद बच पाए थे. 10 अक्टूबर 680 को कर्बला के मैदान में हुए युद्ध ने इतिहास के पन्नों में एक काला अध्याय लिख दिया था. इस युद्ध में, इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों ने उमय्यद खलीफा यजीद की विशाल सेना का सामना किया था. यह युद्ध न केवल एक राजनीतिक संघर्ष था, बल्कि न्याय और अन्याय, सत्य और असत्य के बीच का संघर्ष भी था.
हुसैन और उनके अनुयायियों ने वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, लेकिन अंततः वे यजीद की सेना से हार गए. इस युद्ध में हुसैन सहित सभी 72 अनुयायी शहीद हो गए. लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस भीषण युद्ध से बच निकले थे.
कर्बला से बचने वालेः
जैनबः इमाम हुसैन की बहन, जिन्होंने युद्ध के दौरान महिलाओं और बच्चों का नेतृत्व किया था.
अली इब्न हुसैन (इमाम जैनुलअबदीन)ः इमाम हुसैन के बेटे, जो उस समय बीमार थे और युद्ध में भाग नहीं ले पाए थे.
अब्दुल्लाह इब्न जफरः इमाम हुसैन के चचेरे भाई, जो युद्ध में घायल होने के बावजूद बच पाने में सफल रहे.
मुहम्मद इब्न हनफीयाः इमाम अली के पुत्र, जिन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था.
कुछ महिलाएं और बच्चेः युद्ध के दौरान कुछ महिलाएं और बच्चे भी यजीद की सेना से बचने में सफल रहे थे.
कर्बला के बाद का प्रभावः
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कर्बला की घटना के बारे में विभिन्न ऐतिहासिक विवरण मौजूद हैं. कर्बला की घटना ने शिया मुसलमानों पर गहरा प्रभाव डाला. यह घटना शहादत, बलिदान और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गई. हर साल, मुहर्रम के महीने में, शिया मुसलमान कर्बला की घटना को याद करते हैं और इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत का शोक मनाते हैं.