करवा चौथ पर चांद इस बार कब निकलेगा?, पूजन सामग्री, पूजा विधि सब जानिए

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 28-10-2023
Karva Chauth puja
Karva Chauth puja

 

राकेश चौरासिया

विजयदशमी पर रावण दहन के बाद भारत के हिंदू परिवारों में करवा चौथ व्रत 2023 की तैयारियां शुरू हो गई हैं. यह त्योहार मूलतः उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में पति की दीर्घायु के लिए पत्नियों द्वारा रखा जाने वाला प्रमुख त्योहार है. धार्मिक चेतना के प्रसार के साथ अब यह त्योहार पूरे भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाने लगा है. नौकरी और व्यापार के लिए पलायन के कारण उत्तर भारतीय परिवार शेष भारत में रहने-बसने लगे हैं. इसलिए यह अब अन्य प्रांतों और अंचलों में भी मनाया जाने लगा है. उत्तरी भारतीयों में पति-पत्नी के स्नेह व करुणा भरे संबंधों के इस व्रत का महत्व जानकर अन्य अंचलों की स्त्रियों भी अक्ष्क्षुण सुहाग की कामना से इस पर्व को मनाने लगी हैं. करवा चौथ का व्रत पति और पत्नी के बीच शाश्वत बंधन की स्मृति संजोए रखने के लिए सर्वाधिक अनूठा अनुष्ठान है.

करवा चौथ अनुष्ठानः करवा चौथ कैसे मनाया जाता है? करवा चौथ का व्रत कैसे किया जाता है? पहली बार करवा चौथ कैसे करें? पहली बार करवा चौथ का व्रत कैसे किया जाता है?

यह त्यौहार दिवाली से ठीक नौ दिन पहले और हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के के अंधेरे पखवाड़े के चौथे दिन मनाया जाता है. मिट्टी के बर्तन का उपयोग करके चंद्रमा को ‘अर्घ्य’ दिया जाता हैं. इस बर्तन को करवा कहा जाता है. इस पवित्र अवसर का भव्य उत्सव एक दिन पहले से ही शुरू हो जाता है.

करवा चौथ 2023ः करवा कब पड़ता है? करवा चौथ कब पड़ता है? करवा चौथ कब है? करवा चौथ 2023कब है? करवा चौथ कब है 2023?

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की 31 अक्टूबर 2023 को रात 9.30 मिनट पर शुरू होगी. चतुर्थी तिथि की समाप्ति 1 नवंबर 2023 को रात 9.19 मिनट पर होगी. इसलिए करवा चौथ व्रत उदयातिथि के अनुसार मान्य होगा और इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023, बुधवार को रखा जाएगा.

करवा चौथ 2023 मुहूर्त, करवा चौथ का चांद कब दिखेगा? , करवा चौथ का चांद कब निकलेगा? 

करवा चौथ व्रत समय - सुबह 06.36 - रात 08.26 (1 नवंबर 2023)

करवा चौथ पूजा मुहूर्त - शाम 05.44 - रात 07.02 (1 नवंबर 2023)

चांद निकलने और अर्घ्य का समय - रात 08.26, दिल्ली (1 नवंबर 2023)

करवा चौथ की तैयारी

करवा चौथ उत्सव की तैयारियां कुछ दिन पहले ही शुरू हो जाती हैं. सुहागिन स्त्रियां सौंदर्य प्रसाधन, श्रृंगार की वस्तुएं, मेकअप सामग्री, करवा, पूजन थाली और आभूषण आदि खरीदने लगती हैं. बाजारों में स्थानीय दुकानदारों ने करवा चौथ संबंधी उत्पादों के काउंटर सजा दिए हैं. हर साल करवा चौथ संबंधी नए उत्पाद बाजारों में देखने को मिलते हैं. दुकानदार भी इन उत्पादों के विभिन्न आकार और डिजायन की सामग्री बेचने के लिए लाते हैं, ताकि महिलाओं को ढेर सारे विकल्प मिलें और उन्हें मनचाही चीज ढूंढने में कठिनाई न हो.

करवा चौथ पूजा की थाली? करवा चौथ की सामग्री? करवा चौथ पर क्या क्या खरीदना चाहिए? करवा चौथ की थाली में क्या क्या होता है? करवा चौथ में कौन कौन सा सामान होता है? करवा चौथ की पूजा में कौन कौन सी सामग्री लगती है?

पूजा के लिए थाली या टोकरी का उपयोग किया जाता है, जिसमें चंद्र देव को अर्घ्य देने के लिए घर की परंपरा अनुसार हलवा-पूड़ी, अठवाईं, बादाम, श्रंगार सामग्री,ं सिन्दूर, चूड़ियां, अन्य सुहाग प्रतीक सामग्री, आभूषण, अगरबत्ती चावल और अन्य वस्तुएं रखी जाती हैं.

करवा चौथ पूजा सामग्री

- भगवान गणेश की मूर्ति या फ्रेम, भगवान शिव और देवी पार्वती जी की तस्वीर

- तांबे या मिट्टी का करवा (बर्तन)

- लाल कपड़ा (बर्तन को ढकने के लिए)

- हरी फलियाँ, जिन्हें फल्ली, बेर (बेरी), काचर (छोटा खीरा) के नाम से भी जाना जाता है.

- सिक्का, मोली / लाल धागा

- छलनी

करवा चौथ पूजा थाली सामग्रीः

कुमकुम, चावल, गुड़, मोली, सिक्का, दीपक, फूल,

प्रसादः एक छोटी कटोरी में चूरमा या हलवा या चीनी या अठवाईयां

करवा से क्या होता है? करवा में क्या भरते हो? करवा में क्या क्या डालना चाहिए?

करवा को विभिन्न रंगों से सजाया जाता है. उसमें स्वच्छ जल, यथाषक्ति स्वर्ण, चांदी, तांबा, सिक्के आदि द्रव्य रखे जाते हैं.

करवा चौथ से पहले अल्पाहार यानी सरगी? सरगी कितने बजे खाई जाती है? सरगी में क्या दिया जाता है? करवा चौथ के एक दिन पहले मुझे क्या खाना चाहिए?

करवा चौथ व्रत दिन के भोर यानी सूर्योदय से ही शुरू होता है. यह व्रत किसी कठिन साधना से कम नहीं है. व्रती महिला को पूरे दिन न कुछ खाना होता है और न ही किसी प्रकार का पेय पदार्थ या जल ग्रहण करना होता है. पूरे दिन का निर्जला उपवास होता है. इस व्रत की चंद्रमा और पति की पूजा के बाद ही पारणा की जाती है. इसलिए सभी महिलाएं सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले खाना खाती हैं जिसे ‘सरगी’ भी कहा जाता है.

उत्तर भारत के कुछ परिवारों में महिलाएं करवा चौथ व्रत से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाती हैं. कुछ परिवारों में सूर्यास्त के बजाय मध्य रात्रि 12बजे तक कुछ भी आहार लेने का प्रावधान है. जब कि कुछ पंजाब के परिवारों करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त यानी तकरीबन चार बजे से पहले कुछ आहार लेने का चलन है. करवा चौथ व्रत के एक दिन पहले कुछ परिवारों में मट्ठी-मटर, दूध में सूत फेनी या सिमइयां या अन्य प्रकार के सात्विक एवं स्वादिष्ट आहार लेने की परंपरा है. पंजाब में सरगी सूर्योदय से पहले के भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आहार ऐसा लिया जाता है, जो शरीर में तरावट रखे और पानी की कमी न होने दे. ताकि अगले दिन निर्जला व्रत रखने के कारण शरीर में जलतत्व की कमी न रहे. बहुओं को सास द्वारा उसका मनपसंद भोजन पूछकर उपलब्ध करवाया जाता है. सास द्वारा व्रत और श्रंगार के लिए बहू को कुछ राशि भेंट करने का भी चलन है.

नवविवाहितों, होने वाली दुल्हनों और विवाहित महिलाओं को उनकी सास और होने वाली सास से करवा चौथ उपहार के साथ-साथ टोकरियों के बर्तन भी मिलते हैं. परंपरा दर्शाती है कि सासें मिट्टी के बर्तनों में पारंपरिक भोजन ‘सरगी’ भरती हैं, जिसे महिलाओं को सुबह सूर्योदय से पहले लेना होता है. सरगी अक्सर फल, तले हुए आलू और दूध आधारित मिठाइयाँ जैसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं, जो महिलाओं की सहनशक्ति को बढ़ाते हैं.

बया

बया में एक मिट्टी का घड़ा, पैसा, आभूषण, कपड़े और मिठाइयाँ शामिल होती हैं, जो महिला की माँ द्वारा उसके ससुराल में भेजी जाती हैं.

गृह कार्य

महिलाओं पर घर ग्रहस्थी की भी जिम्मेदारी होती है. मजबूरी में महिलाएं गृह कार्य भी करती हैं, अन्यथा घर की कुंआरी लड़कियां गृह कार्य संभालती हैं, ताकि विवाहित और व्रती महिला सदस्य को न तो अधिक श्रम करना पड़े और न ही उसे प्यास लगे. प्यास से बचने के लिए विश्राम करना चाहिए और ज्यादातर समय छांव में बिताना चाहिए.

करवा चौथ की विधि? करवा चौथ पूजन विधि? करवा कैसे पूजा जाता है? करवा चौथ पूजन विधि सामग्री?

सुबह भारे में स्नान करने के बाद, महिलाओं को ‘संकल्प’ लेना चाहिए कि वह अपने पति और परिवार के सदस्यों की भलाई के लिए यह व्रत रख रही हैं. आशय यह भी है कि व्रत बिना अन्न-जल ग्रहण किए किया जाएगा और चंद्रमा को देखने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाएगा.

सामुदायिक गतिविधियां

करवा चौथ के व्रत के दौरान महिलाएं सामुदायिक गतिविधियों में शामिल हो सकती हैं. ताकि उपवास के बजाय ध्यान अन्य गतिविधियों में रहे. इसके लिए वे व्रती महिलाओं के साथ मंगल गीत गा सकती हैं. अन्य महिलाओं के साथ समय बिताएं औरएक-दूसरे के हाथों और पैरों में मेंहदी लगाएं.

सूर्यास्त से पहले, पूजा से जुड़े अनुष्ठान पूर्ण करने के लिए एक स्थान पर एकत्रित होकर श्रंगार करें. अन्य परिवारों की महिलाओं को भी एकत्रित किया जा सकता है. या फिर किसी सार्वजनिक स्थान पर भी व्रती महिलाएं इकट्ठी हो सकती हैं.

चूंकि यह व्रत पति या होने वाले पति यानी मंगेतर के स्वास्थ्य, मंगल और दीर्घायु की कामना के लिए होता है. इसलिए पति या मंगेतर को स्नेह भाव से आमंत्रित कर सम्मिलित किया जाता है. अच्छे पति पहले से ही पत्नी का सहयोग करने के लिए तत्पर रहते हैं. गृह कार्यों में हाथ बंटाते हैं, श्रंगार सज्जा और अन्य कार्यों में पत्नी का सहयोग करते हैं. ऐसे कठिन उपवास, पूजन और प्रार्थना के लिए पति अपनी पत्नी को उपहार भी देते हैं.

अर्घ्य से पहले सायंकालीन पूजा

हर स्थान पर अलग-अलग रिवाज हैं. राजस्थान में पहले गौर माता की मूर्ति गाय के गोबर और मिट्टी से बनाई जाती थी. अब सिर्फ माता पार्वती की एक मूर्ति रखी जाती है. करवा चौथ व्रत कथा सुनते समय हर महिला अपनी पूजा की थाली में एक दिया जलाती हैं. करवा चौथ अनुष्ठान में, महिलाएं लाल, गुलाबी या अन्य दुल्हन के रंगों में भारी कढ़ाई वाली साड़ी या दुपट्टा पहनती हैं और खुद को विवाहित महिलाओं के अन्य सभी प्रतीकों जैसे नोज पिन, नथुनी, टीका, बिंदी, चोंप, चूड़ियां, झुमके आदि सोलह श्रंगार से सज हैं, जिस तरह किसी नई-नवेली दुल्हन को सजाया जाता है.

करवा चौथ की कहानियां? करवा चौथ की कहानी? चौथ माता की कहानी? करवा चौथ की व्रत की कहानी? कार्तिक की करवा चौथ की कहानी? करवा चौथ की असली कहानी क्या है? करवा चौथ व्रत कथा?

करवा चौथ की कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं और विवाहित महिलाएं अपने पतियों की सलामती और खुशी के लिए इन्हीं पतिव्रता सुहागिनों की भांति करवा माता से प्रार्थना करती हैं. करवा चौथ के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं और लड़कियां करवा चौथ विभिन्न कथाएं सुनना नहीं भूलतीं. शाम को, अर्घ्य से पहले महिलाएं किसी सामान्य पूजा स्थल जैसे मंदिर या किसी के घर पर इकट्ठा होती हैं, जिसने सार्वजनिक पूजा की व्यवस्था की हुई होती है. गौरी मां (देवी पार्वती) की मूर्ति की परिक्रमा करके बैठती हैं. एक बुजुर्ग महिला या पुजारिन करवा चौथ की कथा सुनाती हैं और सभी महिलाएं एक साथ कथा सुनती हैं.

करवा चौथ की सभी कहानियां सुनने से यह पता चलता है कि इस व्रत का महत्व क्या है और यह त्यौहार कितना प्राचीन है. कुछ लोकप्रिय करवा चौथ की कहानियां इस उत्सव के पीछे का कारण बताती जान पड़ती हैं.

सत्यवान और सावित्री की करवा चौथ कथा

ऐसा कहा जाता है कि जब मृत्यु के देवता यम, सत्यवान के प्राण हरने के लिए आए, तो सावित्री ने यम के सामने सत्यवान के जीवन की भीख मांगी. लेकिन यम अड़े रहे. यम ने देखा कि सावित्री ने खाना-पीना बंद करके उपवाास प्रारंभ कर दिया है और सावित्री यम के पीछे-पीछे चलने लगीं, क्योंकि वह उसके पति को ले जा रहे थे. यम ने तब सावित्री से कहा कि वह अपने पति के जीवन के अलावा कोई भी वरदान मांग सकती है. एक बहुत ही बुद्धिमान महिला होने के नाते, सावित्री ने यम से पूछा कि वह संतानोत्पत्ति का आशीर्वाद चाहती हैं. यम ने तुरंत तथास्तु कह दिया. तथास्तु कहकर यम फंस गए, क्योंकि एक पतिव्रता स्त्री को संतानोत्पत्ति तभी संभव है, जब उसका पति जीवित रहै. इस प्रकार, यम को सत्यवान का पुनर्जीवित करना पड़ा, ताकि सावित्री को बच्चे हो सकें.

रानी वीरवती की करवा चौथ कहानी

एक समय की बात है कि वीरवती नाम की एक खूबसूरत रानी थी, जो सात प्यारे और देखभाल करने वाले भाइयों के बीच एकमात्र बहन थी. अपने पहले करवा चौथ पर, वह अपने माता-पिता के घर पर थी और सूर्योदय के बाद कठोर उपवास शुरू किया. शाम के समय वह भूख-प्यास से पीड़ित होकर चंद्रोदय की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी. उसे इस प्रकार पीड़ित देखकर उसके भाइयों को बहुत दुःख हुआ. इसलिए, उन्होंने एक पीपल के पेड़ में एक दर्पण स्थापित किया, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो चंद्रमा आकाश में है. जैसे ही वीरवती ने उस नकली चंद्रमा को देखकर अपना व्रत तोड़ा, उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई. वह रोने लगी. वह तुरंत अपनी ससुराल के लिए चल पड़ी और रास्ते में उसकी मुलाकात देवी पार्वती से हुई. मां पार्वती ने बताया कि उनके भाइयों ने उनके साथ छल किया था. यह जानकर फिर, उसने पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत रखा और उसके समर्पण को देखते हुए, मृत्यु के देवता यम ने उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया. रानी वीरवती की यह करवा चौथ कथा काफी लोकप्रिय है. आमतौर पर व्रत रखने वाली महिलाएं चंद्र देव को अर्घ्य देने से पहले इस कहानी को सुनती हैं.

रानी द्रौपदी की करवा चौथ कहानी

करवा चौथ की कहानी में एक कहानी महाभारत के पांच पांडवों में से एक अर्जुन और द्रौपदी पर केंद्रित है. अर्जुन को द्रौपदी सबसे अधिक प्यार करती थीं. एक बार अर्जुन आत्म-दंड के लिए नीलगिरि पर्वत पर गए. इस वजह से बाकी भाइयों को अर्जुन की अनुपस्थिति में औचक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. अब द्रौपदी ने इस स्थिति में भगवान कृष्ण को याद किया और पूछा कि चुनौतियों के समाधान के लिए क्या किया जाना चाहिए. भगवान कृष्ण ने देवी पार्वती की एक कहानी सुनाई कि माता पार्वती ने भी ऐसी ही स्थिति में करवा चौथ की पूजा की थी. इसलिए, द्रौपदी ने अपने पतियों की सलामती के लिए करवा चौथ के सख्त अनुष्ठानों का पालन किया और पांडवों ने उनकी समस्याओं का समाधान किया.

करवा की कहानी

करवा नाम की एक महिला थी, जो अपने पति से बहुत प्यार करती थी और इस गहन प्यार ने उसे बहुत सारी आध्यात्मिक शक्तियां प्रदान की थीं. एक बार जब उसका पति नदी में स्नान करने गया, तो उस पर मगरमच्छ ने हमला कर दिया. अब साहसी करवा ने मगरमच्छ को सूती धागे से बांधा और मृत्यु के देवता यम को याद किया. उसने यमराज से अपने पति को जीवनदान और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि उन्हें डर है कि वह ऐसा नहीं कर पाएंगे. हालाँकि, बदले में करवा ने भगवान यम को श्राप देने और यमदेव को नष्ट करने की धमकी दी. यम ऐसी समर्पित और पतिव्रता स्त्री द्वारा शापित होने से डर गए और उन्होंने मगरमच्छ को नरक भेज दिया और उसके पति को जीवन वापस दे दिया.

करवा चौथ के ऐतिहासिक कारण क्या हैं? करवा चौथ कब से मनाया जाता है? करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? करवा चौथ कब से और क्यों मनाया जाता है?

करवा चौथ व्रत की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न परिकल्पनाएं हैं. कुछ व्यापक रूप से स्वीकृत धारणाओं के अनुसार, मानसून के मौसम के बाद अक्टूबर तक भूमि आमतौर पर सूख जाती है. प्राचीन काल में सैन्य अभियान और व्यापार के लिए लंबी दूरी की यात्राएं प्रारंभ हो जाती थीं, जो आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर में होती थीं. इसलिए महिलाएं अपने पतियों की यात्राओं की शुभता-सफलता और यात्रा के दौरान के सुरक्षा, स्वास्थ्य की स्थिरता और लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखने लगीं.

उत्तर भारत में मंगोलों, हूणों, शकों, यवनों, तुर्कों, अफगानों और ईरानियों के लगातार हमले होते थे, जो आम तौर पर दर्रा-ए-खैबर पार करके हमला करते थे.  उत्तर भारत की पुरुष आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सेना के सैनिक और सैन्य बलों के अधिकारी थे और इन लोगों की सुरक्षा के लिए, इन क्षेत्रों की महिलाओं ने उपवास करना शुरू कर दिया. ये सशस्त्र बल, पुलिसकर्मी, सैनिक और सैन्यकर्मी दुश्मनों से देश की रक्षा करते थे और महिलाएं अपने पुरुषों की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती थीं.

इस त्योहार का समय रबी फसल के मौसम की शुरुआत के साथ मेल खाता है, जो इन उपरोक्त क्षेत्रों में गेहूं की बुआई का मौसम है. परिवारों की महिलाएं मिट्टी के बर्तन या करवा में गेहूं के दाने भरती हैं और अच्छे रबी सीजन की प्रार्थना करते हुए उन्हें भगवान को अर्पित करती हैं. इसलिए यह भी धारणा है कि यह त्योहार पति के स्वास्थ्य के अतिरिक्त, अच्छी फसल की प्रार्थना के भी किया जाता है.

करवा चौथ की कहानी सुनने की आवश्यक चीजों में एक विशेष मिट्टी का बर्तन, जिसे भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है, पानी से भरा एक धातु का कलश, फूल, अंबिका गौर माता, देवी पार्वती की मूर्तियां और कुछ फल, अनाज, मठरी और शामिल हैं. इसका एक भाग देवताओं और कथावाचक को अर्पित किया जाता है.

पूजा के बाद और कथा सुनने के बाद महिलाओं को चंद्रमा के उदय होने का इंतजार करना चाहिए और अर्घ या अर्घ्य देने की तैयारी कर लेनी चाहिए.

चंद्रोदय के बाद अर्घ्य कैसे दें? चांद की पूजा कैसे की जाती है? करवा चौथ के दिन पति की पूजा कैसे की जाती है? करवा चौथ व्रत को कैसे खोलें? करवा चौथ व्रत को कैसे तोड़ें?

सभी महिलाएं चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर अपना दिन भर का उपवास तोड़ती हैं. व्रत अक्सर अपने पतियों की उपस्थिति में तोड़ा जाता है.  महिलाएं मिट्टी का दीपक या दीया जलाकर और एक पात्र में पानी भरकर व्रत तोड़ने की प्रक्रिया शुरू करती हैं. इन वस्तुओं को पारंपरिक पूजा की थाली में रखा जाता है और उस स्थान पर ले जाया जाता है जहां से वे चंद्रमा को देखती हैं, आमतौर पर खुली छत या बालकनी.

जब चंद्रमा निकल जाता है, तो महिलाएं पानी की थाली या छलनी में उसका प्रतिबिंब देखती हैं. फिर वे चंद्रमा को जल चढ़ाती हैं, जिसे अर्घ्य देना कहते हैं. चंद्र देव को अठवाईंयां अर्पित की जाती हैं और अपने पतियों की सुरक्षा, समृद्धि और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं. यह दिन भर के उपवास की समाप्ति का प्रतीक है.

फिर पति अपनी पत्नी के सामने खड़ा होता है और पत्नी बारीक छलनी से चंद्रमा को देखती है. उसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है और फिर पत्नी छलनी से अपने पति को देखती है और पति का आशीर्वाद ग्रहण करती हैं.

दीर्घायु के लिए इस अनुष्ठान का पालन किया जाता है, और उसके बाद पति अपनी पत्नी को भोजन का पहला निवाला या एक घूंट पानी खिलाता है, जिससे व्रत टूट जाता है. पति की अनुपस्थिति में आजकल महिलाएं वीडियो काल करके उनका चेहरा देखकर व्रत की पारणा करती हैं.

पत्नी के लिए करवा चौथ व्रत

आजकल इस व्रत ने पति-पत्नी के प्रेम संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करने लिए नया आकार ले लिया है. पत्नियों का समर्पण देखकर कुछ पति जन भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखने लगे हैं. यह अनुष्ठान दोनों तरफ से प्यार, समझ और करुणा का प्रतीक बन गया है. धर्मसिंधु, निर्णयसिंधु और व्रतराज नामक धार्मिक पुस्तकों में करवा चौथ का उल्लेख करक चतुर्थी के रूप में किया गया है. करक और करवा दोनों का मतलब एक छोटा घड़ा है, जिसका उपयोग पूजा के दौरान किया जाता है और बाद में परिवार की भलाई के लिए दान के रूप में दिया जाता है. हालांकि यह उल्लेख किया गया है कि आधुनिक युग में करवा चौथ का व्रत करने का अधिकार केवल महिलाओं को है, पुरुषों को नहीं.

करवा का क्या करें?

इसके बाद करवा में भरे हुए पानी को पति और बच्चों को थोड़ा-थोड़ा वितरित कर देना चाहिए, ताकि वे इस पानी को नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करें और व्रती महिला की प्रार्थना के प्रभाव से पति और बच्चे स्वस्थ और दीर्घायु रहें. फिर खाली करवा को पानी या दूध या कीमती पत्थर और सिक्के भरकर किसी ब्राह्मण या विवाहित महिला को दान कर देना चाहिए.