जब भारतीय वायु सेना ने आजाद हिन्द फौज का दिया साथ

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-10-2023
When Indian Air Force supported Azad Hind Fauj
When Indian Air Force supported Azad Hind Fauj

 

साकिब सलीम

‘रॉयल इंडियन एयर फोर्स को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता’, यह टिप्पणी 1946 में कैबिनेट मिशन द्वारा भारत में किसी भी ब्रिटिश विरोधी आंदोलन को दबाने में भारतीय वायु सेना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए की थी. तब ब्रिटिश भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ ने अनुमान लगाया था कि रॉयल इंडियन एयर फोर्स (आरआईएएफ) द्वारा विद्रोह की स्थिति में उन्हें कम से कम पांच हवाई परिवहन स्क्वाड्रन की आवश्यकता होगी.

इसके बावजूद शायद ही कभी हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश सेना की सेवा करने वाले भारतीय सैनिकों की भूमिका की सराहना करते हैं. इससे भी अधिक दुर्लभ यह अहसास है कि वायु सेना ने भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था.
 
बताते हैं, द्वितीय विश्व युद्ध में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज को पराजय का सामना करना पड़ा और उसके सैनिकों को भारत लाया गया, जिसके बाद ब्रिटिश भारतीय सेना के लगभग सभी वर्गों ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों के समर्थन में विद्रोह की प्रवृत्ति दिखानी शुरू कर दी थी.
 
फरवरी 1946 का रॉयल नेवल म्यूटिनी अधिक प्रसिद्ध है, लेकिन इसका रास्ता वायु सेना के अधिकारियों ने दिखाया था. कई स्टेशनों पर वायुसेना कर्मियों ने हड़ताल कर असंतोष प्रकट करना शुरू कर दिया. इतिहासकार डेनिस जुड लिखते हैं, केवल 1946 में विद्रोहों की एक श्रृंखला ने ब्रिटिश सरकार को उत्साहित करने का प्रभाव डाला था... भारतीय वायु सेना की इकाइयां विद्रोह के बाद थीं, और इससे भी बदतर स्थिति सामने आई थी.’
 
18 फरवरी 1946 को रॉयल इंडियन नेवी की रेटिंग्स ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों के समर्थन में विद्रोह कर दिया, जिन्हें युद्धबंदी के रूप में लिया गया.कराची के पास वायु सेना के विद्रोह के संबंध में कोर्ट मार्शल कार्यवाही का सामना करने वाले डेविड डंकन ने लिखा, जब किनारे पर स्थित कुछ रेटिंग्स सैनिकों के साथ झड़पों में शामिल थे, तो बंदरगाह में जहाजों पर सवार विद्रोहियों ने शहर पर अपनी बंदूकें तान दीं और बमबारी की धमकी दी.... दक्षिणी कमान के जीओसी लेफ्टिनेंट-जनरल आर एम एम लॉकहार्ट ने यथाशीघ्र व्यवस्था बहाल करने के निर्देश के साथ सभी नौसेना, सेना और आरएएफ बलों की कमान संभाली.
 
आरएएफ को विद्रोहियों के हाथों जहाजों को डुबाने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया गया. हालांकि, लोगों ने मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं की अपील के जवाब में आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद शहर में चार दिनों तक दंगे हुए और सैकड़ों लोग हताहत हुए.”
 
कोहाट (अब पाकिस्तान में) भारतीय स्टेशन कमांडर वाला एकमात्र वायु सेना स्टेशन था. ग्रुप कैप्टन (बाद में एयर चीफ मार्शल) एस्पी इंजीनियर स्टेशन कमांडर थे. वायुसैनिकों को पता चला कि उन्हें नौसेना के विद्रोहियों पर बमबारी करने का आदेश दिया जा सकता है. मेजर जनरल वी. के. सिंह लिखते हैं कि स्क्वाड्रन लीडर (बाद में वाइस मार्शल) हरजिंदर सिंह स्थिति को शांत करने के लिए पेशावर से कोहाट गए.
 
वी. के. सिंह लिखते हैं, “उन लोगों से बात करने के बाद, हरजिंदर को पता चला कि उन्होंने सुना है कि बॉम्बे में हड़ताल पर गए नौसैनिकों पर बमबारी और मशीन गन से हमला करने की योजना बनाई गई है.
 
जब उनसे उनकी मांगें पूछी गईं तो उन्होंने कहा कि स्टेशन कमांडर को दिल्ली में कमांडर-इन-चीफ को एक संदेश भेजना चाहिए जिसमें उन्हें बताया जाए कि भारतीय वायु सेना स्टेशन कोहाट नौसेना में उनके सहयोगियों पर बमबारी करने में सहयोग करने से इनकार कर दिया है. साथ ही सिग्नल में यह साफ तौर पर लिखा होना चाहिए कि एयरफोर्स स्टेशन कोहाट बॉम्बे में हुई फायरिंग में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति सहानुभूति रखता है.
 
हरजिंदर ने बाद में याद करते हुए कहा, मुझे कहना होगा कि उसने जनरल औचिनलेक को उसी तरह सिग्नल भेजा था जैसा मैंने वायुसैनिकों से वादा किया था. यह अभूतपूर्व था कि भारतीय वायु सेना का एक अधिकारी कमांडर इन चीफ को संदेश भेज रहा था कि वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मारे गए भारतीय राष्ट्रवादियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और अपने देशवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के किसी भी आदेश का पालन नहीं करेंगे.
 
दर्जनों एयरफोर्स स्टेशनों पर ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई. दीवार पर लिखावट साफ थी. अंग्रेज अब भारत पर शासन नहीं कर सकते. इसके बाद उन्होंने जल्दबाजी में देश का बंटवारा कर दिया और चले गए.
 
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये स्थितियां तब उत्पन्न हुई थीं जब अंग्रेज भारतीय अधिकारियों और सैनिकों पर भरोसा नहीं कर सकते थे, जब सुभाष चंद्र बोस ने उनसे एक सेना बनाई थी. 1946 के ये विद्रोह भी आजाद हिंद फौज के सैनिकों के परीक्षणों का प्रत्यक्ष परिणाम थे जिनका भारतीयों ने एकजुट होकर विरोध किया.