राकेश चौरासिया
नवरात्रि के तीसरे दिन हम माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप, देवी चंद्रघंटा की पूजा करते हैं. चंद्रघंटा का अर्थ है जिसके गले में घंटा हो. देवी चंद्रघंटा को शांति और साहस की देवी माना जाता है.
देवी चंद्रघंटा की कथा
देवी चंद्रघंटा की उत्पत्ति के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. इनमें प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवता असुरों से युद्ध कर रहे थे, तब उन्होंने भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा से प्रार्थना की. तीनों देवताओं के मुख से एक ज्योति निकली, जिससे देवी चंद्रघंटा का जन्म हुआ.
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप
देवी चंद्रघंटा को दस भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है. उनके दसों हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं. उनके गले में एक घंटा होता है, जिससे यह नाम पड़ा है. वे सिंह पर सवार होती हैं और उनके तीसरे नेत्र से अग्नि की ज्वाला निकलती है.
चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
देवी चंद्रघंटा की पूजा का बहुत महत्व है. इस पूजा से मन शांत होता है और बुद्धि तेज होती है. जो लोग जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना कर रहे हैं, वे देवी चंद्रघंटा की पूजा कर सकते हैं. मान्यता है कि देवी चंद्रघंटा की कृपा से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है.
चंद्रघंटा मंत्र
देवी चंद्रघंटा का मंत्र इस प्रकार है -
इस मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है और देवी चंद्रघंटा की कृपा प्राप्त होती है.
चंद्रघंटा की पूजा विधि
देवी चंद्रघंटा की पूजा बहुत ही सरल तरीके से की जा सकती है. आप घर में ही देवी चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके उनकी पूजा कर सकते हैं. पूजा के समय आप देवी को फूल, फल, मिठाई और धूप-दीप अर्पित कर सकते हैं.
देवी चंद्रघंटा, माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप हैं. उनकी कहानी हमें शांति, साहस और शक्ति का संदेश देती है. नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा की पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.