साकिब सलीम
क्या आप कोई ऐसा भारतीय ढूंढ सकते हैं जिसने कभी ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ न गाया हो? यकीनन यह भारत में लिखा गया अब तक का सबसे लोकप्रिय देशभक्ति गीत है.यह सामान्य ज्ञान है कि कविता उर्दू कवि मुहम्मद इकबाल द्वारा लिखी गई थी, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने यह देशभक्ति गीत क्यों लिखा ? जिस व्यक्ति ने उनसे गीत लिखने के लिए कहा, या आप कह सकते हैं कि प्रेरित किया, वह लाला हरदयाल थे.
साल था 1904. मुहम्मद इकबाल लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाते थे, जहां हरदयाल एम.ए. कर रहे थे. लाहौर में यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन (वाईएमसीए) नामक एक युवा क्लब था, जिसके 20 वर्षीय हरदयाल भी सदस्य थे.
उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि भारतीयों को यूरोपीय नेतृत्व वाले वाईएमसीए से अलग एक क्लब बनाना चाहिए. भारतीय छात्रों में देशभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से जल्द ही हरदयाल द्वारा एक यंग मेन्स इंडियन एसोसिएशन का गठन किया गया.
हरदयाल, हालांकि इकबाल से 7 साल छोटे थे, लेकिन उनके बीच दोस्ताना संबंध थे. उस समय तक इकबाल उर्दू शायर के रूप में स्थापित नहीं हुए थे. हरदयाल ने इकबाल को वाईएमआईए की उद्घाटन बैठक की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया.
जब इकबाल से पूछा गया कि कार्यक्रम में कुछ ही घंटे बचे हैं और उन्होंने इतने कम समय में भाषण तैयार करने को लेकर चिंता जाहिर की.सैयद जफर हाशमी ने इस घटना के नूर इलाही का एक प्रत्यक्षदर्शी विवरण नोट किया है.
उन्होंने लिखा, “जब हरदयाल ने क्लब की उद्घाटन बैठक बुलाई, तो उन्होंने इकबाल को समारोह की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया. बैठक अपराह्न 3 बजे निर्धारित थी, लेकिन वास्तव में यह शाम 6 बजे शुरू हुई.
जब बैठक शुरू हुई तो इकबाल ने अपना अध्यक्षीय भाषण देने के बजाय अपना राष्ट्रीय गीत सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा सुनाया. इसपर दर्शक मंत्रमुग्ध थे.”यह कविता बाद में उर्दू साप्ताहिक इत्तिहाद में इस नोट के साथ प्रकाशित हुई कि एक क्लब की स्थापना की गई है, जिसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारत के सभी समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना है ताकि वे सभी सर्वसम्मति से विकास के प्रति आकर्षित हों और देश का कल्याण हो सके.
इस समारोह में पंजाब के मशहूर और नरमदिल शायर शेख मुहम्मद इकबाल ने एक छोटी और भावुक कविता पढ़ी, जिसने श्रोताओं का दिल जीत लिया और सभी के अनुरोध पर इसे समारोह के आरंभ और अंत में भी सुनाया गया. चूंकि इस कविता को एकता के उद्देश्य में सफलता मिली, इसलिए हम अपने पुराने मित्र और मौलवी मुहम्मद इकबाल का शुक्रिया अदा करते हुए इसे ‘इत्तेहाद’ में प्रकाशित कर रहे हैं...’’
अगले वर्ष, 1905 में, हरदयाल और इकबाल दोनों भारत छोड़कर यूरोप चले गए. इकबाल तीन साल बाद खुद को एक उर्दू कवि और मुस्लिम लीग के वैचारिक व्यक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए लौटे और हरदयाल एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी बन गए.
हरदयाल को इंग्लैंड में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति दी गई. भले ही उनकी ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों की कई खुफिया रिपोर्ट थीं. एक बार इंग्लैंड में वे श्यामजी कृष्ण वर्मा के इंडियन हाउस से जुड़. उन्होंने सावरकर, आचार्य और अन्य क्रांतिकारियों के साथ काम करना शुरू किया. बाद में वह अमेरिका चले गए और गदर आंदोलन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.