जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
बांग्ला साहित्य के उल्लेखनीय हस्ताक्षर रवींद्रनाथ टैगोर उर्दू भाषा-साहित्य में भी बहुत मशहूर हैं. यहां तक कि उर्दू विद्वान उन्हें गालिब जैसे दुनिया के 10 नामचीन शायरों में शुमार करते हैं. फिराख गोरखपुरी,नियाज फतेहपुरी और अनवर जलालपुरी ने रवींद्र नाथ टैगोर की कविता, कहानी, उपन्यास को उर्दू के जानकारों तक पहुंचाने के लिए अनुवाद को लेकर अनेक काम किए हैें, जिसकी वजह से आज भी रवींद्र बाबू उर्दू में काफी पढ़े जाते हैं.
कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, पेंटिंग और कंपोजर के साथ-साथ रवींद्रनाथ टैगोर एक अच्छे विचारक भी थे. उनकी ढ़ेर सारी खूबियों में एक खूबी समाज-सुधारक के तौर पर भी थीं. वे दार्शनिक यानी एक फिलासफर भी थे. यही वजह है रवींद्रनाथ टैगोर हमेशा कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते रहे.
पूरी जिंदगी उन्होंने एक हजार से ज्यादा कविताएं, आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह, 2200 से अधिक रवींद्र संगीत रचा और अपने महाकाव्य 'गीतांजलि' के लिए उन्हें 1913 में मिला उत्कृष्ट साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार.
उर्दू में फिराक गोरखपुरी ने किया था रवींद्रनाथ की कविताओं का अनुवाद
उर्दू में फिराक गोरखपुरी ने रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का अनुवाद किया था. पहली दफा जब यह (अनुवाद) किताब की शक्ल में आईं, तो हाथोंहाथ बिकीं. साहित्य अकादमी ने इसे प्रकाशित किया था. इसमें फिराक गोरखपुरी ने रवींद्रनाथ टैगोर की एक सौ एक कविताओं को उर्दू में शक्ल दिया. इस किताब का नाम है 'रवींद्रनाथ टैगोर की एक सौ एक नज्में।' इसमें कुल 412 पेज है.
नियाज फतेहपुरी और अनवर जलालपुरी ने भी किया है अनुवाद
मशहूर उर्दू शायर नियाज फतेहपुरी ने रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का अनुवाद उर्दू में किया था. अब वे जीवित नहीं है. नियाज फतेहपुरी हिंदुस्तान में बाराबंकी के थे. बाद में करांची (पाकिस्तान) जाकर बस गए थे और करांची में 24 मई, 1966 को उनका निधन हुआ. वे उर्दू की मशहूर साहित्यिक पत्रिका 'निगार' के भी संपादक थे.
अनवर जलालपुरी का निधन अभी दो साल पहले लखनऊ में हुआ है. अनवर जलालपुरी ने रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' का उर्दू में अनुवाद किया था, उससे पहले 'भगवत गीता' का. अनवर जलालपुरी ने टीवी धारावाहिक 'अकबर द ग्रेट' का भी संवाद लिखा था। इस सीरियल को अकबर खान ने डायरेक्ट किया था और नौशाद ने इसमें संगीत दिया था.
पहले एशियाई थे, जिन्हें साहित्य का नोबेल मिला
रवींद्रनाथ टैगोर पहले एशियाई थे, जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था. 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासांको इलाके में पैदा हुए रवींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु भी कलकत्ता में ही हुई थीं 7 अगस्त, 1941 को. तब उनका दाह संस्कार कलकत्ता के नीमतल्ला घाट पर हुआ था.
रवींद्रनाथ टैगोर की उस वक्त उम्र थीं 80 साल. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से रवींद्रनाथ टैगोर हालांकि 7 मई को पैदा हुए थे, लेकिन बंगाल में रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती बांग्ला कैलेंडर के हिसाब से 9 मई को मनाई जाती है हर साल.
उनकी जयंती को 'बाइसे श्रावण' कहा जाता है और जयंती के दिन उनकी जन्म स्थली जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी, (कलकत्ता) से लेकर उनकी कार्यस्थली शांतिनिकेतन (बीरभूम) तक बेहद सादगी और उल्लास के साथ 'रवींद्र जयंती' मनाई जाती है.
यह देखते ही बनता है. ऐसा शायद ही किसी कवि की याद में हिंदुस्तान में होता हो ! 'रवींद्र जयंती' के दिन कलकत्ता से लेकर शांतिनिकेतन तक सुबह-सुबह कतारबद्ध होकर बच्ची, युवती से लेकर बड़ी उम्र की महिलाएं पीली साड़ी और माथे पर सुगंधित पुष्प लगाए रवींद्रनाथ के गीत गाते हुए अपने 'प्रिय कवि' को याद करती हैं. बड़ी तादाद में युवक और बुजुर्ग भी इसमें हिस्सा लेते हैं.
पहली कविता पुस्तक आई थीं मात्र 16 की उम्र में
कहते हैं कि वर्ष 1877 में जब रवींद्रनाथ टैगोर महज 16 साल के थे, तब उनकी पहली कविता पुस्तक आ चुकी थीं. उससे पहले 1873 के फरवरी माह में जब वे ग्यारह साल के थे तब पिता देवेंद्रनाथ टैगोर के साथ अमृतसर (पंजाब) और डलहौजी (हिमाचल) घूम आए थे. इन इलाकों की प्रकृति और सादगी रवींद्रनाथ को भाने लगी थीं और उनकी धड़क खुलने लगी थी.
शांतिनिकेतन में था रवींद्रनाथ के पिता का इस्टेट
शांतिनिकेतन (जिला बीरभूम) कभी रवींद्रनाथ के पिता का इस्टेट था. कलकत्ता से शांतिनिकेतन की दूरी करीब चार घंटे की है. वहां अक्सर रवींद्रनाथ जाया करते. सुरम्य बगीचों में समय बीताना, खुले एकांत में बैठकर कविता लिखना और संगी-साथियों के बीच गपशप करना शुरू से ही रवींद्रनाथ को अच्छा लगता था, इसलिए भी वे एक अच्छे कवि और पेंटर बन पाए.
रवींद्रनाथ टैगोर को बैरिस्टर बनाना चाहते थे उनके पिता
रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर की इच्छा थीं रवींद्रनाथ बैरिस्टर बनें, इसलिए उन्हें बैरिस्टर बनाने के लिए वर्ष 1878 में पिता ने उन्हें लंदन भेजा, लेकिन रवींद्रनाथ का मन कविता और प्रकृति में ज्यादा रमता था. सो, सब छोड-छाड़ कर रवींद्रनाथ 1880 में कलकत्ता आ गए.
1883 में हुईं रवींद्रनाथ की शादी
कुछ साल इंतजार के बाद पिता ने रवींद्रनाथ की शादी कर दीं मृणालिनी देवी से. 9 दिसंबर, 1883 को हुई थीं यह शादी. फिर रवींद्रनाथ टैगोर के पांच संतान हुए.
छोटी उम्र में रवींद्रनाथ ने तीस देशों का किया था दौरा
कहते हैं कि रवींद्रनाथ टैगोर ने छोटी उम्र से विदेश घूमना शुरू कर दिया था. बड़े होते-होते टैगोर ने तीस देशों का दौरा पूरा कर लिया था. इन तीस देशों में पांच उपमहाद्वीप थे. यह वर्ष 1878 से 1932 तक की कहानी है.
1912 में इंग्लैंड गए और 'गीतांजलि' का अंग्रेजी संस्करण निकाला
रवींद्रनाथ टैगोर ने स्वाध्याय से सबकुछ सीखा था. अंग्रेजी भाषा पर भी उनकी अच्छी दखल थीं. 1912 में इंग्लैंड प्रवास के दौरान उन्होंने अपनी महाकाव्यात्मक किताब 'गीतांजलि' की भूमिका लिखाई कवि विलियम बटलर ईट्स से. विलियम बटलर ईट्स एंग्लो-आयरिश (कवि) थे और दोनों जुबान में संवेदनशील कविताएं लिखते थे.
और इस तरह 1913 में मिला टैगोर को साहित्य का नोबेल
कहते हैं कि नोबेल पुरस्कार देने वाली स्वीडिश अकादमी की उच्चस्तरीय कमिटी को रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएं इतनी अच्छी लगीं कि उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल देने की घोषणा कर दी गई.
यह घोषणा 9 अक्तूबर, 1913 को हुई थीं. 10 दिसंबर (1913) को रवींद्रनाथ टैगोर को स्टाकहोम में साहित्य का नोबेल मिला. 1913 में नोबेल पुरस्कार के लिए कुल 28 साहित्यिक नामांकित थे, जिनमें से एक को चुना गया और वे थे हिंदुस्तान के रवींद्रनाथ टैगोर.
दुनिया के 15 बड़े कवियों/लेखकों में रवींद्रनाथ टैगोर का नाम भी हैं शुमार
दुनिया के 15 बड़े कवियों/लेखकों में रवींद्रनाथ टैगोर का नाम भी हैं शामिल. इनमें विलियम शेक्सपियर (इंग्लैंड), पाब्लो नेरुदा (चिली), सुश्री मेयो एंजेलो (अमेरिका), वाल्ट ह्वीटमैन(अमेरिका), रोबर्ट फ्रास्ट (पर्सिया), ऐमली डिकिनशन (अमेरिका), टीएस इलियट (अमेरिका), ईई कूमिंग्स (अमेरिका), लैंग्सटन हग्स (अमेरिका), सुश्री सिल्विया प्लाथ (अमेरिका), जॉन किट्स (इंग्लैंड) और विलियम बटलर ईट्स (आयरलैंड) आदि शामिल हैं.
और हिंदुस्तान के दस बड़े कवियों में हैं रवींद्रनाथ टैगोर
हिंदुस्तान के दस बड़े कवियों में बंगाल के रवींद्रनाथ टैगोर का नाम भी शामिल हैं. इनमें पहला नाम गालिब का है. उसके बाद अमीर खुसरो, मीरा बाई, मीर तकी मीर, दक्षिण की कवि कमला सुरैया, उसके बाद रवींद्रनाथ टैगोर का नाम आता है.
हिंदुस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका - तीनों का राष्ट्रीय गान रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा है
हिंदुस्तान का राष्ट्रीय गान (नेशनल एंथम) रवींद्रनाथ टैगोर ने तो लिखा ही है. यह है 'जन गण मन, अधिनायक जय हे'. रवींद्रनाथ टैगोर ने यह 'जन गण मन' 11 दिसंबर, 1911 को लिखा था और हिंदुस्तान की संविधान सभा ने इसे 24 जनवरी, 1950 को अपनाया.
बांग्लादेश में 'आमार सोनार बांग्ला' (माई गोल्डन बंगाल) नाम से यह राष्ट्रीय गान है, जिसे रवींद्रनाथ टैगोर ने सन् 1905 में बंगाल विभाजन के समय लिखा. सरकारी तौर पर बांग्लादेश में यह स्वीकृत हुआ 26 मार्च, 1972 को. श्रीलंका का राष्ट्रीय गान भी कहते हैं कि रवींद्रनाथ टैगोर से प्रेरित है. श्रीलंका का राष्ट्रीय गान है 'नमो नमो मथा' (मतलब मदर श्रीलंका). श्रीलंका में यह पहली दफा 4 फरवरी, 1949 को गाया गया था.
रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं पर बनीं 56 फिल्में
कवि/कहानीकार/उपन्यासकार रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं पर अब तक 56 फिल्में बनी हैं. इनमें कुछ फिल्में तमिल और तेलुगु में भी हैं। बाकी बांग्ला भाषा और हिंदी/हिंदुस्तानी जुबान में है.
उल्लेखनीय फिल्मों में 'दो बीघा जमीन' (हिंदी,1954, निर्देशक : विमल राय), 'काबुलीवाला' (बांग्ला, 1957, निर्देशक : तपन सिन्हा), 'घू़घट' (हिंदी,1957, रामानंद सागर), 'क्षुदित पाषाण' (1960, बांग्ला, निर्देशक : तपन सिन्हा), 'तीन कन्या' (बांग्ला, 1961, निर्देशक : सत्यजित राय), 'काबुलीवाला' (हिंदी, 1961, निर्देशक : विमल राय), 'चारुलता' (बांग्ला,1964, निर्देशक : सत्यजित राय), 'इच्छापूरन' (बांग्ला, 1970, निर्देशक : मृणाल सेन), 'उपहार' (हिंदी, 1971, निर्देशक : सुधेंदु राय), 'स्त्री पत्र' ( बांग्ला, 1972, निर्देशक : पुणेंदु पत्री), 'गीत गाता चल' ( हिंदी, 1975, निर्देशक : हीरेन नाग), 'घरे बाइरे' (बांग्ला 1985, निर्देशक : सत्यजित राय), 'लेकिन' (हिंदी, 1991, निर्देशक : गुलजार), 'चार अध्याय' (हिंदी, 1997, निर्देशक : कुमार शाहनी), 'मुथियाना सुब्बैया' (तेलुगु, 1997) 'चोखेर बाली' (बांग्ला, 2003, निर्देशक : ऋतुपर्ण घोष).