करवा चौथ की असली कहानी क्या है?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-10-2024
 Karva Chauth
Karva Chauth

 

राकेश चौरासिया

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ त्योहारों की परंपरा गहरी जड़ें रखती है. हर त्योहार के पीछे एक गहरा अर्थ और कहानियां होती हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं. ऐसा ही एक त्योहार है करवा चौथ, जो मुख्यतः उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. यह पर्व खासकर महिलाओं के अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखने का प्रतीक है. लेकिन करवा चौथ की कहानी सिर्फ धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, इसके पीछे सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी कई परतें छिपी हुई हैं.

करवा चौथ का इतिहास और उत्पत्ति

करवा चौथ का मूल इतिहास हजारों साल पुराना है. यह पर्व प्राचीन काल से ही महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है. करवा चौथ का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है - ‘करवा’ जिसका अर्थ है मिट्टी का पात्र यानी घट या घड़ा और ‘चौथ’ जिसका अर्थ है सनातन हिंदू पंचाग के अनुसार, महीने का चौथा दिन. यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो अमावस्या से चार दिन पहले आता है. इस दिन विवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं और चाँद को अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूरा करती हैं.

ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए, तो करवा चौथ का संबंध युद्ध और परिवार की सुरक्षा से भी जोड़ा जाता है. प्राचीन समय में जब पुरुष युद्ध के लिए जाते थे, तो उनकी पत्नियाँ उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए यह व्रत रखती थीं. यह पर्व न सिर्फ पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करता था, बल्कि परिवार और समाज के प्रति भी एकजुटता का संदेश देता था.

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करवा चौथ की धार्मिक मान्यता

करवा चौथ का पर्व मुख्य रूप से हिंदू धर्म की पौराणिक कहानियों से प्रेरित है. इसमें कई कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं -

वीरवती की कहानी

वीरवती एक सुंदर और आदर्श पत्नी थीं, जिन्होंने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था, लेकिन भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह बेहोश हो गईं. उनके भाईयों ने उन्हें इस स्थिति में देखकर उनका व्रत तुड़वाने का प्रयास किया. उन्होंने पेड़ पर दीपक जलाकर नकली चंद्रमा दिखाया, जिससे वीरवती ने व्रत तोड़ दिया. इसके परिणामस्वरूप उनके पति की मृत्यु हो गई. परंतु वीरवती ने अपने पतिव्रता धर्म के बल पर अपने पति को पुनः जीवित कर लिया. यह कथा इस बात का प्रतीक है कि करवा चौथ का व्रत निष्ठा और धैर्य का प्रतीक है, जो पति की लंबी आयु का कारण बनता है.

सत्यवान-सावित्री की कथा

यह कथा भी करवा चौथ से जुड़ी हुई मानी जाती है. सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु को रोकने के लिए यमराज से लड़ाई की थी और अंततः अपने पति को यमराज से वापस लेकर आई थीं. यह कथा पति-पत्नी के बीच के गहरे संबंधों और निष्ठा की महिमा को दर्शाती है. करवा चौथ का व्रत भी इसी निष्ठा और अटूट प्रेम का प्रतीक है.

महाभारत में द्रौपदी का व्रत

महाभारत में भी करवा चौथ से संबंधित एक कथा है. जब अर्जुन वनवास पर थे, तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से अपने पति की सुरक्षा के लिए सहायता मांगी थी. भगवान कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी, जिससे अर्जुन की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.

करवा नाम की पतिव्रता स्त्री की कहानी

प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी. वह अपने पति के साथ नदी किनारे के एक गांव में रहती थी. उसका पति वृद्ध था. एक दिन वह नदी में स्नान करने गया. नदी में नहाते समय एक मगर ने उसे पकड़ लिया. इस पर व्यक्ति श्करवा करवाश् चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा. करवा पतिव्रता स्त्री थी. आवाज को सुनकर करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया. मगर को सूत के कच्चे धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुँची. वे उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे. करवा ने सात सींक ले उन्हें झाड़ना शुरू किया, यमराज के खाते आकाश में उड़ने लगे. यमराज घबरा गए और बोले- ‘देवी! तू क्या चाहती है?’ करवा ने कहा - ‘हे प्रभु! एक मगर ने नदी के जल में मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उस मगर को आप अपनी शक्ति से अपने लोक (नरक) में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो.’ करवा की बात सुनकर यमराज बोले- ‘देवी! अभी मगर की आयु शेष है. अतः आयु रहते हुए मैं असमय मगर को मार नहीं सकता.’

इस पर करवा ने कहा - ‘यदि मगर को मारकर आप मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे, तो मैं शाप देकर आपको नष्ट कर दूंगी.’ करवा की धमकी से यमराज डर गए. वे करवा के साथ वहाँ आए, जहाँ मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था.

यमराज ने मगर को मारकर यमलोक पहुँचा दिया और करवा के पति की प्राण रक्षा कर उसे दीर्घायु प्रदान की. जाते समय वह करवा को सुख-समृद्धि देते गए तथा यह वर भी दिया - ‘जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा.’ करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी. इस घटना के दिन से करवा चौथ का व्रत करवा के नाम से प्रचलित हो गया.

जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ थी. हे करवा माता! जैसे आपने (करवा) अपने पति की प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना.

करवा चौथ का सांस्कृतिक महत्व

करवा चौथ सिर्फ धार्मिक या पौराणिक महत्व तक सीमित नहीं है. इसका सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है. भारतीय समाज में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्था है और करवा चौथ इस संस्था की मजबूती को दर्शाता है. यह व्रत न सिर्फ पति-पत्नी के बीच प्रेम और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि परिवार की एकता और सामूहिकता का भी संदेश देता है.

यह पर्व सामाजिक एकजुटता का प्रतीक

करवा चौथ का पर्व मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा समूह में मनाया जाता है. महिलाएं इस दिन विशेष रूप से सजती-संवरती हैं और सामूहिक रूप से कथा सुनती हैं. इससे न केवल एकता की भावना प्रबल होती है, बल्कि महिलाओं के बीच आपसी संबंध भी मजबूत होते हैं. यह पर्व समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाता है.

पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम और सम्मान

करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच गहरे प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है. यह व्रत महिलाओं को अपने पति के प्रति निष्ठा और प्रेम को प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है. हालांकि, आजकल कई पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ इस व्रत को रखते हैं, जो समर्पण और समानता का संदेश देता है.

सौंदर्य और साज-सज्जा का पर्व

करवा चौथ के दिन महिलाएँ विशेष रूप से सोलह श्रृंगार करती हैं. साज-सज्जा का यह पर्व नारी सौंदर्य और उसकी अभिव्यक्ति का प्रतीक है. महिलाएँ नई-नवेली दुल्हन की तरह सजती हैं और अपने पति के लिए खास रूप से तैयार होती हैं. मेंहदी, चूड़ियाँ, बिंदी, और साड़ी या लहंगा पहनने का यह अवसर नारीत्व की विशेषता को दर्शाता है.

आधुनिक समय में करवा चौथ

समय के साथ-साथ करवा चौथ की परंपराओं में भी परिवर्तन आया है. पहले यह व्रत पूरी तरह से धार्मिक दृष्टिकोण से मनाया जाता था, लेकिन आजकल इसका स्वरूप काफी बदल गया है. कई शहरी और आधुनिक परिवारों में करवा चौथ को एक फैशन और ग्लैमर से जुड़े त्योहार के रूप में भी देखा जाने लगा है. विभिन्न मीडिया चौनलों और सोशल मीडिया पर इस त्योहार का अत्यधिक प्रचार होता है, जिससे इसका व्यावसायीककरण भी बढ़ा है.

फिल्मों और टीवी सीरियल्स में करवा चौथ

भारतीय फिल्मों और टीवी सीरियल्स ने करवा चौथ को विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया है. फिल्मों में करवा चौथ के दृश्य खासकर शाहरुख खान की फिल्मों में रोमांटिक दृश्यों के साथ जुड़ते रहे हैं. ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ जैसी फिल्में इस त्योहार को मुख्यधारा में लाने का प्रमुख कारण रही हैं.

व्यावसायिक पहलू

करवा चौथ के अवसर पर गहने, कपड़े, मेकअप, और मेंहदी से जुड़े व्यापार में तेजी आती है. बाजारों में इस दिन से संबंधित चीजों की मांग बढ़ जाती है, जो इस पर्व के व्यावसायिक पक्ष को भी दर्शाता है.

समानता की दिशा में बढ़ता कदम

हाल के वर्षों में करवा चौथ के व्रत में पुरुषों की भागीदारी भी बढ़ने लगी है. कई पुरुष अब अपनी पत्नियों के साथ यह व्रत रखते हैं, जो एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है. यह न केवल लिंग समानता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि पति-पत्नी के बीच के संबंधों में आपसी समझ और समर्थन को भी मजबूत करता है.

करवा चौथ का त्योहार भारतीय समाज में गहरे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का पर्व है. यह सिर्फ एक व्रत या धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम, सम्मान, और समर्पण का प्रतीक है. इस त्योहार के पीछे की कहानियाँ और परंपराएँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करती हैं. आधुनिक समय में भले ही इसके रूप और स्वरूप में बदलाव आया हो, लेकिन इसके मूल्यों और सिद्धांतों में कोई कमी नहीं आई है. करवा चौथ आज भी परिवार और समाज के बंधनों को मजबूत करने का महत्वपूर्ण माध्यम बना हुआ है.