मकर संक्रांति के पीछे की कहानी क्या है?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 14-01-2025
What is the story behind Makar Sankranti?
What is the story behind Makar Sankranti?

 

राकेश चौरासिया 

भारत त्योहारों की भूमि है और हर त्योहार अपने आप में एक अद्वितीय कहानी और परंपरा समेटे हुए है. इन्हीं त्योहारों में से एक है मकर संक्रांति. यह पर्व देश के कोने-कोने में अलग-अलग नाम और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है. मकर संक्रांति न केवल धार्मिक बल्कि खगोलीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है.

मकर संक्रांति सूर्य की उपासना का पर्व है. इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. इसे सूर्य के उत्तरायण होने का संकेत भी माना जाता है. मकर संक्रांति से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी. माना जाता है कि अब सर्दियां कम होंगी. यह बदलाव न केवल प्राकृतिक रूप से बल्कि जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है.

पौराणिक कथा

मकर संक्रांति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. इनमें से एक कथा भगवान विष्णु और असुरों से जुड़ी है. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का संहार कर उनके सिरों को मंदराचल पर्वत के नीचे दबा दिया था. यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.

एक अन्य कथा महाभारत काल से जुड़ी है. कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए मकर संक्रांति का ही दिन चुना था, क्योंकि इस दिन देह त्यागने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

खगोलीय दृष्टि से मकर संक्रांति

खगोलीय दृष्टि से मकर संक्रांति का महत्व इसलिए है, क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर होता है. पृथ्वी की कक्षा और सूर्य की स्थिति के आधार पर मकर संक्रांति का दिन हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है. सामान्यतः यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह 15 जनवरी को भी होता है.

क्षेत्रीय विविधताएं

मकर संक्रांति पूरे भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाई जाती है

उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में इसे खिचड़ी के त्योहार के रूप में मनाते हैं. इस दिन तिल और गुड़ का सेवन और दान पुण्य का विशेष महत्व होता है.

पश्चिम भारत: महाराष्ट्र में इसे संक्रांत कहा जाता है. महिलाएं इस दिन ‘हल्दी-कुमकुम’ का आयोजन करती हैं और तिल-गुड़ बांटती हैं.

दक्षिण भारत: तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है. यह फसल कटाई का पर्व है और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का समय है.

पूर्वोत्तर भारत: असम में इसे भोगाली बिहू के रूप में मनाया जाता है. यहां फसल कटाई के बाद सामूहिक भोज का आयोजन होता है.

पंजाब: मकर संक्रांति से एक दिन पहले पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है. लोहड़ी भी मकर संक्रांति का ही एक रूप है. लोग लकड़ियों का अलाव जलाकर बंधु-बांधवों सहित इकट्ठे होकर मूंगफली और रेवड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं और नाच-गान करते हैं.

तिल और गुड़ का महत्व

मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ खाने और बांटने की परंपरा है. यह परंपरा सामाजिक सद्भाव और मिठास का प्रतीक है. तिल ऊर्जा और गर्मी प्रदान करता है, जबकि गुड़ स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है.

पतंग उत्सव

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा भी बहुत लोकप्रिय है. खासकर गुजरात, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों में इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. पतंगबाजी के माध्यम से लोग अपने उत्साह और जोश को प्रकट करते हैं. यह आसमान में रंगीन पतंगों का नजारा देखने लायक होता है.

दान-पुण्य की परंपरा

मकर संक्रांति पर दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन तिल, गुड़, कंबल, कपड़े, और अन्न का दान करना शुभ माना जाता है. इसे समाज में समानता और सद्भावना बढ़ाने का माध्यम भी माना गया है.

आधुनिक समय में मकर संक्रांति

आज के समय में मकर संक्रांति केवल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व नहीं रह गया है, बल्कि यह सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी प्रतीक बन गया है. लोग इस दिन को पारंपरिक रूप से मनाने के साथ-साथ आधुनिक तरीकों से भी जश्न मनाते हैं.

मकर संक्रांति 2025 कब है ?

इस वर्ष 2025 में मकर संक्रांति पौष माह के खत्म होने के एक दिन बाद मनाई जाएगी. 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा और इसके अगले दिन, यानी 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा. साथ ही प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत भी 13 जनवरी से होगी, और मकर संक्रांति के दिन पहला शाही स्नान होगा.

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति पर साधु-संत और गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग गंगा, यमुना, त्रिवेणी, नर्मदा और शिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे उत्तरायण का शुभ आरंभ माना जाता है. इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गंगा स्नान, सूर्यदेव की पूजा और दान का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व पौष महीने में मनाया जाता है, लेकिन इस बार यह पौष माह के समाप्त होने के बाद मनाया जाएगा.

मकर संक्रांति 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त:

  • इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व मंगलवार, 14 जनवरी को मनाया जाएगा.
  • सूर्य का मकर राशि में प्रवेश: सुबह 09.03 बजे.
  • पुण्य काल मुहूर्त: सुबह 08.40 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक.
  • महापुण्य काल मुहूर्त: सुबह 08.40 बजे से 09.04 बजे तक.
  • स्नान का शुभ मुहूर्त: सुबह 09.03 बजे से 10.48 बजे तक.

प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत

13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ होगा. इसके अगले दिन, मकर संक्रांति पर पहला शाही स्नान होगा. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान गंगा, यमुना, और सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करने से जीवन धन्य हो जाता है. कुंभ में सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, और किन्नर भी उपस्थित माने जाते हैं.

मकर संक्रांति पर पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें.
  • किसी पवित्र नदी में स्नान करें.
  • स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें.
  • सूर्यदेव से जुड़े मंत्रों का जाप करें.
  • तिल-गुड़ का दान करें और खिचड़ी बनाकर देवताओं को अर्पित करें.

मकर संक्रांति केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रकृति, खगोलीय घटनाओं, और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है. गंगा स्नान, सूर्यदेव की पूजा, और दान की परंपरा इस त्योहार को खास बनाती है. प्रयागराज में महाकुंभ के साथ, इस बार मकर संक्रांति और भी भव्य और पवित्र होगी. हर व्यक्ति को इस दिन स्नान, दान, और पूजा करके अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए. यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार कैसे किया जाए. तिल-गुड़ की मिठास और दान-पुण्य की भावना हमें अपने जीवन को और अधिक मधुर और सार्थक बनाने की प्रेरणा देती है.