राकेश चौरासिया
मुहर्रम के महीने में ‘कत्ल की रात‘ को शहीदों की याद में मनाया जाता है. यह रात दसवीं मुहर्रम की होती है, जब इमाम हुसैन और उनके साथियों को कर्बला की लड़ाई में शहीद कर दिया गया था.
इस रात को लोग मातम मनाते हैं, नौहा करते हैं और इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.
महत्वपूर्ण रस्म-रिवाज
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ताजिएः इस रात, लोग इमाम हुसैन और उनके परिवार के मकबरे (ताजिए) की शोभायात्रा निकालते हैं.
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मातमः शोक मनाने के लिए लोग सीनाजोरी करते हैं, हथियारबंद करतब करते हैं और नौहा गाते हैं.
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अलमः इमाम हुसैन के झंडे (अलम) को भी इस जुलूस में शामिल किया जाता है.
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खून का छिड़कावः कुछ लोग इमाम हुसैन की शहादत का प्रतीक स्वरूप अपने सीने पर खून का छिड़काव करते हैं.
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निसर : लोग निसर (मिठाई, फल और फूल) ताजिए पर चढ़ाते हैं.
धार्मिक महत्व
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कत्ल की रात शिया मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखती है.
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यह इमाम हुसैन की कुरबानी और सच के लिए लड़ाई को याद करने का समय है.
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यह रात शिया मुसलमानों को धैर्य, साहस और बलिदान की प्रेरणा देती है.
‘कत्ल की रात’ मुहर्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह शहीदों की याद में शोक मनाने और धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने का समय है.