राकेश चौरासिया
नई दिल्ली. रमजान के पवित्र महीने में लोग रोजा के साथ इबादत तो करते ही हैं, जकात और फितरा भी अदा करते हैं. ये दोनों ही मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक दायित्व हैं. हालांकि, इन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी हैं. आइए जानते हैं कि जकात और फितरा में समानता और अंतर क्या हैं.
जकात
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जकात इस्लाम के 5 सुतूनों में से एक है.
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यह निश्चित मात्रा में दिया जाने वाला वार्षिक दान है.
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यह केवल उन मुसलमानों पर फर्ज है, जिनके पास एक निश्चित मात्रा में संपत्ति है.
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जकात हर उस साहिबे निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या इतनी रकम हो.
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परिवार में पांच सदस्य हैं और उन सभी को नौकरी, व्यापार या किसी तरह आमदनी होती है, तो सभी सदस्यों पर जकात फर्ज है.
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जकात का भुगतान रमजान के महीने में किसी भी समय किया जा सकता है.
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जकात साल में केवल रमजान के महीने में एक बार फर्ज है.
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ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान का फर्ज होता है.
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जकात गरीबों, विधवा महिलाओं, यतीम बच्चों, बीमारों, जरूरतमंदों, कर्जदारों, और मुसाफिरों को दिया जा सकता है.
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अगर हैसियतमंद मुसलमान अल्लाह की रजा में जकात नहीं देते हैं, वो गुनाहगारों में शुमार हैं.
फितरा
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यह रमजान के महीने में अदा किया जाने वाला एक निश्चित राशि का दान है.
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यह हर मुसलमान पर फर्ज है, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो.
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फितरा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है.
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फितरा ईद-उल-फित्र से पहले अदा किया जाता है.
जकात और फितरा इस्लाम के उसूलों के हिसाब से के लिए महत्वपूर्ण मजहबी फर्ज हैं. अल्लाह ने ऐसे शख्स के तौर पर चुना है, जो साहिबे-निसाब है. हैसियतदार मुसलमानों को जरूर जकात देनी चाहिए. इससे गरीब और जरूरतमंद भी ईद के मौके पर त्योहार मना सकेंगे. दीगर मुसलमान अपनी हैसियत के हिसाब से फितरा कर सकते हैं. इससे अल्लाह राजी होगा और आपको सवाब देगा.
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