राकेश चौरासिया
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने का नाम है और यह इस्लामी इतिहास का महत्वपूर्ण समय है. इस माह के पहले 10 दिनों को विशेष रूप से शिया मुसलमानों द्वारा इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है. मुहर्रम के दौरान जो ताजिए बनाए जाते हैं, वे इमाम हुसैन, इमाम हसन और उनके साथियों के शहीद होने की याद में बनाए जाते हैं. ये ताजिए गहनों और विभिन्न प्रकार की सजावट से सजे होते हैं और इन्हें अत्यंत श्रद्धा के साथ उठाया जाता है. मुहर्रम के बाद ताजियों का क्या होता है, इस प्रश्न का उत्तर धार्मिक, सांस्कृतिक और स्थानीय परंपराओं पर निर्भर करता है. यह इस्लामी समाज के विभिन्न वर्गों में अलग-अलग होता है. यहां पर यह समझना महत्वपूर्ण है कि ताजिए धार्मिक प्रतीक हैं और इन्हें विशेष देखभाल के साथ संभाला जाता है.
ताजिए बनाने की प्रक्रिया बहुत ही सावधानीपूर्वक और धैर्य के साथ की जाती है. ये ताजिए मुख्य रूप से बांस, कागज, कपड़ा, और सजावटी सामग्री से बनाए जाते हैं. इन्हें रंग-बिरंगे कागज, फूलों और कपड़े से सजाया जाता है, जिससे ये देखने में बेहद आकर्षक और धार्मिक महत्व वाले प्रतीत होते हैं.
ताजिए का जुलूस
मुहर्रम के दसवें दिन को ‘आशूरा’ कहा जाता है, जिस दिन ताजियों के जुलूस निकाले जाते हैं. इस दिन लोग ताजियों को उठाकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं. यह जुलूस कई स्थानों पर होता है और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं. जुलूस में ताजिए को लेकर लोगों की आस्था और श्रद्धा दिखाई देती है.
ताजियों का विसर्जन
खरगौन में ताजियों का जल में विसर्जन
मुहर्रम के बाद ताजियों के साथ क्या किया जाता है, यह क्षेत्रीय परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं पर निर्भर करता है. अधिकांश स्थानों पर ताजियों का जल में विसर्जन किया जाता है. कुछ स्थानों पर ताजियों को वापस इमामबाड़े में लाकर आदरपूर्वक रख दिया जाता है.
पुनः प्रयोग
कुछ स्थानों पर, विशेष रूप से जहां प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती है, वहां ताजियों की सामग्री को पुनः प्रयोग में लाया जाता है. इनमें से कुछ ताजिए अगले वर्ष के मुहर्रम के लिए संरक्षित किए जाते हैं. इस प्रक्रिया में ताजियों को सावधानीपूर्वक रखा जाता है, ताकि वे क्षतिग्रस्त न हों.
सांस्कृतिक परंपराएं
कुछ स्थानों पर ताजियों के विसर्जन की बजाय उन्हें एक पवित्र स्थान पर संरक्षित किया जाता है. इसे एक धार्मिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है और ताजियों को संरक्षित कर उन्हें एक धार्मिक धरोहर के रूप में देखा जाता है. इसे आगामी पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाता है, ताकि वे इस परंपरा के महत्व को समझ सकें.
धार्मिक अनुष्ठान
ताजियों के विसर्जन या संरक्षण के समय विशेष धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं. इन अनुष्ठानों में धार्मिक नेताओं द्वारा प्रार्थनाएं की जाती हैं और धार्मिक गीत गाए जाते हैं. यह सब ताजियों के प्रति सम्मान और श्रद्धा को दर्शाने के लिए किया जाता है.
ताजिए का सामाजिक प्रभाव
ताजिए केवल धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे समाज में सांप्रदायिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी हैं. मुहर्रम के समय मुस्लिम समुदाय के लोग एकत्रित होते हैं और साथ में ताजिए का निर्माण करते हैं, उन्हें सजाते हैं और जुलूस निकालते हैं. इससे समुदाय में एकता और भाईचारा बढ़ता है.
क्षेत्रीय विविधताएं
भारत में मुहर्रम और ताजियों के साथ संबंधित परंपराएं अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न होती हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ताजियों के निर्माण और जुलूस में अलग-अलग व्यवहार किया जाता है.
ताजियों का इतिहास
ताजियों के निर्माण और उन्हें उठाने की परंपरा का इतिहास कई सदियों पुराना है. माना जाता है कि यह परंपरा भारत में मुगल काल के दौरान शुरू हुई थी. ताजियों का निर्माण और उनके साथ संबंधित परंपराएं समय के साथ बदलती गईं, लेकिन आज भी उनका धार्मिक महत्व बना हुआ है.
मुहर्रम के बाद ताजियों का क्या किया जाता है, यह इस्लामी समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक परंपराओं पर निर्भर करता है. ताजियों को विसर्जित करना, उन्हें संरक्षित करना, या उनका पुनः प्रयोग करना, ये सभी प्रक्रिया समाज के धार्मिक विश्वास और स्थानीय परंपराओं से जुड़ी होती हैं. आधुनिक समय में पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए ताजियों के साथ संबंधित परंपराओं में बदलाव आ रहे हैं, लेकिन ताजियों का धार्मिक महत्व आज भी कायम है.