वीर अब्दुल हमीद बने एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम का हिस्सा 

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-09-2024
Veer Abdul Hameed became part of NCERT syllabus
Veer Abdul Hameed became part of NCERT syllabus

 

आवाज द वाॅयस / नई दिल्ल

 देशभर में स्कूली छात्र अब 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' को विषय में पढ़ सकेंगे. छात्रों की पाठ्य पुस्तक में 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' को लेकर पाठ्य सामग्री शामिल की गई है. इसके साथ ही 'वीर अब्दुल हमीद' पर एक अध्याय स्कूली पुस्तकों में शामिल किया गया है. 

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, कक्षा छह के एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' पर कविता और 'वीर अब्दुल हमीद' पर अध्याय शामिल किया गया है.अब्दुल हमीद भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर के जवान (सीक्यूएमएच) थे.

उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेमकरण सेक्टर के आसल उत्ताड़ में लड़े गए युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की थी. इसके लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सेना पुरस्कार 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया था.

शहीद होने से पहले परमवीर अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउन्टेड जीप से पाकिस्तान के पैटन टैंकों को नष्ट किया था.राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुरूप अब ये पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं.

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' कविता और 'वीर अब्दुल हमीद' नामक अध्याय को इसी वर्ष से कक्षा छह के एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. यह रक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय की संयुक्त रूप से शुरू की गई पहल है.

इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों में देशभक्ति, कर्तव्य के प्रति समर्पण, साहस और बलिदान के मूल्यों को विकसित करना है. इसके साथ ही इसका उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना भी है.

कविता, 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' के पीछे की भावना की सराहना करती है। वहीं, 'वीर अब्दुल हमीद' नामक यह अध्याय वीर अब्दुल हमीद का सम्मान करता है. जिन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश के लिए लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया था.

गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी 2019 को प्रतिष्ठित सेंट्रल विस्टा 'सी' हेक्सागोन, इंडिया गेट, नई दिल्ली में 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' राष्ट्र को समर्पित किया था. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की स्थापना प्रत्येक नागरिक में उच्च नैतिक मूल्यों, बलिदान, राष्ट्रीय भावना और अपनेपन की भावना पैदा करने और उन सैनिकों को उचित श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

रक्षा मंत्रालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और उससे संबंधित सामग्री को शामिल करने के लिए शिक्षा मंत्रालय व एनसीईआरटी के साथ सहयोग किया है.

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बचपन से ही निशानेबाजी और कुश्ती में रही दिलचस्पी

वीर हमीद पर दैनिक जागरण अखबार विस्तृत रिपोर्ट छाप चुका है. उक्त रिपोर्ट के अनुसार,वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 में हुआ था.

बचपन में ही उन्होंने भारतीय सेना का हिस्सा बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था. इनके पिता पेशे से दर्जी थे.आर्मी का हिस्सा बनने से पहले वो अपने पिता की मदद करते थे. हालांकि, इसमें उन्हें खास दिलचस्पी नहीं थी. उनकी दिलचस्पी लाठी चलाने, कुश्ती करने और निशानेबाजी में थी.

पत्ते खाकर जिंदा रहे वीर हमीद

20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी. ट्रेनिंग के बाद उन्हें 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली. 1962 की लड़ाई के दौरान उनको  7 माउंटेन ब्रिगेड, 4 माउंटेन डिवीजन की ओर से युद्ध के मैदान में भेजा गया.

उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने बताया कि शादी के बाद यह उनका पहला युद्ध था, जिस दौरान वह जंगल में भटक गए थे और कई दिनों बाद घर लौटे थे। रसूलन बीबी ने यह भी बताया कि उस दौरान हामिद ने पत्ते खाकर खुद को जिंदा रखा था.
  
युद्ध के 10 दिन पहले छुट्टी पर आए थे हमीद

8 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के केमकपण सेक्टर में तैनात थे. युद्ध के 10 दिन पहले ही वो छुट्टी पर अपने घर गए थे. इसी बीच, पाक की ओर से तनाव बढ़ने लगा, जिसके बाद सभी जवानों को ड्यूटी पर वापस बुलाया गया.

कहा जाता है कि वापसी की तैयारियों के दौरान उनके साथ कई अपशगुन हुए थे, जिसके कारण उनका परिवार उन्हें जाने से मना कर रहा था, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी.

अजेय कहे जाने वाली टैंक को बनाया निशाना

पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया. उस समय ये अमेरिकन टैंक अपराजेय माने जाते थे. अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी.

उसी दौरान उन्हें टैंकों के आने की आवाज सुनाई दी और कुछ ही देर में टैंक दिखने भी लग गया. इसके बाद हामिद ने गन्ने के खेत का फायदा उठाया और वहीं छिप गए.

चार पाकिस्तानी टैंकों को मिट्टी में मिलाया

वह इंतजार कर रहे थे कि पाकिस्तानी टैंक उनके रिकॉयलेस की रेंज में आए और वो दुश्मनों के टैंक को मिट्टी में मिला दें और ऐसा ही हुआ। उस दौरान अब्दुल के साथ ड्राइवर की सीट पर उनका एक साथी भी मौजूद था. उनके साथी ने बताया कि जैसे ही टैंक उनकी रेंज में आया, उन्होंने फायरिंग करते हुए एक साथ चार पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया.

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परमवीर चक्र के लिए भेजी गई सिफारिश

इस बात की जानकारी 9 सितंबर, 1965 को आर्मी हेडक्वार्टर मे पहुंच गई और उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश की गई. इसके अगले दिन यानि 10 सितंबर को अब्दुल ने अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान के तीन अन्य टैंकों को भी ध्वस्त कर दिया.

आठवीं टैंक को ध्वस्त करते हुए दिया बलिदान

तीन टैकों को ध्वस्त करने के बाद अब्दुल एक और टैंक को निशाना बनाने जा रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना की नजर उन पर पड़ गई. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने चारों ओर से फायरिंग शुरू कर दी। हालांकि, इसके बाद भी अब्दुल डटे रहे और पाकिस्तानी सेना की आठवीं टैंक को भी ध्वस्त कर दिया. चारों ओर से निशाना बनाए जाने के कारण वतन के वीर पुत्र ने अपनी जिंदगी की कुर्बानी दे दी.

मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित

अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. इसके बाद 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का डाक टिकट जारी किया. इस डाक टिकट पर वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर थी, जिसमें वो रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार नजर आ रहे हैं.

अमेरिका तक गूंजी थी हमीद की बहादुरी

वीर अब्दुल हमीद की बहादुरी की गूंज अमेरिका तक पहुंच गई थी. अमेरिका हैरान था कि उनके अजेय कहे जाने वाली टैंक को एक साधारण दिखने वाली रिकॉयलेस गन से कैसे ध्वस्त किया जा सकता है. अमेरिका ने अपने अजेय टैंक की दोबारा समीक्षा की थी. आज भी यह अमेरिका के लिए पहेली बनी हुई है कि आखिर एक साधारण गन से उनके टैंकों को किस तरह से नष्ट किया गया है.