साकिब सलीम
उषा मेहता का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन अनगिनत नायकाओं में शामिल है, जिन्होंने अपने साहस और प्रतिबद्धता से इतिहास रचा. उषा ने अपनी युवा अवस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और एक ऐसी भूमिका निभाई, जो आज भी याद की जाती है.
उन्हें "कांग्रेस की रेडियो गर्ल" के नाम से भी जाना जाता है, और उनके बारे में एक दिलचस्प कहानी है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के हर पाठक के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है.
कांग्रेस रेडियो केस और उषा मेहता की गिरफ्तारी
कांग्रेस रेडियो केस एक महत्वपूर्ण और साहसी कदम था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक संवेदनशील मोड़ पर उठाया गया था. यह घटना 1942 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के "भारत छोड़ो आंदोलन" के दौरान घटी, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था.
ब्रिटिश सरकार के दबाव और अपने नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद कांग्रेस के नेताओं ने आंदोलन को जारी रखने के लिए एक नया रास्ता खोजा. यह रास्ता था एक भूमिगत रेडियो स्टेशन की स्थापना, जिसे उषा मेहता और उनके साथियों ने शुरू किया.
उषा मेहता, जो उस समय महज 22 साल की थीं, ने अपने जीवन के सबसे साहसिक निर्णयों में से एक लिया. उन्होंने देखा कि जब प्रेस और अन्य प्रचार माध्यमों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब एक स्वतंत्र रेडियो स्टेशन लोगों तक आंदोलन की जानकारी पहुँचाने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता था. इसी सोच के साथ उषा और उनके साथियों ने कांग्रेस रेडियो स्थापित किया.
इस रेडियो स्टेशन से कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता था, जिनमें स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के भाषण, समाचार बुलेटिन, और गाने शामिल थे.
ये कार्यक्रम ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स से प्रसारित किए जाते थे, और इसमें प्रमुख समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया द्वारा लिखे गए भाषणों को भी शामिल किया गया था. रेडियो के कार्यक्रमों का संचालन उषा मेहता और उनके साथी चंद्रकांत झावेरी करते थे.
ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस रेडियो के प्रसारण का पता लगाने के लिए कई विभागों से मिलकर एक अभियान चलाया. 12 नवंबर 1942 को यह रेडियो स्टेशन पकड़ लिया गया, जब पुलिस ने गिरगांव बैक रोड पर स्थित एक इमारत के पाँचवे मंजिल पर रेडियो सेट का पता लगाया. इस दौरान उषा मेहता और चंद्रकांत झावेरी को गिरफ्तार कर लिया गया.
कांग्रेस रेडियो के कार्य और उद्देश्य
कांग्रेस रेडियो का उद्देश्य केवल स्वतंत्रता संग्राम के प्रचार तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका मकसद भारतीय जनता को ब्रिटिश साम्राज्य की क्रूरता और संघर्ष की ताजातरीन जानकारी देना भी था.
इस रेडियो से प्रसारित होने वाली जानकारी में ब्रिटिश सेना की जुल्मतों को उजागर किया जाता था, जैसे कि चिमूर में हुए सामूहिक बलात्कारों का खुलासा. इसके अलावा, रेडियो के जरिए महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरदार पटेल और अन्य प्रमुख नेताओं के भाषणों को जनता तक पहुँचाया जाता था.
रेडियो के कार्यक्रमों की शुरुआत "हिंदुस्तान के हम हैं हिंदुस्तान हमारा" गीत से होती थी और अंत "वंदे मातरम" से किया जाता था. यह रेडियो हर दिन नए और प्रेरणादायक संदेशों के साथ जनता को जागरूक करता था. इन कार्यक्रमों का उद्देश्य लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाना और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित करना था.
उषा मेहता की गिरफ्तारी और संघर्ष
उषा मेहता के लिए यह समय बहुत कठिन था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें मानसिक और शारीरिक यातनाएँ दी गईं. सीआईडी ने उनसे लगातार पूछताछ की, और उन्हें कई महीनों तक एकांत कारावास में रखा गया. उषा मेहता ने इस समय को मानसिक यातना के रूप में याद किया.
जेल अधिकारियों ने उन्हें विदेश में अध्ययन करने और अन्य लाभ देने की कोशिश की,
लेकिन उषा ने कभी भी अपने साथियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. उनका यह साहस और धैर्य उनकी दृढ़ निष्ठा का प्रतीक था.
उषा मेहता की गिरफ्तारी और उनके द्वारा दी गई सजा ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अडिग योद्धा के रूप में स्थापित किया. अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और उन्हें चार साल की कठोर सजा दी.
हालांकि, उषा ने अपना बचाव नहीं किया और न ही सजा के खिलाफ कोई अपील की. उनका मानना था कि यह संघर्ष देश के लिए था, और अगर इसके लिए उन्हें अपनी सजा स्वीकार करनी पड़ी तो वे इसके लिए तैयार थीं.
रिहाई और सम्मान
6 महीने की कठिनाई के बाद, उषा मेहता को यरवदा जेल से रिहा कर दिया गया. 1946 में जब कांग्रेस की प्रांतीय मंत्रिपरिषद बनी, तो उषा को रिहा किया गया.
रिहाई के बाद उन्हें मुंबई रेलवे स्टेशन पर भारी जनसमूह ने स्वागत किया. यह स्वागत न केवल उनके संघर्ष की जीत थी, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी निष्ठा और साहस का प्रतीक भी था.
एक साक्षात्कार में उषा मेहता ने कहा कि जब वे अपनी रिहाई के बाद मुंबई के रेलवे स्टेशन पर आईं, तो एक वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें भगवान कृष्ण की एक छोटी चांदी की मूर्ति दी.
यह क्षण उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था, और उन्होंने इसे अपनी माँ को समर्पित कर दिया, जो भगवान कृष्ण की भक्त थीं। इस घटना ने उषा के लिए एक नई उम्मीद और आस्था का संचार किया.
उषा मेहता की कहानी न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक युवा लड़की ने अपनी निष्ठा और साहस से इतिहास को बदलने में योगदान दिया.
उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम की यादों में हमेशा जीवित रहेगा, और उनकी कड़ी मेहनत, बलिदान, और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा.उषा मेहता ने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए न केवल साहस, बल्कि एक ठान लिया हुआ इरादा भी आवश्यक होता है.