असम की अनुपम सांझी संस्कृति

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 19-08-2023
असम की अनुपम सांझी संस्कृति
असम की अनुपम सांझी संस्कृति

 

-फ़िरदौस ख़ान 
 
देश के उत्तर पूर्व में स्थित असम अपने नाम के अनुरूप ही अनुपम है. प्रकृति ने इसे अपार सौन्दर्य प्रदान किया है. यहां के पहाड़, यहां की घाटियां, यहां की नदियां, यहां के झरने, यहां के हरेभरे वन और मैदान प्रकृति का अनुपम उपहार ही तो हैं. भूटान, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा से घिरे इस राज्य की सांस्कृतिक विरासत भी उतनी ही अनुपम है, जितनी अद्वितीय यहां की नैसर्गिक सुन्दरता है.    

अहोम राजाओं का शासन 

असम का इतिहास बहुत पुराना है. ब्रिटिश हुकूमत से पहले तक़रीबन छह सौ बरस तक यहां अहोम राजाओं का शासन था. प्राचीनकाल में असम प्राग्ज्योतिष यानी पूर्वी ज्योतिष का स्थल कहलाता था. बाद में इसे कामरूप कहा जाने लगा.
 
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में समुद्रगुप्त के शिलालेख में इसका ज़िक्र मिलता है. चीनी यात्री ह्वेनसांग तक़रीबन 743 ईस्वी में राजा कुमारभास्कर वर्मन के बुलावे पर यहां आया था. उसने कामरूप का ज़िक्र कामोलुपा के तौर पर किया है.
 
ग्यारहवीं सदी के अरब के इतिहासकार अलबरूनी ने भी कामरूप का ज़िक्र किया है. इनसे मिली जानकारी के मुताबिक़ प्राचीन काल से लेकर बारहवीं सदी तक पूर्वी सीमांत देश को प्राग्ज्योतिष और कामरूप कहा जाता था. इसके शासक ख़ुद को प्राग्ज्योतिष नरेश कहलवाया करते थे.   
 
असम के नामकरण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं. कुछ विद्वानों का कहना है कि असम शब्द संस्कृत के असोमा से बना है, जिसका मतलब है अद्वितीय. कुछ विद्वान मानते हैं कि यह शब्द मूल रूप से अहोम से बना है.
 
muslims assam
 
कर्णप्रिय लोकसंगीत 

असम की सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध है. यहां का संगीत बहुत कर्णप्रिय है. इसे समृद्ध करने में जितना योगदान यहां के संगीतकारों, गायकों और कलाकारों का है, उतना ही योगदान यहां के जनमानस का भी है.
 
असम के लोगों को संगीत बहुत पसंद है. वे हर मौक़े पर गीत गाते और गुनगुनाते हैं. खेतों और चाय बाग़ानों में काम करते हुए श्रमिक गीत गाते हैं. इन गीतों की वजह से कुछ वक़्त के लिए वे अपने दुख-दर्द भूल जाते हैं. वे धान कूटते हुए भी गाते हैं और सूत कातते हुए भी गाते हैं. 
 
यहां के लोक नृत्यों में बिहू, बागुरुम्बा, भोरट, झूमर और ओजापली आदि शामिल हैं. बिहू यहां का मुख्य पर्व है. यह साल में तीन बार मनाया जाता है. रंगाली बिहू या बोहाग बिहू फ़सल की बुआई के वक़्त मनाया जाता है, जबकि भोगली बिहू या माघ बिहू फ़सल के कटने पर मनाते हैं.
 
जब फ़सल पककर तैयार हो जाती है और कटने के बाद घर आ जाती है, तो किसान ख़ुशी से झूम उठते हैं. इसी ख़ुशी में वे उत्सव मनाते हैं और नाचते-गाते हैं. काती बिहू या कांगली बिहू शरद ऋतु में मनाया जाने वाला उत्सव है. इसमें नृत्य के साथ-साथ गायन भी होता है.
 
असम के गायकों और संगीतकारों ने अपनी संस्कृति का ख़ूब प्रचार-प्रसार किया और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. सुप्रसिद्ध गायक व संगीतकार भूपेन हज़ारिका ने असम की संस्कृति को देश-विदेश तक पहुंचाया.
 
वे कवि, पत्रकार और फ़िल्म निर्माता भी थे. बहुआयामी प्रतिभा के धनी भूपेन हज़ारिका दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माने जाते थे. भारत सरकार ने साल 2011 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था.
 
फिर मरणोपरान्त साल 2019 में उन्हें भारतरत्न से नवाज़ा गया. यहां के जुबिन गर्ग प्रसिद्ध गायक, संगीतकार, गीतकार, अभिनेता और निदेशक हैं. उन्होंने फ़िल्म ‘गैंगस्टर’ का सुपरहिट गाना ‘या अली’ गाया था, जिससे वे रातों-रात मशहूर हो गए थे. 
 
यहां के युवा गायक संतो तांती अपने झूमर शैली के गीत के लिए पसंद किए जा रहे हैं. यह एक पहाड़ी गीत है, जिसमें असम के सौन्दर्य का ज़िक्र किया गया है. जोरहाट ज़िले के ढेकियाजुली में रहने वाले संतो तांती साइकिल मरम्मत की एक दुकान में काम करते हैं. संगीत उनका शौक़ है. 
 
assam dance
 
वेशभूषा 

असम के पारम्परिक लिबास को मेखला चादर कहा जाता है. यह लिबास दो हिस्सों में होता है. नीचे पहनने वाला हिस्सा लम्बी स्कर्ट जैसा होता है, जिसे मेखला कहा जाता है. इसे जिस्म के चारों तरफ़ साड़ी की तरह लपेटा जाता है. जिस्म के ऊपर के हिस्से को चादर से लपेटा जाता है. चादर सफ़ेद रंग की होती है. इसकी पट्टियों पर छोटे-छोटे फूलों के सुन्दर चित्र बने हुए होते हैं. महिलाएं ब्लाउज़ भी पहनती हैं.
 
पुरुष जिस्म के ऊपरी हिस्से पर एक ख़ास तरह की चादर लपेटते हैं. इसके नीचे धोती बांधी जाती है. इसके अलावा मसोसा भी यहां के लिबास का एक अहम हिस्सा है. यह एक सूती आयताकार कपड़ा होता है. इसका सिर ढकने और तौलिया आदि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.  
 
मुस्लिम महिलाएं क़मीज़-सलवार और साड़ी पहनती हैं. यहां अब बुर्क़े, हिजाब और नक़ाब का चलन भी ख़ूब बढ़ गया है. पुरुष क़मीज़, कुर्ता, पाजयामा और धोती पहनते हैं. कुछ लोग टोपी भी पहनते हैं.   
 
assmi food
 
प्रमुख व्यंजन 

राज्य के पारम्परिक मुख्य व्यंजनों में थुकपा, खार और मसोर टेंगा आदि शामिल हैं. थुकपा नूडल सूप है. इसमें गोश्त और सब्ज़ियां होती हैं. यह शाकाहारी भी होता है. यह मूल रूप से तिब्बत का व्यंजन है, जिसे समूचे पहाड़ी इलाक़े में ख़ूब पसंद किया जाता है. अब उत्तर भारत में भी यह लोकप्रिय हो रहा है. 
 
खार गोश्त, केला, पपीता, लौकी, कद्दू व अन्य सब्ज़ियों से पकाया जाता है. इसमें मसाले और क्षेत्रीय जड़ी-बूटियां भी डाली जाती हैं. इसे चावल और रोटी के साथ खाया जाता है. यह मांसाहारी और शाकाहारी दोनों ही तरह का होता है. 
 
इसके अलावा मोमोज़ और झाल मुरी आदि व्यंजन नाश्ते के तौर पर खाये जाते हैं. झाल मुरी सेव, दाल, मूंगफली, टमाटर, प्याज़, हरा धनिया, नीम्बू और चाट मसाले डालकर बनाई जाती है. यहां की मिठाइयों में गूरोर पायस और पीठा बहुत लोकप्रिय है. गूरोर पायस एक तरह की खीर है.
 
यह टूटे हुए चावल और दूध से पकाई जाती है. इसे सूखे मेवों से सजाया जाता है. पीठा चावल के आटे में नारियल और गुड़ या नमक मिलाकर पकाया जाता है. यह भाप में, तलकर और आग में सेंककर तीनों ही तरह से बनाया जाता है.
 
आस्था की धरोहर 

प्राचीन आस्ट्रिक या आग्नेय, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य आदि विभिन्न जातियां असम के पहाड़ों और घाटियों में आकर बस गई थीं. इसलिए यहां की संस्कृति पर इन सबका असर देखने को मिलता है. बताद्रव के संत शंकरदेव ने वैष्णव मत का प्रचार किया था.  
 
असम का कामाख्या मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है. इसके अलावा यहां महाभैरव मन्दिर, नवग्रह मन्दिर, शुक्रेश्वर मन्दिर, मदन कामदेव मन्दिर और हयग्रीव माधव मन्दिर आदि धार्मिक स्थल हैं. असम में विभिन्न मज़हबों और पंथों को मानने वाले लोग रहते हैं. इसलिए यहां होली, दशहरा, दिवाली, ईद और क्रिसमस आदि त्यौहार हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं. इसके अलावा यहां के लोग क्षेत्रीय पर्व भी ख़ूब धूमधाम से मनाते हैं.   
 
mosqu
 
इस्लाम का असर  

असम में सूफ़ियों ने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. इसलिए यहां इस्लाम का असर देखने को मिलता है. यहां मस्जिदें, ईदगाह, दरगाहें और मदरसे भी हैं. शिवसागर ज़िले के सारागुरी चापोरी में अज़ान पीर की दरगाह है. उन्हें हज़रत शाह मीरान नाम से भी जाना जाता है. वे अज़ान दिया करते थे, इसलिए लोग उन्हें अज़ान पीर कहने लगे. 
 
वे सत्रहवीं सदी में इराक़ के शहर बग़दाद से यहां आए थे. उन्होंने यहां की एक अहोम महिला से विवाह किया और शिवसागर के क़रीब ही मोरगांव में बस गए. उनकी मातृभाषा अरबी थी, लेकिन उन्होंने यहां आकर असमिया सीखी और फिर इसी भाषा में भक्ति काव्य की रचना की. उनकी रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुईं.
 
उन्होंने लोगों को प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का संदेश दिया. लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे. वक़्त के साथ-साथ उनके मुरीदों की तादाद बढ़ती गई.  भेला बारपेटा ज़िले के खंडारकरपारा में हज़रत सैयद शाहनूर दीवान रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है.
 
वे लोगों का रूहानी इलाज किया करते थे. कहा जाता है कि उन्होंने अहोम राजा शिव सिंह की पत्नी रानी फुलेश्वरी का भी इलाज किया था. इससे ख़ुश होकर राजा ने उन्हें धन और ज़मीन उपहार स्वरूप दी थी. उनकी ख्याति भी दूर-दूर तलक फैली हुई थी. 
 
गुवाहाटी के सीजूबारी में हज़रत शाह मख़दूम शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. वे बग़दाद से हिन्दुस्तान आए थे. वे अजमेर और दिल्ली में कुछ वक़्त रहने के बाद असम आ गए. उन्होंने लोगों को नेकी का रास्ता दिखाया और बुराई से रोका. लोग अपनी परेशानियों के हल के लिए भी उनके पास आते थे.
 
गुवाहटी के उलूबरी में हज़रत ज़हीर औलिया रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. वे इस्लाम के प्रचार के लिए अरब से हिन्दुस्तान आए थे. कहा जाता है कि उन्होंने अपने आसपास के लोगों को बहुत दुख-दर्द और तकलीफ़ में देखा था. उन्हें यहां के बाशिन्दों से हमदर्दी थी. इसलिए उन्होंने उनकी मदद करने का फ़ैसला किया और उलूबरी में ही बस गए. वे इबादत के साथ-साथ ख़िदमते ख़ल्क को बहुत अहमियत देते थे.      
 
सिमिना कामरूप में हज़रत शाह सैयद नसीरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. उन्होंने भी यहां इस्लाम का प्रचार किया और लोगों को सच के रास्ते पर चलने का संदेश दिया. इनके अलावा हज़रत बीबी मरयम दरगाह और पंच पीर की दरगाह भी ज़ायरीनों की अक़ीदत का मर्कज़ बनी हुई है. 
 
यहां की सभी दरगाहों पर उर्स के दौरान मेले लगते हैं. उर्स में शिरकत करने के लिए दूर-दूर से जायरीन आते हैं और मन्नते मांगते हैं. इनमें हिन्दुओं की तादाद बहुत ज़्यादा होती है. दरगाहों पर चादरें चढ़ाई जाती हैं, फूल पेश किए जाते हैं और तबर्रुक तक़सीम किया जाता है. ये दरगाहें साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक हैं. 
 
assam muslims
 
पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था 

देश के सभी पूर्वोत्तर राज्यों में असम की अर्थव्यावस्थाा सबसे बड़ी मानी जाती है. यहां की प्राकृतिक सम्पदा बहुत समृद्ध है. यहां की ज़मीन उपाजाऊ है. यहां वन्य सम्पदा और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं. यहां तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला और रबड़ आदि की बहुतायत है. इसके अलावा यहां खनिज जैसे ग्रेनाइट और चूना पत्थेर आदि का भी ज़ख़ीरा है. 
 
यह एक कृषि प्रधान राज्य है. यहां की दो तिहाई से ज़्यादा आबादी खेती करती है. यहां की प्रमुख फ़सलों में धान, मक्का, दलहन, तिलहन चाय, गन्ना, आलू, जूट और कपास आदि शामिल हैं. यहां नारियल, आम, संतरा, अनन्नास, अमरूद, केला, कटहल, नीम्बू और सुपारी आदि की बाग़वानी भी होती है. 
 
यहां अगर के पेड़ पाए जाते हैं, जिससे कन्नौज में दुनिया का सबसे महंगा इत्र अगरऊद बनाया जाता है. इसकी ख़ुशबूदार लकड़ी बहुत ज़्यादा महंगी होती है. इसलिए इसका इत्र भी बहुत ही महंगा होता है. अगरऊद के एक किलो इत्र की क़ीमत तक़रीबन 50 लाख रुपये है. 
 
यहां बड़े ही नहीं, मझौले और कुटीर उद्योग भी बहुत उन्नति कर रहे हैं. कुटीर उद्योगों में हस्तशिल्प, हथकरघा, ग़लीचे बनाना, लकड़ी का फ़र्नीचर व अन्य सामान बनाना, केन और बांस की चीज़ें बनाना, धातु की चीज़ें बनाना, मूर्तियां बनाना और आभूषण बनाना आदि शामिल हैं.  
 
पर्यटन भी यहां आय का मुख्य साधन है. यहां पांच राष्ट्रीय पार्क और 11 वन्यजीव अभयारण्य और पक्षी विहार हैं.  काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक सींग वाले गैंडों और मानस राष्ट्रीय उद्यान रॉयल बंगाल टाइगर के लिए विश्व विख्यात है. माजुली विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है.
 
हस्तशिल्प और कलाकृतियां 

यह राज्य अपनी कलाकृतियों के लिए विख्यात है. यहां की धातु, लकड़ी और बांस की कलाकृतियां बहुत ही आकर्षक होती हैं. यहां का रेशम दुनियाभर में मशहूर है. रेशम की मूंगा क़िस्म का उत्पादन सिर्फ़ असम में ही होता है. यहां की ऊन भी बहुत अच्छी होती है. यहां की मूर्तियां और मुखौटे भी बहुत सुन्दर होते हैं.  
 
खेल 

असम के पारम्परिक खेलों में दौड़, तीरंदाज़ी, तलवारबाज़ी और धोपखेल आदि शामिल हैं. यहां क्रिकेट, फ़ुटबॉल, और वॉलीबॉल भी लोकप्रिय है. असम सरकार राज्य में खेलों को बढ़ावा दे रही है. इसके तहत आगामी पहली नवम्बर से 10 जनवरी तक राज्य में 'खेल महारण' नामक खेल कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. 
 
राज्य के पर्यटन मंत्री जयंत मल्ला बरुआ के मुताबिक़ यह कार्यक्रम राज्यभर में कई अलग-अलग चरणों में होगा. इसे ग्राम पंचायत, शहरी स्थानीय निकाय और वार्ड स्तर पर आयोजित किया जाएगा. जिला स्तर और राज्य स्तर पर भी इसका आयोजन किया जाएगा.
 
सभी प्रतिस्पर्धाएं पांच विधाओं एथलेटिक्स, फ़ुटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी और खो-खो में होंगी. मुक़ाबले चार आयु वर्गों में होंगे, जिनमें अंडर 19 अंडर और 19 से ऊपर के महिला और पुरुष शामिल हैं. जिला स्तरीय कार्यक्रम संबंधित खेल प्रतिष्ठानों में आयोजित किए जाएंगे, जबकि राज्य स्तरीय कार्यक्रम पांच शहरों गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, सिलचर, कोकराझार और दीफू में होंगे.
 
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)