इस सूफी संत की दरगाह पर हर रोज ट्रेनें देती हैं सलामी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 16-10-2024
 Barchi Bahadur Dargah
Barchi Bahadur Dargah

 

आवाज-द वॉयस / अलीगढ़

यहां के कटपुला इलाके में स्थित 750 साल पुरानी दरगाह ‘बाबा बरछी बहादुर की दरगाह’ एक ऐसी पवित्र और चमत्कारी जगह है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी धर्मों के लोग एक साथ आकर पूजा-अर्चना और इबादत करते हैं. यह दरगाह केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह स्थान भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सद्भावना का भी उत्कृष्ट उदाहरण है. यहाँ हर साल हजारों लोग आते हैं और अपनी मुरादें मांगते हैं, जिनके पूरा होने की मान्यता सदियों से चली आ रही है. आइए जानते हैं इस दरगाह से जुड़ी ऐतिहासिक और चमत्कारी कहानी,जो इसे और भी खास बनाती है.

बाबा बरछी बहादुर की दरगाह की स्थापना 750 साल पहले हुई थी. इतिहासकारों और स्थानीय लोगों के अनुसार, बाबा बरछी बहादुर का असली नाम सैयद तहबुर अली था. वह ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकवी के करीबी सहयोगी और अनुयायी थे, जो स्वयं अजमेर के मशहूर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे.

दरगाह के सदर नूर मोहम्मद बताते हैं कि बाबा बरछी बहादुर को एक पवित्र और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है, जिनके अनुयायी न केवल मुसलमान थे, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी उनसे प्रेरणा प्राप्त करते थे. उनके प्रमुख अनुयायी हजरत जोरार हसन ने बाबा की याद में उर्स की शुरुआत की, जो आज भी हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस उर्स में न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू, सिख और ईसाई समुदायों के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं.

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दरगाह को लेकर कई मान्यताएं और कहानियां जुड़ी हुई हैं, लेकिन सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि यहां जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से चादर चढ़ाकर इबादत करता है, उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं. यही वजह है कि यहां हर दिन सैकड़ों लोग अपनी मन्नतें मांगने आते हैं. यह दरगाह सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को यहाँ की शांति और सौहार्द से एक विशेष अनुभूति होती है. यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ मिलकर बाबा की दरगाह पर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं, जो भारतीय समाज में सांप्रदायिक एकता और सहिष्णुता का प्रतीक है.

ट्रेन की सलामी की अनोखी कहानी

दरगाह के साथ एक और दिलचस्प और चमत्कारी घटना जुड़ी हुई है, जिसे स्थानीय लोग और इतिहासकार मान्यता देते हैं. यह मान्यता रेल की पटरियों से जुड़ी है. जब भी कोई ट्रेन इस दरगाह के पास से गुजरती है, तो वह अपनी सीटी बजाकर दरगाह को सलामी देती है. यह परंपरा ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही है और इसके पीछे एक रोचक कहानी है. बताया जाता है कि ब्रिटिश शासन के समय जब इस क्षेत्र में रेल की पटरी बिछाई जा रही थी, तो एक अद्भुत घटना घटी. हर रात खुद-ब-खुद रेल की पटरी उखड़ जाती थी और इंजीनियरों के लिए इसे बिछाना एक बड़ी चुनौती बन गया था.

एक मुस्लिम इंजीनियर, जो इस परियोजना का हिस्सा थे, ने एक रात सपना देखा जिसमें बाबा बरछी बहादुर ने उनसे कहा कि अगर पटरी को दरगाह के चारों ओर से घुमाकर बनाया जाए, तो काम बिना किसी बाधा के पूरा हो जाएगा. इस सलाह के अनुसार, जब पटरी को दरगाह के चारों ओर से मोड़कर बिछाया गया, तो काम सफलतापूर्वक पूरा हो गया. इस घटना को अलीगढ़ के ऐतिहासिक दस्तावेजों में सत्य घटना के रूप में दर्ज किया गया है. तब से, यह मान्यता बन गई कि जब भी कोई ट्रेन इस दरगाह के पास से गुजरती है, वह अपनी सीटी बजाकर बाबा को सलामी देती है. यह परंपरा आज भी जारी है, और हर गुजरने वाली ट्रेन इस दरगाह के प्रति सम्मान व्यक्त करती है.

सांप्रदायिक सौहार्द  

अलीगढ़ के सदर नूर मोहम्मद का कहना है कि बाबा बरछी बहादुर की दरगाह शुरू से ही सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक रही है. यहां न केवल मुस्लिम समुदाय के लोग बल्कि हिंदू, सिख और ईसाई समुदायों के लोग भी नियमित रूप से आते हैं और बाबा के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं. इस दरगाह पर कभी भी सांप्रदायिक तनाव या दंगे का असर नहीं हुआ. अलीगढ़ जैसे शहर में कई बार सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं, लेकिन इस दरगाह पर आने वालों के बीच हमेशा शांति और भाईचारे का माहौल बना रहता है. इस दरगाह ने सदियों से सांप्रदायिक एकता का संदेश फैलाया है, और यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है.

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता

इस दरगाह का उल्लेख कई ऐतिहासिक पुस्तकों में भी मिलता है. ‘अलीगढ़ परिचय’ और ‘डिस्कवरिंग एमएमयू’ जैसी किताबों में इस दरगाह की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को विस्तार से बताया गया है. इन किताबों में इस बात का उल्लेख है कि कैसे बाबा बरछी बहादुर ने अपने जीवनकाल में धार्मिक एकता और भाईचारे का संदेश फैलाया. उनके अनुयायियों का मानना है कि बाबा की कृपा से दरगाह पर आने वाला हर व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान पा लेता है.

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इतिहासकारों के अनुसार, इस दरगाह का निर्माण उस समय हुआ था, जब भारत में सूफीवाद अपने चरम पर था. सूफी संतों ने अपने उपदेशों और जीवन शैली के माध्यम से समाज में प्रेम, करुणा और सहिष्णुता का संदेश फैलाया. बाबा बरछी बहादुर भी इन्हीं सूफी संतों में से एक थे, जिन्होंने समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए दरगाह के द्वार खुले रखे. यही वजह है कि उनकी दरगाह पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं और यहाँ की आस्था से जुड़ जाते हैं.

एकता और समर्पण का संदेश

बाबा बरछी बहादुर की दरगाह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एकता, भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है. यह दरगाह इस बात का संदेश देती है कि किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से जुड़े होने के बावजूद, इंसानियत और भाईचारा सबसे ऊपर है. बाबा के अनुयायी इस बात पर जोर देते हैं कि यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को न केवल बाबा की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि उसे जीवन में सच्ची शांति और समर्पण का अनुभव भी होता है.

दरगाह पर आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि बाबा की शिक्षा और उनके जीवन के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं. बाबा ने हमेशा एकता, प्रेम और सहिष्णुता का संदेश दिया, और यही वजह है कि आज भी उनकी दरगाह पर हर धर्म और वर्ग के लोग आकर इबादत करते हैं.

750 साल पुरानी अलीगढ़ की बाबा बरछी बहादुर की दरगाह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह सांप्रदायिक सद्भाव, एकता और मानवता का प्रतीक है. दरगाह की चमत्कारी मान्यताएं और यहाँ की धार्मिक विविधता इस स्थान को और भी खास बनाती हैं. चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई, हर धर्म के लोग यहाँ आकर बाबा के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं और अपनी मुरादें पूरी करते हैं. दरगाह की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आने वाले समय में भी यह सांप्रदायिक सौहार्द और एकता का प्रतीक बनी रहेगी.

 

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