वो 9 ऐतिहासिक स्थल, जो भारत की जंगे-आजादी की गवाही देते हैं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 14-08-2024
Red Fort, Delhi
Red Fort, Delhi

 

राकेश चौरासिया

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं. लेकिन इसके लिए करोड़ों ख्यात-अनाम अमर बालिदानियों ने प्राणोत्सर्ग किए. देश में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं, जो अपनी आगोश में स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां समेटे हुए हैं. इन स्थानों की फिजाओं में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बिखरा हुआ है.

दिल्ली का लाल किला: 1857 की क्रांति केंद्र बन गया

1857 की क्रांति, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला बड़ा विद्रोह माना जाता है, मेरठ से शुरू हुई थी. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीय सिपाहियों ने नए कारतूसों के इस्तेमाल को लेकर विद्रोह कर दिया था. यह विद्रोह बाद में दिल्ली, लखनऊ, और देश के अन्य हिस्सों में फैल गया. दिल्ली में लाल किला उस समय मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का निवास था.

विद्रोहियों ने बहादुर शाह जफर को विद्रोह का नेता मान लिया और लाल किले को अपना मुख्यालय बना लिया. अंग्रेजों ने लाल किले को विद्रोह का केंद्र मानते हुए इसे अपने हमलों का मुख्य निशाना बनाया. लाल किला इस विद्रोह का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था.

कालपीः रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्धस्थल

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रानी लक्ष्मीबाई का नाम भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम की एक वीर योद्धा के रूप में अंकित है. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ डटकर मुकाबला किया था. उनका अंतिम युद्धस्थल था कालपी. कालपी, उत्तर प्रदेश राज्य के झांसी जिले में स्थित एक शहर है. यह शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह शहर एक महत्वपूर्ण किला था और रानी लक्ष्मीबाई ने इसी किले को अपना अंतिम ठिकाना बनाया था.

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा कर लिया, तो रानी लक्ष्मीबाई कालपी की ओर बढ़ गईं. उन्होंने कालपी के किले को मजबूत बनाया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू कर दी. अंग्रेजों ने भी कालपी पर कब्जा करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी. रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया.

कई दिनों तक चले इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को कई बार परास्त किया. लेकिन अंततः अंग्रेजों की संख्या अधिक होने के कारण रानी लक्ष्मीबाई की सेना हार गई. युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई घायल हो गईं और उन्हें अपनी पहचान छुपाने के लिए एक सिपाही के वेश में युद्ध करना पड़ा.

युद्ध के अंतिम क्षणों में रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों ने घेर लिया. उन्होंने अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की. कहा जाता है कि युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने अपने घोड़े को छोड़ने से इनकार कर दिया था और घोड़े के साथ ही युद्ध करते हुए शहीद हो गई थीं. आज, कालपी रानी लक्ष्मीबाई की शहादत का प्रतीक है. यहां पर रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर एक स्मारक बना हुआ है. यह स्मारक हमें रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान को याद दिलाता है.

एल्फ्रेड पार्क: चंद्रशेखर आजाद के बलिदान का गवाह

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एल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में स्थित एक ऐतिहासिक पार्क है. यह स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जीवन के अंतिम क्षणों से जुड़ा हुआ है. 27 फरवरी, 1931 को ब्रिटिश पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद को एल्फ्रेड पार्क में घेर लिया था. घिरने के बाद आजाद खुद को अपनी पिस्तौल से गोली मारकर शहीद हो गए.

उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वे कभी भी अंग्रेजों की गिरफ्त में न आएं. अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई ने उन्हें भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना दिया था. एल्फ्रेड पार्क अब चंद्रशेखर आजाद के बलिदान का प्रतीक है. आज, एल्फ्रेड पार्क चंद्रशेखर आजाद को समर्पित एक स्मारक के रूप में जाना जाता है. यहां पर चंद्रशेखर आजाद की एक प्रतिमा स्थापित की गई है. यह स्थान भारतीयों के लिए एक तीर्थ स्थल बन गया है.

काकोरी: जहां अंग्रेजों के खजाने से भरी ट्रेन को लूटा गया

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काकोरी कांड, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ एक ऐतिहासिक घटनाक्रम था, जिसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांतिकारी भावना को और प्रज्वलित कर दिया था. काकोरी, उत्तर प्रदेश राज्य के लखनऊ जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है.

यह स्थान भारतीय इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर 9 अगस्त, 1925 को एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. काकोरी कांड में, भारतीय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के खजाने से धन लूटने के लिए एक ट्रेन को लूटा था. इस घटना का उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना था. हालांकि, यह एक साहसी प्रयास था, लेकिन यह क्रांतिकारियों के लिए बहुत महंगा साबित हुआ.

काकोरी कांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया. इस घटना ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोगों का गुस्सा और बढ़ा दिया. इस कांड में शामिल क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार ने फांसी की सजा दी थी. काकोरी कांड के प्रमुख क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह थे.

ये सभी क्रांतिकारी भारत के इतिहास में अमर हो गए हैं. इनके बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया. आज, काकोरी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां पर काकोरी शहीदों की स्मृति में एक स्मारक भी बना हुआ है. यह स्मारक उन सभी क्रांतिकारियों को समर्पित है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था.

जलियांवाला बाग: जहां जनरल डायर ने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं

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जलियांवाला बाग भारत के इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता. 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुए इस हत्याकांड ने ब्रिटिश राज के अत्याचारों को बेनकाब किया और भारतीयों में स्वतंत्रता की लौ को और प्रज्वलित कर दिया. बैसाखी के पर्व पर हजारों लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की नीतियों शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे.

इस दौरान ब्रिटिश सेना के कमांडर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के बाग में घुसकर भीड़ पर गोलियां चलवा दीं. बाग के चारों ओर से घिरा होने के कारण लोग भाग नहीं पाए और हजारों निर्दोष लोग मारे गए या घायल हुए. इस घटना ने पूरे देश में शोक की लहर दौड़ा दी.

इस घटना ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नई ऊर्जा दी और लोगों में स्वतंत्रता की भावना और मजबूत हुई और भारतीयों में एकता की भावना पैदा की और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होने के लिए प्रेरित किया. आज, जलियांवाला बाग एक स्मारक के रूप में जाना जाता है. यहां पर शहीदों की याद में एक स्मारक बना हुआ है. यह स्मारक हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए बलिदानों को याद दिलाता है.

साबरमती आश्रम: भारत के स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र रहा

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साबरमती आश्रम, अहमदाबाद, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. महात्मा गांधी ने इस आश्रम को अपने विचारों और सिद्धांतों को फैलाने के लिए एक आधार बनाया था. यहां उन्होंने अहिंसा, सत्य और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों को प्रचारित किया और लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के कोचरब क्षेत्र में इस आश्रम की स्थापना की गई थी. 17 जून, 1917 को आश्रम को साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित कर दिया गया,इसलिए इसका नाम साबरमती आश्रम पड़ा.

इस आश्रम से गांधीजी ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे कि खेड़ा सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल हड़ताल और असहयोग आंदोलन. साबरमती आश्रम ने हमें सिखाया कि अहिंसा सबसे शक्तिशाली हथियार है. सत्य हमेशा विजय प्राप्त करता है. एक व्यक्ति भी बदलाव ला सकता है.

मेरठ छावनी: 1857 की क्रांति का प्रारंभ स्थल

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1857 की क्रांति, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, का आरंभ उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से हुआ था. मेरठ छावनी उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों का एक प्रमुख केंद्र थी. यहाँ तैनात भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसने पूरे देश में एक विद्रोह की लहर पैदा कर दी थी. 1857 में ब्रिटिश सेना ने नए प्रकार के कारतूसों का इस्तेमाल शुरू किया था, जिनमें कथित तौर पर गाय और सूअर की चर्बी का लेप लगा हुआ था.

यह हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की धार्मिक भावनाओं को आहत करता था, क्योंकि गाय हिंदुओं के लिए पवित्र और मुसलमानों के लिए सुअर अपवित्र जानवर हैं. सिपाही लंबे समय से अपनी स्थिति से असंतुष्ट थे. उन्हें कम वेतन मिलता था और उन्हें अंग्रेजों द्वारा भेदभाव का सामना करना पड़ता था.

नए कारतूसों का मुद्दा सिर्फ एक बहाना था, असली कारण तो उनकी लंबे समय से दबी हुई नाराजगी थी. मेरठ छावनी में तैनात सैनिकों में एकजुटता थी. उन्होंने एक-दूसरे को इस विद्रोह में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में तैनात भारतीय सिपाहियों ने अपने अंग्रेजी अधिकारियों को बंदी बना लिया और हथियार उठा लिए.

विद्रोही सिपाही दिल्ली की ओर बढ़े, जो मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का निवास स्थान था. उन्होंने बहादुर शाह जफर को विद्रोह का नेता मान लिया. मेरठ से शुरू हुआ यह विद्रोह जल्द ही देश के अन्य हिस्सों में फैल गया. लखनऊ, कानपुर, झांसी और कई अन्य शहरों में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

इसलिए मेरठ छावनी 1857 की क्रांति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह वह जगह थी जहां से भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी निकली थी. मेरठ छावनी ने भारतीयों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट होने और लड़ने के लिए प्रेरित किया. आज भी मेरठ में 1857 की क्रांति के कई स्मारक हैं. यहां एक संग्रहालय भी है, जिसमें क्रांति से जुड़े कई ऐतिहासिक दस्तावेज और वस्तुएं रखी हुई हैं. मेरठ के लोग 1857 की क्रांति के नायकों को याद करते हैं और उनके बलिदान को कभी नहीं भूलते हैं.

अलीपुर: जहां बम कांड की गूंज से अंग्रेज हिल गए

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अलीपुर बम कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. यह एक क्रांतिकारी साजिश थी जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था. यह घटना 1908 में कोलकाता के अलीपुर में हुई थी. 1908 में, बंगाल विभाजन के विरोध में क्रांतिकारी गतिविधियां बढ़ रही थीं.

इसी दौरान, कोलकाता के अलीपुर में एक बम फैक्ट्री का पता चला, जहां क्रांतिकारी बम बना रहे थे. पुलिस ने छापा मारा और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. एक प्रसिद्ध राष्ट्रवादी और दार्शनिक, अरविंद घोष को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था.

अरविंद घोष के भतीजे, बरिंद्र कुमार घोष को भी गिरफ्तार किया गया था. अलीपुर बम कांड के आरोपियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा चलाया गया. इस मामले में कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा हुई, जबकि कई अन्य को आजीवन कारावास की सजा हुई.

अलीपुर बम कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इस घटना ने भारतीयों में क्रांतिकारी भावना को जगाया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया. अलीपुर बम कांड भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. यह घटना हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता के लिए लड़ाई कितनी कठिन थी. अलीपुर बम कांड के नायकों ने अपने बलिदान से भारत को आजाद कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

कालकोट: उड़ीसा में विद्रोह का केंद्र

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उड़ीसा के पहाड़ी क्षेत्र कालकोट, 1817 में हुए एक ऐतिहासिक विद्रोह का केंद्र रहा है. इस विद्रोह का नेतृत्व पखाल नायक ने किया था, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था. पखाल नायक उड़ीसा के एक स्थानीय नेता थे. वे अपने क्षेत्र के लोगों के लिए लड़ते थे और ब्रिटिश शासन के अत्याचारों से परेशान थे.

उन्होंने लोगों को एकजुट करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का बीड़ा उठाया. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उड़ीसा के लोगों पर अत्याचार किए, उनकी जमीनें छीनीं और उन्हें कई तरह के कर लगाए. स्थानीय संस्कृति और परंपराओं पर हमलारू ब्रिटिश शासन ने स्थानीय संस्कृति और परंपराओं पर हमला किया, जिससे लोगों में रोष पैदा हुआ. पखाल नायक ने लोगों को एकजुट करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका. कालकोट का विद्रोह हालांकि अल्पकालिक रहा, लेकिन इसने ब्रिटिश शासकों को झकझोर कर रख दिया.

इस विद्रोह ने उड़ीसा के लोगों में स्वतंत्रता की भावना को जगाया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी. कालकोट का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक छोटा सा अध्याय है, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया.

इस विद्रोह ने दिखाया कि भारतीय लोग गुलामी बर्दाश्त नहीं करेंगे और वे अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे. आज कालकोट उड़ीसा का एक शांत गांव है. यहां पखाल नायक को याद करने के लिए एक स्मारक बनाया गया है. यह स्मारक हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता के लिए लड़ना कितना महत्वपूर्ण है.