माहिम दरगाह पर इसलिए मुंबई पुलिस देती है 'हाजिरी'

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-12-2024
This is why Mumbai police makes an appearance at Mahim Dargah
This is why Mumbai police makes an appearance at Mahim Dargah

 

भक्ति चालक

मुंबई के 'माहिम दरगाह' के नाम से प्रसिद्ध मखदूम फकीह अली माहिमी के दरगाह के 611वें उर्स की हाल ही में शुरुआत हुई है.दरगाह के इस 10दिवसीय उर्स की पिछले कई वर्षों से परंपरा है.उर्स के दौरान माहिम के समुद्र तट पर बडा मेला लगता है और हर जगह उत्साह और खुशी का माहौल होता है.

तट के पास लगने वाला जायंट व्हील इस उर्स का मुख्य आकर्षण होता है.साथ ही इस उर्स की एक प्रमुख विशेषता यह है कि, इस दरगाह पर उर्स की पहली चादर चढ़ाने का सम्मान मुंबई पुलिस को मिलता है.

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इतिहास दरगाह का

माहिम का यह उर्स ब्रिटिश काल से ही आधिकारिक राजपत्र में दर्ज किया गया उत्सव है.पिछले कई वर्षों से माहिम दरगाह में मुंबई पुलिस को चादर चढ़ाने का पहला सम्मान मिलता है.इस परंपरा के बारे में कई कथाएँ बताई जाती हैं.

आज जिस स्थान पर माहीम पुलिस स्टेशन स्थित है, उस स्थान पर पीर मखदूम शाह बाबा की बैठक हुआ करती थी. ऐसा कहा जाता है.1923में वहाँ माहिम पुलिस थाने की स्थापना हुई थी.इसलिए हर साल माहिम पुलिस स्टेशन से मुंबई पुलिस बाबा की चादर लेकर पूरे माहिम में जुलूस करते हुए जाते हैं.उसके बाद पुलिस द्वारा ही चादर चढ़ाई जाती है.इस अवसर पर मुंबई पुलिस का बैंड दल भी शामिल हो कर विशेष सलामी देता है.

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बाबा मखदूम शाह पुलिस के बहुत नजदीकी थे .अक्सर अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की मदद करते थे.यह भी सुनने को मिलता है कि बाबा के अंतिम समय में एक पुलिसकर्मी ने उन्हें पीने के लिए पानी दिया था.

कई लोगों का यह भी कहना है कि मुंबई में दंगा हुआ था, तब उस समय के पुलिस आयुक्त ने यहाँ आकर जातीय सौहार्द की प्रार्थना की और कुछ घंटों में ही दंगा शांत हो गया.ऐसे विभिन्न प्रकार की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं, लेकिन इस स्थान पर हिंदू-मुस्लिम भक्त सौहार्द की भावना से दर्शन करने आते हैं.

इस बार 10 से 25 दिसंबर तक यह उर्स धूमधाम से मनाया गया.इन दस दिनों के दौरान देशभर से लगभग 500 मन की चादर दरगाह में आती हैं.साथ ही लाखों भक्त बाबा के दर्शन के लिए दरगाह में हाजिरी लगाते हैं.

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ऐसा कहा जाता है की, पंद्रहवीं शताब्दी में गुजरात के सुल्तान महमूद शाह के शासनकाल में माहिम दरगाह का निर्माण किया गया था.सुलतान महमूद शाह के दौर में सूफी संत मखदूम फकीह अली माहिमी मुंबई आए थे और ऐसा बोला जाता है की.

उन्होंने वहाँ कई करामात किए थे.उनमें से एक यह था कि माहिम के समुद्र तट पर बंजर जमीन पर उन्होंने हरी-भरी बगिया बनाई थी.मखदूम फकीह अली माहिमी के इस अद्वितीय कार्य के कारण उनके सम्मान में वहाँ एक भवन का निर्माण किया गया, जो बाद में माहिम दरगाह के नाम से जाना जाने लगा.

कौन है मखदूम फकीह अली माहिमी...

हजरत फकीह मखदूम अली माहिमी का कार्यकाल 1372से 1431के बीच माना जाता है.वे मूलतः अरबस्तान के थे.इराक और कुवैत की सीमा पार कर वे कल्याण के रास्ते माहीम आए और यहीं स्थायिक हो गए.मखदूम फकीह अली माहिमी का बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव था.

उन्होंने सूफी विचारधारा की शिक्षा भी प्राप्त की थी.इतना ही नहीं, उन्हें भारत के पहले मुफस्सिर (कुरान भाष्यकार) में से एक माना जाता है.उन्होंने अरबी भाषा में कई धार्मिक पुस्तकें लिखी हैं.इसलिए उन्हें 'कुतुब-ए-कोकन' (कोकण के सर्वोच्च सूफी) भी कहा जाता है.

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हिंदी फिल्मों में माहिम दरगाह

हजरत मखदूम फकीह अली माहिमी के दरगाह परिसर में बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.रोहित शेट्टी द्वारा निर्मित और अजय देवगन, करीना कपूर-खान द्वारा अभिनय की गई फिल्म 'सिंघम 2' में माहिम दरगाह को दिखाया गया है.इसके साथ ही बॉलीवुड के कई अभिनेता श्रद्धा भाव से इस दरगाह का दौरा करते रहते हैं.

दरगाह के प्रवेशद्वार पर संविधान की प्रस्तावना

माहीम दरगाह के प्रवेश द्वार पर 2020 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्थापित की गई थी.भारत में किसी भी धार्मिक स्थल पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना लगाने वाला माहिम दरगाह देश का पहला धार्मिक स्थल बन गया है.राष्ट्रीय त्योहारों के दौरान यहाँ पारंपरिक ध्वज के साथ राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया जाता है.राष्ट्रगीत का गायन कर राष्ट्रीय ध्वज को सलामी भी दी जाती है.