छठ पर्व में धर्म की दीवारें टूटीं, मुस्लिम महिलाएं भी पूरी श्रद्धा से देंगीं सूर्य को अर्घ्य

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-11-2024
The walls of religion are broken during Chhath festival, Muslim women will also offer prayers to the Sun with full devotion
The walls of religion are broken during Chhath festival, Muslim women will also offer prayers to the Sun with full devotion

 

आवाज द वाॅयस/ पटना

बिहार में लोकआस्था का महापर्व छठ की धूम मची हुई है.जहां एक ओर लोग अपने परिवारों के साथ इस पर्व के अवसर पर सूर्य देवता की पूजा में व्यस्त हैं, वहीं दूसरी ओर एक दिलचस्प बात यह सामने आ रही है कि इस महापर्व में धर्म और आस्था के बीच कोई भेदभाव नहीं दिखता.खासकर मुस्लिम समाज की महिलाएं भी अब इस पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मना रही हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि छठ पर्व में मुस्लिम समाज के लोगों की बढ़ती भागीदारी न केवल इस पर्व की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाती है, यह सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी प्रस्तुत करती है.बिहार के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम समुदाय की महिलाएं न केवल छठ घाटों की सफाई और अन्य आयोजनों में सहयोग कर रही हैं, बल्कि इस पर्व में पूरी श्रद्धा के साथ शामिल होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य भी अर्पित कर रही हैं.

खासकर मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी जैसे इलाकों में मुस्लिम महिलाएं इस महापर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं.

सायरा बेगम की श्रद्धा

मुजफ्फरपुर जिले के कालीबाड़ी क्षेत्र में रहने वाली सायरा बेगम की कहानी इस बदलाव की बेहतरीन उदाहरण है.सायरा पिछले आठ सालों से पूरे श्रद्धा भाव से छठ व्रत करती आ रही हैं.वह बताती हैं कि उनका यह व्रत सूर्य देवता से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है.

सायरा ने 2015 में छठी मैया से मन्नत मांगी थी कि अगर उनके पति की तबीयत ठीक हो जाती है तो वह पूरी श्रद्धा के साथ छठ पर्व करेंगी.इसके बाद, उनकी मन्नत पूरी हुई और उनके पति की सेहत में सुधार हुआ.तब से लेकर आज तक, सायरा और उनके परिवार के सदस्य हर साल छठ पर्व को श्रद्धा के साथ करते आ रहे हैं.सायरा का कहना है, "मैं जब तक जीवित हूं, छठ पर्व करती रहूंगी, क्योंकि यह मेरे लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक बन गया है."

muslims

जैमुन खातून और उनका परिवार

सीतामढ़ी जिले के बाजितपुर गांव की रहने वाली जैमुन खातून भी एक ऐसी मुस्लिम महिला हैं, जो पिछले कई वर्षों से पूरे विधिविधान से छठ करती आई हैं.जैमुन खातून का कहना है कि उन्हें इस पर्व में हिंदू समुदाय के लोगों का भी पूरा सहयोग मिलता है.उनके गांव की अन्य मुस्लिम महिलाएं भी इस महापर्व में अपनी आस्था व्यक्त करती हैं और सूर्य देवता की पूजा करती हैं.उनका कहना है कि यह पर्व उन्हें न केवल आस्था का संबल देता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सौहार्द का भी प्रतीक है.

बिहार की जेलों में भी छठ की धूम

इसी तरह का एक दिलचस्प पहलू यह है कि इस साल बिहार की जेलों में भी मुस्लिम कैदी इस पर्व में हिस्सा ले रहे हैं.मुजफ्फरपुर के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारागार में इस बार 47महिला और 49पुरुष कैदी छठ व्रत कर रहे हैं, जिनमें तीन मुस्लिम और एक सिख धर्म के व्यक्ति भी शामिल हैं.

यह दृश्य बिहार के जेलों में भी एक नई और सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है, जहां विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग एक ही छत के नीचे एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हुए इस महापर्व में भाग ले रहे हैं.

शुद्धता और श्रद्धा के साथ

छठ पर्व करने वाली मुस्लिम महिलाएं इस पर्व को पूरी शुद्धता के साथ करती हैं.वे बताती हैं कि दशहरा के बाद घर में लहसुन और प्याज का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है, ताकि यह पर्व पूरी तरह से पवित्र और शुद्धता के साथ मनाया जा सके.इस पर्व में महिलाएं विशेष रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करती हैं, जिससे उन्हें स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है.

सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल

इस प्रकार, लोकआस्था का महापर्व छठ न केवल शुद्धता और स्वच्छता का संदेश दे रहा है, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की भी मिसाल पेश कर रहा है.विभिन्न समुदायों के लोग एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हुए इस पर्व को मनाते हैं, जो समाज में सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा देता है.

बिहार में मुस्लिम महिलाओं का छठ पर्व में भाग लेना इस बात को साबित करता है कि आस्था और श्रद्धा के नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, और यह महापर्व सभी के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है.