महाकुंभ का संगम: अकबर की ऐतिहासिक विरासत की झलक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-01-2025
Maha Kumbh in Prayagraj and Akbar the Great
Maha Kumbh in Prayagraj and Akbar the Great

 

साकिब सलीम

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत का एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो प्रतिवर्ष महाकुंभ के आयोजन के लिए प्रसिद्ध है.यहाँ संगम का स्थान है, जहाँ तीन नदियाँ - गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती - मिलती हैं.यह स्थान हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है, और लाखों तीर्थयात्री यहाँ स्नान करने आते हैं, विश्वास करते हैं कि संगम में स्नान करने से उन्हें पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है.

महाकुंभ के दौरान, तीर्थयात्री इलाहाबाद किले में स्थित अक्षयवट, एक पवित्र बरगद के पेड़, पर पूजा करने आते हैं.अक्षयवट को हिंदू धर्म में एक अमर वृक्ष माना जाता है, जहाँ मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्म-समर्पण करने की परंपरा रही है.यह अक्षयवट मुग़ल सम्राट जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर द्वारा बनवाए गए किले के भीतर स्थित है.संगम के इस पवित्र स्थल पर स्थित किला और अक्षयवट का इतिहास कई रोचक पहलुओं से जुड़ा हुआ है.

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अकबर का योगदान और किले का रहस्य

अकबर ने 1563में प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में धार्मिक मेलों के दौरान तीर्थयात्रियों पर लगाए गए करों को समाप्त कर दिया था, जिससे यह स्थान और भी पवित्र बन गया.इसके बाद, 1584में अकबर ने यहाँ एक भव्य किला बनवाया, जो संगम के किनारे स्थित था.यह किला और उसके भीतर स्थित अक्षयवट हिंदू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, लेकिन यह सवाल उठता है कि एक मुस्लिम सम्राट ने एक पवित्र हिंदू स्थल की रक्षा क्यों की और इसके चारों ओर किला क्यों बनवाया?

यहां यह विचार करना दिलचस्प है कि एक 'मुस्लिम' सम्राट ने इस पवित्र स्थल की रक्षा की, न कि उसे नष्ट किया.अकबर के बाद के मुगलों और ब्रिटिश शासकों के लिए यह एक रहस्य बना कि अकबर ने इस पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक किला क्यों बनवाया.स्थानीय लोगों का मानना है कि आज जो अक्षयवट पूजा के लिए दिखाई देता है, वह असली नहीं है, और असली वृक्ष किसी अन्य स्थान पर स्थित है.

बावजूद इसके, अकबर के द्वारा किया गया यह कार्य इतिहासकारों और शासकों के लिए एक बड़ी हैरानी का विषय बना रहा.

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अकबर और हिंदू धर्म

अकबर के जीवन और कार्यों को लेकर विभिन्न किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, जो हिंदू धर्म के दृष्टिकोण से बहुत दिलचस्प हैं.हिंदू धर्मावलंबियों के बीच एक किंवदंती है, जिसमें यह कहा जाता है कि अकबर ने अपने पूर्व जन्म में हिंदू ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया था.

बाबू भोलानाथ चंद्र ने 1869में प्रकाशित अपनी पुस्तक "द ट्रैवल्स ऑफ ए हिंदू" में इस किंवदंती का उल्लेख किया है, जिसमें यह बताया गया है कि अकबर का पूर्व जन्म में नाम मुकुंद था और वह एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे.

किंवदंती के अनुसार, मुकुंद ने देवताओं से प्रार्थना की थी कि वह सम्राट बनने के लिए एक विशेष तपस्या करें.देवताओं ने उन्हें बताया कि सम्राट बनने के लिए उन्हें पहले मरकर पुनः जन्म लेना होगा.मुकुंद ने अपनी तपस्या पूरी की और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म में अकबर के रूप में जन्म लिया.यही कारण था कि अकबर के जीवन में हिंदू संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान देखा गया.

अकबर और हिंदू संस्कृति

अकबर का दरबार हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का मिश्रण था.उनकी पत्नी जोधाबाई, एक हिंदू राजकुमारी थीं, और उनके दरबार में कई प्रमुख हिंदू व्यक्तित्व थे, जैसे राजा मान सिंह, राजा टोडर मल, बीरबल और तानसेन। अकबर ने हमेशा हिंदू कल्याण के लिए कई कदम उठाए, जिनमें हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण, हिंदू धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा और हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल था.

यह भी कहा जाता है कि अकबर ने अपने पूर्व जन्म के कृत्यों को याद किया था, और प्रयागराज में एक पीतल की प्लेट दफन की थी, जिस पर उसने अपने पुराने जीवन की घटनाओं को उकेर रखा था.समय के साथ, यह प्लेट और अन्य संकेत अकबर को उसके पूर्व जन्म से जुड़ी यादों के रूप में प्राप्त हुए, जिससे यह सिद्ध हुआ कि वह वास्तव में एक हिंदू ब्राह्मण के रूप में जन्मे थे.

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समन्वयकारी संस्कृति का प्रतीक

अकबर का किला और अक्षयवट का स्थान आज भी भारत की समन्वयकारी संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है.यह किला न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि भारत में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संवाद और सह-अस्तित्व का एक लंबा इतिहास रहा है.

अकबर की नीतियाँ और कार्य यह दर्शाते हैं कि उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया और भारत की विविधता में एकता का संदेश दिया.अंततः, प्रयागराज का किला, अक्षयवट और महाकुंभ जैसे धार्मिक स्थल न केवल हिंदू धर्म के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे भारतीय इतिहास और संस्कृति के अद्वितीय मिश्रण का प्रतीक भी हैं.

अकबर के कार्यों और विचारों ने इस भूमि पर एक गहरी छाप छोड़ी है, और यह हमें यह सिखाता है कि समर्पण, सम्मान और सहिष्णुता का मार्ग ही सत्य की ओर जाता है.