पंजाब की सूफियाना तहज़ीब

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 08-08-2023
प्राचीन काल में पंजाब को सप्त सिन्धु कहा जाता था, मुग़ल बादशाह जहांगीर ने इसे पांच नदियों की सरज़मीं कहा
प्राचीन काल में पंजाब को सप्त सिन्धु कहा जाता था, मुग़ल बादशाह जहांगीर ने इसे पांच नदियों की सरज़मीं कहा

 

फ़िरदौस ख़ान 
 
पंजाब यानी पंज आब, पांच पानियों की सरज़मीं. पंजाब पांच नदियों झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज की धरती है. प्राचीन काल में पंजाब को सप्त सिन्धु कहा जाता था. सप्त सिन्धु का मतलब है सात नदियों की सरज़मीं. मुग़ल बादशाह जहांगीर ने इसे पांच नदियों की सरज़मीं कहा, क्योंकि इस इलाक़े में पांच नदियां बहती थीं. आज़ादी के बाद साल 1947 में देश के विभाजन के दौरान पंजाब भी दो हिस्सों में तक़सीम हो गया. इसका एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और एक हिस्सा हमारा पंजाब है. 

दुनिया की सभी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही फली-फूली हैं. शायद इसलिए पंजाब की संस्कृति भी अपनी धरती की तरह ही समृद्ध है. पंजाब की मुख्य भाषा गुरुमुखी यानी पंजाबी है. इसके अलावा यहां हिन्दी और उर्दू भाषाएं भी बोली जाती हैं. पंजाब का साहित्य भी बहुत ही समृद्ध और विश्व प्रसिद्ध है.
 
फ़रीदकोट  
 
पंजाबियों का मिज़ाज सूफ़ियाना है. यहां के बाशिन्दे हज़रत ख़्वाजा फ़रीरुद्दीन गंजशकर यानी बाबा फ़रीद को बहुत मानते हैं. पंजाब के एक शहर का नाम उन्हीं के नाम पर फ़रीदकोट रखा गया है. इतना ही नहीं, फ़रीदकोट के टिल्ला बाबा फ़रीद में हर साल बाबा फ़रीद के इस शहर में आने की याद में बाबा फ़रीद आगमन पर्व मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान बाबा फ़रीद की रचनाओं का पाठ होता है.
 
 
हज़रत ख़्वाजा फ़रीरुद्दीन गंजशकर

कई दिन तक चलने वाले इस मेले के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें कला, साहित्य, संगीत, गायन, नृत्य, नाटक, चित्रकला प्रदर्शनी, फ़ोटो प्रदर्शनी और खेल आदि शामिल हैं. सिखों के धार्मिक ग्रंथ श्री गुरुग्रंथ साहिब में बाबा फ़रीद की बाणी के बहुत से श्लोक हैं, जिन्हें ‘सलोक फ़रीद जी’ कहा जाता है. बाबा फ़रीद का मज़ार पाकिस्तान के पाकपट्टन शरीफ़ में है. 
 
फ़तेहगढ़ साहिब ज़िले में हज़रत शेख़ अहमद फ़ारूक़ी अल सरहिन्दी की दरगाह भी ज़ायरीनों की अक़ीदत का मर्कज़ है. हज़रत शेख़ अहमद फ़ारूक़ी नक़्शबंदी सिलसिले के सूफ़ी हैं. उनका जन्म सरहिन्द में हुआ था. इसलिए उनके नाम के साथ सरहिन्दी लक़ब जुड़ गया. उन्हें इमाम रब्बानी के नाम से भी जाना जाता है. उनके मज़ार पर ज़ायरीनों की भीड़ लगी रहती है. 
 
 
हज़रत शेख़ सदरुद्दीन सदर-ए-जहां की मज़ार 
मलेरकोटला 
 
मलेरकोटला में हज़रत शेख़ सदरुद्दीन सदर-ए-जहां की मज़ार है. उनका जन्म साल 1434 में अफ़ग़ानिस्तान के  शेरवान में हुआ था. उन्हें हैदर शेख़ और मलेरकोटला वाले पीर के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने साल 1454 में मलेरकोटला रियासत की बुनियाद रखी थी. वे शेख़ अहमद ज़िन्दा पीर के बेटे और शेख़ अली शाहबाज़ ख़ान के पोते थे. दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी ने सदरुद्दीन से मुतासिर होकर अपनी बेटी ताज मुरस्सा बेगम का उनसे निकाह किया था.
 
मलेरकोटला रियासत के नवाब शेख़ सदरुद्दीन से लेकर इफ़्तियार अली ख़ान तक कुल 22 नवाब रहे. इन सबने ही प्रेम, भाईचारे और आपसी सद्भाव को बढ़ावा दिया. नवाब शेर मुहम्मद ख़ान ने सरहिन्द के गवर्नर वज़ीर ख़ान द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह के छोटे बेटों फ़तेह सिंह और जोरावर सिंह को सरहिन्द की दीवारों की नींव में ज़िन्दा चुनवाने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और इस बारे में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को एक ख़त भी लिखा था.
 
 
पंजाबी हिंदू
 
मस्जिद को दी ज़मीन 
 
पंजाब में सभी मज़हबों के लोग मिलजुल कर रहते हैं. सिख पर्वों पर यहां के मुसलमान गुरुद्वारों को अनाज भेंट करते हैं. फ़सल कटने पर भी गुरुद्वारा को अनाज का कुछ हिस्सा दिया जाता है. यहां के सिख भी मस्जिदों के लिए ज़मीन दान करते हैं. साल 2019 में मोगा के गांव माछी के दर्शन सिंह के परिवार ने मस्जिद के लिए 16 मरले ज़मीन दान की थी. इसी तरह साल 2021 में मलेरकोटला के गांव जितवाल कलां में सिख जगमेल सिंह ने अपनी छह बिस्वा पुश्तैनी ज़मीन मस्जिद बनाने के लिए दान में दे दी.
 
उनका कहना था कि गांव के मुसलमानों को नमाज़ अदा करने के लिए पड़ौस के गांवों में जाना पड़ता है. ग़ौरतलब है कि इस गांव में तक़रीबन 12 मुस्लिम परिवार रहते हैं. उनकी माली हालत इस लायक़ नहीं है कि वे गांव में मस्जिद की तामीर करवा सकें. जगमेल सिंह का परिवार तीन पीढ़ियों से गांव के मुस्लिम परिवारों से जुड़ा हुआ है. 
 
 
लक्ष्मी नारायण मन्दिर और सोमसोन कॉलोनी में अक़सा मस्जिद 
 
साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल बने मस्जिद-मन्दिर 
 
मलेरकोटला की सोमसोन कॉलोनी में अक़सा मस्जिद और लक्ष्मी नारायण मन्दिर एक ही दीवार से मिले हुए हैं. यह मस्जिद तक़रीबन 65 साल पुरानी है, जबकि मन्दिर को बने हुए लगभग छह साल ही हुए हैं. मस्जिद की इंतज़ामिया कमेटी ने मन्दिर के निर्माण में भरपूर मदद की. इसके लिए पानी और बिजली मस्जिद से ही मुहैया करवाई गई थी. मन्दिर के पुजारी और मस्जिद के इमाम एक दूसरे को सलाम और राम-राम कहते हैं.      
 
मलेरकोटला मध्ययुगीन काल से हिन्दुस्तानी और ईरानी वास्तुकला का एक मर्कज़ रहा है. यहां की जामा मस्जिद, मुबारक मंज़िल, शीश महल, शाही मक़बरा और कोटला का क़िला देखने लायक़ हैं. साम्प्रदायिक सद्भावना यहां की विरासत है. पटियाला के पंजाबी विश्वविद्यालय ने मलेरकोटला में नवाब शेर मोहम्मद ख़ान संस्थान की स्थापना की है. पंजाब सरकार ने यहां पंजाब उर्दू अकादमी और ख़ालसा सजना के तीन सौ साल के यादगार समारोह के दौरान फ़तेहगढ़ साहिब में 'नवाब शेर मोहम्मद ख़ान मेमोरियल गेट' बनवाया है.
 
तीज-त्यौहार 
 
हालांकि पंजाब सिख बहुल राज्य है. यहां जितने उल्लास से सिख पर्व मनाए जाते हैं, उतने ही हर्षोल्लास से अन्य मज़हबों के तीज-त्यौहार भी मनाए जाते हैं, जिनमें ईद उल फ़ित्र, ईद उल अज़हा, होली, दशहरा और दिवाली आदि शामिल हैं. यहां मौसमी पर्व लोहड़ी, मकर संक्रान्ति और बैसाखी ख़ूब धूमधाम से मनाई जाती है. कई जगह धार्मिक और मौसमी त्यौहारों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है. 
 
अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है. इसके गुम्बद को सोने से मढ़वाया गया है. इसलिए इसे स्वर्ण मन्दिर कहा जाता है. यहां संगमरमर से बने सरोवर के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से रोग दूर हो जाते हैं. देश-विदेश के श्रद्धालु यहां आते हैं. गुरु पर्वों के मौक़ों पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है. 
 
 
अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर

मुक्तसर में हर साल जनवरी में माघी मेले का आयोजन किया जाता है. यह सिखों के दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिन्द सिंह के चालीस सिंहों की याद में आयोजित किया जाता है. इसमें देश-विदेश से हज़ारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं. माघ की कड़ाके की ठंड के बावजूद श्रद्धालु दरबार के पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं. मेले के दौरान शहर में संगत निकलती है. शहर में जगह-जगह इसका स्वागत किया जाता है और लंगर भी लगाए जाते हैं. 
 
पटियाला के गुरुद्वारा दुखनिवारण साहिब में मनाई जाने वाली बसंत पंचमी बहुत विख्यात है. इसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं. इस दौरान तक़रीबन 60 क्विंटल आटे की रोटियां बनाई जाती हैं. इसके हिसाब से ही दाल और सब्ज़ियां भी बनाई जाती हैं. इसके साथ ही चाय, पकौड़े और पीले मीठे चावल भी बनाए जाते हैं. पीले चावल तो बसंत का प्रमुख व्यंजन हैं.   
 
बठिंडा ज़िले के तलवंडी साबो के तख़्त श्री दमदमा साहिब में हर साल बैसाखी मेले का आयोजन किया जाता है. श्रद्धालु दरबार में मत्था टेकने के बाद पवित्र सरोवर में स्थान करते हैं. वे पंगत में बैठकर लंगर भी छकते हैं. यहां तक़रीबन दस लाख लोगों के लिए भोजन पकाया जाता है. 
 
रूपनगर ज़िले के ऐतिहासिक नगर आनंदपुर साहिब में हर साल होला मोहल्ला मनाया जाता है. कहा जाता है कि श्री गुरु गोबिन्द सिंह ने इसकी शुरुआत की थी. यह पर्व होली के अगले दिन मनाया जाता है. होला मोहल्ला फ़र्ज़ी हमला होता है. इस दौरान हथियारों से सुसज्जित पैदल व घुड़सवारों के दो दल एक ख़ास जगह पर हमला करते हैं और अपने जौहर दिखाते हैं. 
 
शहीदी जोड़ मेला सिखों के ऐतिहासिक गुरुद्वारा फ़तेहगढ़ साहिब में हर साल 26 से 28 दिसम्बर को आयोजित किया जाता है. यह एक समागम है, जो गुरु गोबिन्द सिंह के छोटे बेटों जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह के शहीदी दिवस की याद में आयोजित किया जाता है. यह गुरुद्वारा इन्हीं की याद में बनवाया गया था. 
 
जालंधर में सिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरमालिनी धाम, मां अन्नपूर्णा मन्दिर और श्री देवी तालाब मन्दिर के साथ-साथ श्री सिद्ध बाबा सोढल मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है. तक़रीबन तीन सौ साल पुराने इस मन्दिर में दूर-दूर से लोग आते हैं. 
 
अमृतसर का जालियांवाला बाग़ ऐतिहासिक महत्व का स्थल है. बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर की अगुवाई में अंग्रेज़ी सिपाहियों ने गोलियां चलाकर लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. इस हादसे में हज़ारों लोग ज़ख़्मी हो गए थे. इस घटना की याद में यहां एक स्मारक बना हुआ है.
 
  
 
लोक नृत्य व लोकसंगीत 
 
पंजाब के मुख्य नृत्य भांगड़ा, गिद्दा, झूमर और सम्मी हैं. यहां तीज-त्यौहारों ख़ासकर लोहड़ी, मकर संक्रांति और बैसाखी पर भांगड़ा किया जाता है. इसके अलावा शादी-ब्याह और अन्य ख़ुशी के मौक़ों पर भी लोग भांगड़ा करके अपने जज़्बात का इज़हार करते हैं. पंजाब का लोक संगीत बहुत मशहूर है. यहां गुरमत संगीत के अलावा उप शास्त्रीय संगीत की मुग़ल शैली भी ख़ूब लोकप्रिय है, जिसमें ख़याल, ठुमरी, ग़ज़ल और क़व्वाली आदि शामिल हैं.   
 
जालंधर में तक़रीबन 147 बरसों से हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इसमें स्वामी तुलजा गिरि ने बहुत अहम किरदार अदा किया था. साल 1874 में उनके देहांत के बाद उनके शिष्य स्वामी हरि वल्लभ उनके उत्तराधिकारी बने. उन्होंने अपने गुरु की संगीत साधना को जारी रखा. उन्होंने संगीत का ख़ूब प्रचार-प्रसार किया. बाद में उन्हीं के नाम पर संगीत सम्मलेन का नाम ‘हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन’ पड़ गया.  
 
स्वामी हरि वल्लभ के बाद पंडित तोलो राम ने साल 1885 में संगीत के इस सफ़र को आगे बढ़ाया. उस वक़्त महाराजा कपूरथला ने भी उनकी भरपूर मदद की. प्रख्यात संगीतज्ञ इससे जुड़ने लगे. साल 1908 में शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गुरु सूर्य विष्णु दिगम्बर ने इस संगीत सम्मेलन में शिरकत की, तो इसकी ख्याति और बढ़ने लगी. इसके बाद ग्वालियर घराने के संगीतज्ञ पंडित ओंकार नाथ ठाकुर और पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के शिष्य गायक विनायकराव पटवर्धन ने इस सम्मलेन में अपनी कला का प्रदर्शन करके इसकी ख्याति को बुलंदी तक पहुंचा दिया. संगीत की दुनिया में दूर-दूर तलक इसकी चर्चा होने लगी. संगीत प्रेमी इसके आयोजन का सालभर इंतज़ार करते थे.
 
इस संगीत सम्मलेन में देश के विख्यात संगीतज्ञों और गायकों ने अपनी कला से लोगों को मंत्रमुग्ध किया. इनमें प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक पंडित भीमसेन जोशी, पटियाला घराने के उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां, प्रख्यात सितार व सुरबहार वादक उस्ताद इमदाद ख़ां, सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ां, पंडित रवि शंकर, सरोद वादक अमजद अली ख़ां, सन्तूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा और बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, तबला वादक उस्ताद अल्लाह रक्खा ख़ां, उस्ताद ज़ाकिर अली ख़ां, पंडित सामता प्रसाद, पंडित किशन महाराज और मोहन वीणा वादक पंडित विश्वमोहन भट्ट आदि संगीतज्ञ शामिल हैं.
 
इनके अलावा प्रख्यात ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर समेत देश के जाने माने गायक भी इस सम्मेलन में अपनी दिलकश आवाज़ का जादू बिखेर चुके हैं. इस सम्मलेन का जलवा यह था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन में गए थे. साल 1928 में पंडित तोलो राम का निधन हो गया, तो महंत द्वारिका दास ने संगीत के इस आयोजन को जारी रखा. उन्होंने हरि वल्लभ संगीत महासम्मेलन ट्रस्ट का गठन किया. अब इसी ट्रस्ट की देखरेख में इसका आयोजन किया जाता है. 
 
 
ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर 
 
बॉलीवुड के पंजाबी अभिनेता
 
बॉलीवुड में पंजाब के कलाकारों का राज रहा है. धर्मेन्द्र, सुपर स्टार राजेश खन्ना, जितेन्द्र, विनोद खन्ना, सईद जाफ़री, दारा सिंह रंधावा, रंजीत बेदी, दीप्ति नवल, प्रीती सप्रू, शशि पूरी, जूही चावला, गुल पनाग, मंगल ढिल्लो, पुनीत इस्सर, सन्नी देओल, अभय देओल, अक्षय कुमार, सोनू सूद, आयुष्मान खुराना, बिन्नू ढिल्लो, राजेश शर्मा, सुरवीन चावला और गिप्पी ग्रेवाल आदि शामिल हैं.
 
इनके अलावा गुरदास मान, हंसराज हंस, गुरु रंधावा, सिन्धु मूसे वाला, रंजीत बावा, प्रीत हरपाल, नीरू बाजवा और कुलराज कौर रंधावा, निसार ख़ान, दीप्ति मेहता, मेहरीन पीरज़ादा, सिमरत कौर, शरण्या जीत कौर, मीती काल्हेर, सुरभि ज्योति, अमरिन्दर गिल, कपिल शर्मा, देव खरौद, एमी विर्क और दिलजीत दोसांझ आदि पंजाब का नाम रौशन कर रहे हैं. पंजाबी फ़िल्म उद्योग भी ख़ूब तरक़्क़ी कर रहा है. कनाडा के टोरंटो में पंजाबी फ़िल्में ख़ूब हिट हो रही हैं.   
 
 
बताया जा रहा है कि टोरंटो इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल-2023 में लजीत दोसांझ की अपकमिंग फ़िल्म पंजाब 95 का प्रीमियर होगा. यह फ़िल्म ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालरा पर आधारित है. इस फ़िल्म में बॉलीवुड अभिनेता अर्जुन रामपाल और सुविन्दर विक्की भी मुख्य भूमिका में होंगे.
 
वेशभूषा  
 
पंजाब का औरतों और मर्दों का पारम्परिक लिबास धोती-कुर्ता है. पुरुष धोती-कुर्ता और कुर्ता-पायजामा पहनते हैं. कुर्ते के ऊपर बंडी पहनते हैं और सर पर पगड़ी बांधते हैं. औरतें सलवार-क़मीज़ भी पहनती हैं. इसके साथ रंग-बिरंगा दुपट्टा ओढ़ती हैं. यह दुपट्टा बेल-बूटों से सजा हुआ होता है. दरअसल यहां की संस्कृति पर इस्लाम का ख़ासा असर है. यहां की औरतें मुस्लिम औरतों की तरह सर पर दुपट्टा लिए रहती हैं. वे बालों में रंग-बिरंगा परांदा डालती हैं. यहां की पटियाला सलवार बहुत मशहूर है. 
 
खानपान
 
पंजाब देसी घी, मक्खन और तेज़ मसालों वाले खानों के लिए मशहूर है. सरसों का साग और मक्के की रोटी यहां का मुख्य भोजन है. साग को ख़ूब घोंटकर पकाया जाता है और मक्के की रोटी मक्खन में तर होती है. यहां की दाल मखनी भी देशभर के होटलों की शान बन चुकी है. पंजाब में बनने वाली दाल दूध में धीमी आंच पर पकायी जाती है. इसमें बहुत सी क्रीम और मक्खन डाला जाता है. पंजाब में नॉन वेज खाना भी ख़ूब पसंद किया जाता है. यहां के छोले भठूरे, छोले कुलचे, छोले चावल, कढ़ी चावल और राजमा चावल भी बहुत मशहूर हैं. 
 
कारोबार व हस्तशिल्प   
 
पंजाब को क़ुदरत ने पानी से ख़ूब सराबोर किया है. इसलिए यहां की धरती बहुत ही उपजाऊ है. यहां के खेत सोना उगलते हैं. यह कृषि प्रधान राज्य है. यहां गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, चना, सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, दालें, गन्ना और कपास आदि की ख़ूब पैदावार होती है. यहां उद्योग-धंधे भी ख़ूब फल-फूल रहे हैं. लुधियाना के गर्म कपड़े, जैकेट और कम्बल आदि बहुत मशहूर हैं. पंजाब की फुलकारी नाम की कढ़ाई के लोग दीवाने हैं.
 
यहां की जूतियां बहुत ही आकर्षक होती हैं. यह राज्य लकड़ी के काम ख़ासकर मज़बूत फ़र्नीचर के लिए भी जाना जाता है. यहां के मिट्टी के कच्चे बर्तन बहुत सुन्दर होते हैं. इनकी ख़ास बात यह है कि इन्हें आग में पकाया नहीं जाता. इन्हें बनाने के बाद धूप में सुखाया जाता है. बर्तन कच्चे होने की वजह से इनकी मिट्टी की सौंधी महक बरक़रार रहती है.   
 
 
खेल 
 
पंजाब में आधुनिक खेलों हॉकी और क्रिकेट से लेकर अनेक पारम्परिक खेल कबड्डी, कुश्ती और खुड्डो खोंडी आदि खेले जाते हैं. पंगुरहा छोटी लड़कियों का खेल है. पंजाब के एक सौ से ज़्यादा पारम्परिक खेल हैं. लुधियाना ज़िले के क़िला रायपुर में हर साल देहाती खेलों का आयोजन किया जाता है. इसे मिनी ओलिम्पिक्स के रूप में भी जाना जाता है. इसकी बैलगाड़ी दौड़ देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे, लेकिन फ़रवरी 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने एनिमल एक्ट के तहत इस पर पाबंदी लगा दी थी. तब से यह खेल बंद है.
 
पंजाब हर लिहाज़ से समृद्ध राज्य है. यहां के लोग ज़िन्दा दिल हैं. पंजाब के बहुत से लोग विदेशों में नौकरियां करते हैं और कई-कई बरसों बाद वापस घर आते हैं. फ़िलहाल सावन का महीना चल रहा है. पंजाब की विरहनें झूला झूलते हुए गाती हैं-
 
फुल्लां ते कलीआं नूं मुस्कुराणा आ गिआ  
तूं वी आ सोहणिआ वे सावण सुहाणा आ गिआ   
   
(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)