सूफ़ी सिलसिले और ख़ानवाद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-06-2023
सूफ़ी सिलसिले और ख़ानवाद
सूफ़ी सिलसिले और ख़ानवाद

 

फ़िरदौस ख़ान

सूफी मसलक के कई सिलसिले हैं. सभी सिलसिले हजरत अली अलैहिस्सलाम से मंसूब हैं. हदीसों और मोतबिर किताबों के हवाले से बुजुर्गाने-दीन बताते हैं कि जब हजरत अली अलैहिस्सलाम दस साल के थे, तब अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दावते-जुलअशीरा का अहतमाम किया. इस दावत में खानदान के अमूमन सभी लोग शामिल थे. यानी हजरत मुत्तलिब के बेटे व आपके बेटों के बेटे और उनके घर के लोग.

इस दावत में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलान किया कि अली मेरे भाई हैं, मेरे वसी हैं यानी जिन्हें वसीयत की जाए, मेरे जांनशीन हैं, इमाम हैं और खलीफा हैं. आपने इस बात से अपने खानदान के लोगों को आगाह किया.

इसके बाद अपने आखिरी हज की वापसी के मौके आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मैदाने गदीर में पूरी दुनिया से आए हुए तकरीबन सवा लाख हाजियों की मौजूदगी में वही ऐलान तमाम आलमे-इस्लाम को गोश-गुजार किया कि अली मेरे भाई हैं, मेरे वसी हैं, मेरे जांनशीन हैं, इमाम हैं और खलीफा हैं. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- “मन कुंतो मौला फहजा अलीयुन मौला” यानी जिसका मैं मौला हूं, उसका अली मौला है.

एक हदीस के मुताबिक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- “तमाम आदमे औलाद को छोड़ देना, मगर अली अलैहिस्सलाम का साथ न छोड़ना, क्योंकि अली अलैहिस्सलाम तुम्हें गुमराह नहीं होने देंगे.” (कनजुल आमाल)

एक हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- “मैं इल्म का शहर हूं और अली अलैहिस्सलाम इसका दरवाजा हैं. लिहाजा जो इस शहर में दाखिल होना चाहे, तो उसे चाहिए कि वह इस दरवाजे से आए.”  (हाकिम मुस्तदरक)

एक हदीस के मुताबिक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- “मैं हिकमत का घर हूं और अली अलैहिस्सलाम इसका दरवाजा हैं.” (तिर्मिजी)

इसका मतलब यह है कि मौला अली अलैहिस्सलाम ही वह खलीफा हैं, जिन्हें अल्लाह के हुक्म से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खलीफा बनाया था. इस लिहाज से रूहानियत के सभी सिलसिले हजरत अली अलैहिस्सलाम से वाबस्ता हैं.

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मौला अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद जो सूफी हजरात इस्लामी तसव्वुफ की तालीमातो-तबलीग में सरगर्दां रह,े उन्हीं में से कुछ बुजुर्गों के नाम से ये सिलसिले मंसूब हुए और जाने पहचाने गए. फिर इन्हीं सिलसिलों में से कुछ बुजुर्गों के नाम से खानवादे पहचाने गए.      

सूफियों के चार सिलसिले और चौदह खानवादे हैं. अबू फजल ने आईने-अकबरी में लिखा है कि हिन्दुस्तान में सूफियों के 14 खानवादे हैं.

सूफियों के चार पीर हैं- हजरत अली अलैहिस्सलाम के बेटे हजरत इमाम हसन अलैहिस्सलाम और हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, हजरत ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह और हजरत कुमैल इब्ने जियाद रहमतुल्लाह अलैह.

चिश्तिया सिलसिला

चिश्तिया सिलसिले की स्थापना ईरान के खुरासान इलाके के गांव चिश्त के हजरत अबुल इस्हाक शामी रहमतुल्लाह अलैह ने की थी. इसलिए यह सिलसिला चिश्तिया कहलाया. वे हजरत अली अलैहिस्सलाम की नौवीं पीढ़ी के माने जाते हैं.

उनके खलीफा अबू अहमद अब्दाल थे. उनकी सातवीं पीढ़ी के हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह माने जाते हैं, जो हिन्दुस्तान में चिश्ती सिलसिले के पहले सूफी थे. वे हजरत शेख उम्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो-खलीफा थे. वे कई देशों का सफर करते हुए राजस्थान के अजमेर में आए और यहां अपनी खानकाह बनाई. वे ख्वाजा गरीब नवाज व हिन्दल वली के नाम से मशहूर हैं.

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उनके मुरीदो-खलीफा हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह, फिर उनके मुरीदो-खलीफा हजरत फरीरुद्दीन गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह यानी बाबा फरीद, फिर उनके मुरीदो-खलीफा हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह, फिर उनके मुरीदो-खलीफा हजरत नसीरुद्दीन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह और अमीर खुसरो ने हिन्दुस्तान में रूहानियत को बढ़ावा दिया.

हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो-खलीफा हजरत शेख बुरहानुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने दौलताबाद में अपनी खानकाह बनाई और दक्षिण भारत में अपने सिलसिले का काम किया.

बाद में हजरत फरीरुद्दीन गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो-खलीफा हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के नाम पर निजामिया और हजरत अलाउद्दीन साबिर कलियरी रहमतुल्लाह अलैह के नाम से साबिरिया खानवाद मंसूब हुआ.

चिश्तिया सिलसिले के सूफी बादशाहों से दूर रहते थे. वे कभी किसी बादशाह के दरबार में नहीं जाते थे. अगर बादशाह उनकी खानकाह में आते, तो वे पिछले दरवाजे से चले जाते थे. हजरत शेख शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह यानी हजरत बू अली शाह कलन्दर फरमाते हैं-

जुह्दो-तकवा चीश्त ऐ, मर्दे फकीर

ला तमअ बूदन जे सुल्तानो-अमीर.

(दीवान हजरत शरफुद्दीन बू अली कलन्दर) 

इन सूफियों की खानकाहों में सभी मजहबों और जातियों के लोग आते हैं. वे मानते हैं कि मुहब्बत और खिदमते खल्क के जरिये ही अपने परवरदिगार तक पहुंचा जा सकता है. अल्लामा मुहम्मद इकबाल रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैंः

मैं जो सर-ब-सज्दा कभी हुआ तो जमीं से आने लगी सदा

तेरा दिल तो है सनम-आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज में

और

अजान अजल से तेरे इश्क का तराना बनी

नमाज उसके नजारे का इक बहाना बनी

अदा-ए-दीदे-सरापा नयाज है तेरी

किसी को देखते रहना नमाज है तेरी

सुहरवर्दी सिलसिला

सुहरवर्दी सिलसिला ईराक के सुहरवर्द शहर के हजरत शेख शहाबुद्दीन उमर सुहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के शहर के नाम से मंसूब है. उनके मुरीदो-खलीफा हजरत शेख बहाउद्दीन जकारिया अपने मुर्शिद के हुक्म से मुल्तान आए और यहां उन्होंने अपनी खानकाह बनाई.

उन्होंने अपने सिलसिले का प्रचार-प्रसार किया. उनके विसाल के बाद उनके बड़े बेटे हजरत सदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह गद्दी पर बैठे. उनके बाद उनके मुरीद हजरत शेख अहमद माशूक रहमतुल्लाह अलैह खलीफा बने. हजरत शेख बहाउद्दीन जकारिया के मुरीदों में हजरत शैख हुसैन अमीर हुसैनी सुहरवर्दी प्रमुख थे.

इस सिलसिले के बुजुर्गों में हजरत अबू अल कासिम जलालुद्दीन तबरिजी रहमतुल्लाह अलैह, हजरत शेख रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हजरत मखदूम शेख समाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हजरत शेख जलालुद्दीन बुखारी भी शामिल हैं. यह सिलसिला पंजाब और सिंध में बहुत लोकप्रिय हुआ.  

काबिले गौर है कि सुहरवर्दी सिलसिले से कई खानवाद मंसूब हुए. सुहरवर्दी सिलसिले से फिरदौसी खानवाद मंसूब हुआ. इसकी स्थापना हजरत शेख बदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने की थी. इसके बुजुर्गों में हजरत शरफुद्दीन याहया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह बहुत मशहूर हैं.

इन्हें मखदूम उल मुल्क बिहारी के नाम से भी जाना जाता है. इनका जन्म बिहार के पटना जिले के गांव मनेर में हुआ था. इसलिए इन्हें मनेरी कहा जाता है. यह खानवाद उत्तर भारत खासकर बिहार और झारखंड में खूब लोकप्रिय हुआ.

इसी तरह सुहरवर्दी सिलसिले से शत्तारी खानवाद मंसूब हुआ. इसकी स्थापना शेख सिराजुद्दीन अब्दुल्लाह शत्तार रहमतुल्लाह अलैह ने की थी. इस खानवाद के हजरत शाह मुहम्मद गौस रहमतुल्लाह अलैह मशहूर बुजुर्ग हैं. उनकी किताबें जवाहिर-ए-खसमा और अबरार-ए-गौसिया बहुत विख्यात हैं. यह खानवाद मध्य और पूर्वी भारत में बहुत लोकप्रिय हुआ. उन्हें मुगल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीत सम्राट तानसेन का गुरु माना जाता है. यह खानवाद मध्य एशिया और ईरान में इश्किया और तुर्की में बुस्तामिया नाम से जाना जाता है.

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इसी तरह हजरत शेख बहाउद्दीन जकारिया रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो-खलीफा हजरत सैयद जलालुद्दीन ‘शाह मीर’ सुर्खपोश रहमतुल्लाह अलैह से जलाली खानवाद मंसूब हुआ. उनके खलीफा उनके पोते हजरत अहमद कबीर रहमतुल्लाह अलैह थे.

सुर्खपोश की पीढ़ी के हजरत मीरान मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह से मीरांशाही खानवाद मंसूब हुआ. हजरत शेख बहाउद्दीन जकारिया रहमतुल्लाह अलैह की आठवीं पीढ़ी के हजरत दौलतशाह रहमतुल्लाह अलैह से दौलताशाही खानवाद मंसूब हुआ.

हजरत शेख बहाउद्दीन जकारिया रहमतुल्लाह अलैह की चौदहवीं पीढ़ी के हजरत हाफिज इस्माइल रहमतुल्लाह अलैह से इस्माइल खानवाद मंसूब हुआ. हजरत शख बहाउद्दीन जकारिया रहमतुल्लाह अलैह के एक मुरीद हजरत लालशाह वाज रहमतुल्लाह अलैह से लालशाह वाजिया खानवाद मंसूब हुआ.     

कादरी सिलसिला

कादरी सिलसिला ईराक के बगदाद शहर के हजरत अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के इस्मे गिरामी से मंसूब है. हजरत शेख मुहम्मद अल हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह के बेटे हजरत शेख अब्दुल कादिर रहमतुल्लाह अलैह ने हिन्दुस्तान में इस सिलसिले का प्रचार-प्रसार किया. इस सिलसिले के बुजुर्गों में हजरत शेख मीर मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह बहुत मशहूर हैं. मुगल बादशाह शाहजहां का बड़ा बेटा दारा शिकोह इसी सिलसिले के हजरत मुल्लाशाह रहमतुल्लाह अलैह का मुरीद था.

नक्शबंदी सिलसिला

नक्शबंदी सिलसिले की स्थापना हजरत ख्वाजा वहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह ने की थी. कुछ बुजुर्गों का मानना है कि हजरत ख्वाजा वहाउद्दीन नक््शबंदी रहमतुल्लाह अलैह नक्काशी का काम करते थे, इसलिए यह सिलसिला आपके पेशे से मंसूब हो गया. कुछ बुजुर्गों का मानना है कि उनकी तालीमो-तबलीग से दिल पर अल्लाह का नाम नक्श हो जाता था, इसलिए उनके मुरीद ‘नक्शबंदिया’ कहलाने लगे.

हजरत ख्वाजा बकी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने हिन्दुस्तान में इसका प्रचार- प्रसार किया. हजरत शेख अहमद सरहिन्दी रहमतुल्लाह अलैह इस सिलसिले के बहुत ही मशहूर बुजुर्ग हैं. हजरत ख्वाजा मीर दर्द रहमतुल्लाह अलैह इस सिलसिले के आखिरी विख्यात बुजुर्ग हैं.

उनसे इल्मे इलाही मुहम्मदी नाम से एक खानवाद भी मंसूब हुआ. इनके खतों का मजमुआ मकतूबात-ए-रब्बानी के नाम से जाना जाता है.   मुगल बादशाह औरंगजेब हजरत ख्वाजा मीर दर्द रहमतुल्लाह अलैह के बेटे हजरत शैख मासूम रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे.

काबिले गौर बात यह भी है कि इस सिलसिले के लोग अपने शिजरे को पहले खलीफा अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से जोड़ते हैं. हकीकत यही है कि सभी सिलसिले हजरत अली अलैहिस्सलाम से ही मंसूब हैं.

यह भी काबिले गौर है कि वक्त के साथ-साथ खानवादों की तादाद में इजाफा होता गया और आगे भी होता रहेगा. हजरत बदीउद्दीन शाह जिन्दा कुतबुल मदार रहमतुल्लाह अलैह के नाम से मदारिया या मदार खानवाद मंसूब हुआ. इसी तरह हजरत अब्दुल अजीज मक्की रहमतुल्लाह अलैह से कलंदरिया खानवाद मंसूब हुआ.

बहरहाल सूफियों की तालीमो-तबलीग की वजह से सूफिज्म की महक हर सिम्त फैल रही है. लोगों को सूफियों की दरगाहों और खानकाहों में आकर कल्बे सुकून हासिल होता है. असद भोपाली के अल्फाज में-

इक आपका दर है मेरी दुनिया-ए-अकीदत

ये सजदे कहीं और अदा हो नहीं सकते

(लेखिका सूफिज्म के चिश्तिया सिलसिले से जुड़ी हुई हैं और उन्होंने सूफी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ लिखी है)