बीबी कमाल की अज़मत में सूफी महोत्सव : प्रसिद्ध गायिका कविता सेठ के नगमे पर झूमे लोग

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 01-10-2023
Sufi Festival in Bibi Kamal Ki Azmat: People danced to the song of famous singer Kavita Seth.
Sufi Festival in Bibi Kamal Ki Azmat: People danced to the song of famous singer Kavita Seth.

 

सेराज अनवर/पटना 
 
भारत में सूफ़िज़्म की उत्पत्ति दरगाह से माना जाती है.सूफी मत यहीं से फैला.सूफी-संतों की फेहरिस्त में बीबी कमाल का नाम प्रमुख लोगों में है.आईने अकबरी में महान सूफी संत मखदूम बीबी कमाल की चर्चा की गई है.सुफ़िज़्म में इसकी अज़मत को देखते हुए वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूफी महोत्सव की शुरुआत की.तब से यहां लगातार इसका आयोजन किया जा रहा है.

बिहार सरकार ने महान महिला सूफी संत बीबी कमाल के मकबरे की महत्ता को देखते हुए इसे सूफी सर्किट से जोड़कर धार्मिक महता के साथ-साथ पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है और हर साल सितंबर माह में सूफी महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जहां देश विदेश के नामचीन सूफी गायक अपने सूफ़ियाना गीत-संगीत प्रस्तुत करते है.
 
शुक्रवार(29 सितम्बर)की संध्या बीबी कमाल के मक़बरा पर सूफी महोत्सव के आयोजन के मौके पर प्रसिद्ध सूफी गायिका कविता सेठ ने सूफ़ियाना गीतों से महोत्सव को रौनक़ बख्शी.सूफी महोत्सव का आयोजन बिहार सरकार के पर्यटन विभाग और जहानाबाद जिला प्रशासन की ओर से किया गया था. 
 
sufizm
 
सूफिज्म में दरगाहों का महत्व 

दरगाह फ़ारसी शब्द है.जिसे अक्सर किसी प्रतिष्ठित सूफी-संत, पीर, वली या दरवेश की कब्र को केन्द्रित कर बनाया गया है.सूफियों के अज़ीम समूह ने मानवता को बिना भेदभाव के मुहब्बतों का वास्तविक संदेश दिया. दरगाह में मजहब के मायने बदल जाते हैं.
 
यहां आने वाले हर शख्स को इंसानियत,भाईचारा और मोहब्बत की शिक्षा मिलती है और यही वजह है कि दरगाहों को साम्प्रदायिक सद्भाव के रूप में पहचान मिली.यहां आकर धर्म की दीवार टूट जाती है.क्या हिन्दू,क्या मुसलमान बिना धार्मिक भेदभाव के दरगाहों में मत्था टेकते हैं और उनकी मुरादें पूरी होती है.
 
बिहार में प्राचीन इतिहास को समेटे कई दरगाहें हैं.जो अपने निर्माण,संस्कृति,मुराद,मन्नतें,साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए मशहूर हैं.बिहार देश का इकलौता राज्य है जहां जहानाबाद स्थित बीबी कमालो को देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव हासिल है.उर्स के मौके पर यहां बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल तथा झारखंड सहित देश के अन्य हिस्से से लोग यहां आते हैं और मजार पर चादरपोशी कर अमन चैन एवं समृद्धि की दुआ मांगते हैं.
 
bibi kamal
 
 कौन हैं बीबी कमाल?
 
 बीबी कमाल की वजह से न केवल बिहार के जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सुफियत की रौशनी जगमगायी है. इन्हें देश दुनिया की महान महिला सूफी होने का गौरव हासिल है.इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हदिया उर्फ बीबी कमाल है. दरअसल बचपन से ही उनकी विशेषताओं को देखकर उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतुल्लाह अलैह उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे.
 
यही कारण है कि वह इसी नाम से चर्चित हो गयी. साम्प्रदायिक सौहार्द का नायाब नमूना काको स्थित बीबी कमाल की मजार अपने अंदर कई कहानियों को समेटे हुए है.बीबी कमाल का मजार मुख्य दरवाजा के अंदर परिसर में स्थित है.
 
रूहानी इलाज के लिए प्रसिद्ध मन्नत मानने और इबादत करने वाले लोग इनके मजार को चादर एवं फूलों की लड़ियों से नवाजते हैं. यहां उर्स के मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.बीबी कमाल की दरगाह तकरीबन 700 वर्ष पुरानी है.लोगों का कहना है कि वर्ष 1174 में बीबी कमाल अपनी बेटी दौलती बीबी के साथ काको आई थी.यहां आने के बाद से ही वह काको की ही रह गई.
 
देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव भी उन्हीं को प्राप्त है. बीबी कमाल बिहार शरीफ के हजरत मखदूम शेख शरफुद्दीन अहमद यहिया मनेरी की मां की बहन थीं. संयोग से, सभी बहनें सूफी और सूफियों की पत्नियां बन गईं.बीबी कमाल के माता का नाम मल्लिका जहां था.
 
बीबी कमाल के जन्म और मृत्यु के बारे में स्पष्ट पता तो नहीं चलता है, लेकिन जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक 1211 ए.डी में उनका जन्म हुआ था और लगभग 1296 एडी में इंतकाल हुआ था.उनका मूल नाम मकदुमा बीबी हदिया उर्फ बीबी कमाल है और बीबी कमालो है.
 
bibi kamal
 
बीबी कमाल में काफी दैवीय शक्ति थी. 

बीबी कमाल के मजार पर आज भी लोग रूहानी ईलाज के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं. जनानखाना से दरगाह शरीफ के अंदर लगे काले रंग के पत्थर को कड़ाह कहा जाता है.जहानाबाद निवासी मेराज आलम गुड्डु के अनुसार यहां जो लोग सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं उनकी मुरादें पूरी होती हैं.
 
वैसे मानसिक रूप से ग्रसित लोग भी यहां आते हैं. लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस मजार में काफी शक्ति है.दरगाह के अंदर दरवाजे के समीप सफेद व काले पत्थर पर लोग अंगुली को घिसकर आंख पर लगाते हैं तो उसकी रौशनी बढ़ जाती है.
 
इस मजार के समीप एक अतिप्राचीन कुआं भी है.मानना है कि इस कुएं के पानी का उपयोग कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए फिरोज शाह तुगलक ने किया था.फिरोजशाह तुगलक जैसे बादशाह ने भी बीबी कमाल को महान साध्वी के तौर पर अलंकृत किया था.
 
उनके मजार पर शेरशाह सूरी तथा जहांआरा जैसे मुगल शासकों ने भी चादरपोशी कर दुआएं मांगी थी.उर्दू के स्थानीय पत्रकार ग़ुलाम असदक़ के मुताबिक़ काको अपने आप में वो हकीकत और अफसाना हैं कि जितना सुनते जाइए उतना ही दिलचस्प होता जाता है.
 
जो भी इसका बयान सुनाता है, एक नई दास्तान सुनाता है. एक शहर, जिसका खयाल आते ही जेहन में तहज़ीब की शमा रोशन हो उठती हैं. जिसका जिक्र छिड़ते ही दिल की गलियां गुलशन हो उठती हैं. जिसका नाम लेकर आशिक अहदे वफ़ा करते हैं, सुखन-नवाज जिसके होने का शुक्र अदा करते हैं.