दिल्ली में सूफी रंग: हजरत निजामुद्दीन औलिया के उर्स का तीसरा दिन कव्वालियों और दुआओं के नाम, अजहरुद्दीन की दस्तारबंदी

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 25-10-2024
 दिल्ली में सूफी रंग: हजरत निजामुद्दीन औलिया के उर्स का तीसरा दिन कव्वालियों और दुआओं के नाम, अजहरुद्दीन की दस्तारबंदी
दिल्ली में सूफी रंग: हजरत निजामुद्दीन औलिया के उर्स का तीसरा दिन कव्वालियों और दुआओं के नाम, अजहरुद्दीन की दस्तारबंदी

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में इन दिनों सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती का 721वां उर्स बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. यह पांच दिवसीय उर्स कार्यक्रम हर साल की तरह इस साल भी लाखों श्रद्धालुओं को दरगाह पर खींच लाया है.

 उर्स के तीसरे दिन की खास बात थी बारा कुल का आयोजन और देश व दुनिया में शांति और भाईचारे के लिए की गई विशेष दुआ.निजामुद्दीन की तंग गलियों को लाइटों से सजाया गया है, जो उर्स की रौनक में चार चांद लगा रही हैं.

हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के आसपास का वातावरण भक्तिमय हो उठा है. श्रद्धालु दरगाह तक पहुंचने के लिए इन सजी-धजी गलियों से होकर गुजरते हैं, जहां की रौशनी और सजावट से उर्स की महत्ता का अहसास होता है.

तीसरे दिन का विशेष आयोजन

उर्स के तीसरे दिन बारा कुल का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. इस मौके पर खासतौर पर देश और दुनिया में अमन और शांति की दुआ की गई. इसके बाद कव्वाली की महफिल सजी, जिसमें हजरत अमीर खुसरो के प्रसिद्ध कलाम पढ़े गए. इस दौरान कव्वाली में सूफी संगीत की अनोखी धुनों ने श्रद्धालुओं को रूहानी अनुभव का अहसास कराया.

महफिल की शुरुआत हुई हजरत अमीर खुसरो के मशहूर कलाम "ज़े हाले मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैना बनाय बतियाँ..." से, जिसने पूरे माहौल को सूफियाना बना दिया. सूफी संगीत के दीवाने देश-विदेश से आए श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए और इस खास मौके का आनंद उठाया.


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राजनीतिक और समाजिक हस्तियों की हाजिरी

इस साल उर्स के अवसर पर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से दिल्ली के मंत्री इमरान हुसैन ने दरगाह पर चादर चढ़ाई और देश-प्रदेश में शांति और समृद्धि के लिए दुआ की. उर्स के तीसरे दिन की दुआ के बाद श्रद्धालुओं के लिए लंगर का आयोजन किया गया, जिसमें सभी ने मिलकर खाना खाया और सूफी परंपरा का पालन किया.

इस कार्यक्रम में दरगाह कमिटी के प्रमुख सदस्य, सैयद फरीद निजामी, सैयद काशिफ निजामी, सैयद अल्तमश निजामी और सैयद गुलाम निजामी भी उपस्थित थे.इस बीच, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने भी दरगाह पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उनकी दस्तारबंदी सैयद अफसर अली निजामी ने की, जिससे यह दिन और भी खास बन गया.

हजरत निजामुद्दीन औलिया की जीवन यात्रा

इस मौके पर मौलाना जुनैद निजामी ने हजरत निजामुद्दीन औलिया के जीवन और उनके आध्यात्मिक योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि हजरत निजामुद्दीन औलिया के पूर्वज बुखारा से हिजरत कर बदायूं पहुंचे थे. यहीं 1238 में हजरत निजामुद्दीन का जन्म हुआ। पांच साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया, लेकिन इस विपरीत परिस्थिति ने उनके आध्यात्मिक मार्ग को और भी गहरा कर दिया.

मौलाना ने बताया कि एक दिन हजरत निजामुद्दीन औलिया ने एक सभा में अबू बक्कर नामक व्यक्ति से सूफी संत बाबा फरीद गंज शकर का जिक्र सुना. इस नाम ने उनके दिल में ऐसी खिचाब पैदा की कि वह हर दिन बाबा फरीद का नाम विद्र करने लगे.

अंततः उन्होंने बाबा फरीद से मिलने और उनके शिष्य बनने की ठान ली। इसके बाद वे आजोधन (वर्तमान पाकपटन, पाकिस्तान) चले गए, जहां बाबा फरीद ने उन्हें अपना शिष्य बनाकर सूफी ज्ञान से समृद्ध किया.

मौलाना ने आगे बताया कि हजरत निजामुद्दीन औलिया का दरबार हमेशा फकीरों, दरवेशों, और बादशाहों से भरा रहता था. सभी लोग यहां अपनी परेशानियों का समाधान खोजने और दुआ करवाने के लिए आते थे. उनका आशीर्वाद हर वर्ग और धर्म के लोगों के लिए समान रूप से उपलब्ध था. अंततः, 18 रबी ऊसानी 725 हिजरी को सूरज निकलने के समय उन्होंने इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया.


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अंतर्राष्ट्रीय श्रद्धालुओं की भागीदारी

हर साल की तरह इस साल भी उर्स के मौके पर दुनिया भर से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं. खासतौर पर पाकिस्तान से आए 75 जायरीन ने भी इस पावन अवसर पर शिरकत की. इसके अलावा अन्य देशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दरगाह पर पहुंचकर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। उर्स का यह आयोजन हर साल धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से खास माना जाता है, जो सूफी परंपराओं के साथ-साथ विश्व शांति का संदेश भी देता है.

दिल्ली सरकार की भागीदारी

इस साल दिल्ली सरकार की ओर से मंत्री इमरान हुसैन ने अरविंद केजरीवाल की तरफ से दरगाह पर चादर चढ़ाई। यह एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि यह न केवल धार्मिक सद्भाव का प्रतीक था, बल्कि यह दिखाता है कि सरकार भी इस महत्वपूर्ण आयोजन में सक्रिय भागीदार है.

हजरत निजामुद्दीन औलिया:एक संक्षिप्त परिचय

हजरत निजामुद्दीन औलिया का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 1238 में हुआ था। उन्होंने चिश्ती सूफी परंपरा का प्रचार-प्रसार किया और प्रेम, शांति, और मानवता का संदेश फैलाया. वे दिल्ली में आकर बस गए और यहां उन्होंने ग्यारसपुर को अपना निवास बनाया. उनके जीवनकाल में उनका दरबार एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र बन गया, जहां से वे लोगों को मानवता और प्रेम का पाठ पढ़ाते रहे.

इस उर्स के आयोजन ने एक बार फिर हजरत निजामुद्दीन औलिया के संदेश और उनकी सूफी परंपरा को जीवंत कर दिया है.