-फ़िरदौस ख़ान
कुछ चीज़ें हमारे दिल के बहुत क़रीब होती हैं. अगर बात अक़ीदत की हो, तो इन चीज़ों की अहमियत बहुत ही ज़्यादा बढ़ जाती हैं. यहां हम बात कर रहे हैं अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वाबस्ता निशानियों की. इन निशानियों को तबर्रुकात कहा जाता है. हिन्दुस्तान के कोने-कोने में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निशानियां बड़े एहतराम और हिफ़ाज़त से रखी हुई हैं.
इनमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाढ़ी मुबारक के बाल, नक़्शे-दस्त यानी हाथ के निशान वाले पत्थर, नक़्शे-पा यानी क़दमों के निशान वाले पत्थर, नालैन और जुब्बा शरीफ़ शामिल हैं.
हज़रत बल दरगाह
श्रीनगर में डल झील के किनारे स्थित हज़रत बल दरगाह में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाढ़ी मुबारक का बाल रखा हुआ है. इसे मू -ए-मुक़द्दस, मू-ए-पाक और मू-ए-मुबारक भी कहा जाता है. फ़ारसी में मू का मतलब है बाल. ख़ास मौक़ों पर ज़ायरीनों को इसकी ज़ियारत करवाई जाती है. कश्मीरी ज़बान में 'बल' का मतलब है जगह और यहां हज़रत का मतलब है हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यानी हज़रत की जगह यानी हज़रत बल.
कहा जाता है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वंशज हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु यह बाल मुबारक लेकर कर्नाटक के बीजापुर आए थे. उनके विसाल के बाद यह बाल मुबारक उनके बेटे हज़रत सैयद हामिद रज़ियल्लाहु अन्हु को मिला. उस वक़्त इस इलाक़े पर मुग़लों का क़ब्ज़ा हो गया.
उन्होंने यह बाल कश्मीरी व्यापारी ख़्वाजा नूरुद्दीन एशाई को दे दिया. मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को इसकी ख़बर पहुंची, तो उन्होंने नूरुद्दीन एशाई से बाल लेकर उसे क़ैद में डलवा दिया और बाल मुबारक अजमेर शरीफ़ में ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भिजवा दिया.
कुछ अरसे बाद बादशाह का मन बदल गया और उन्होंने बाल मुबारक नूरुद्दीन एशाई को वापस देने का फ़ैसला किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. नूरुद्दीन एशाई ने क़ैदख़ाने में ही दम तोड़ दिया था. यह बाल मुबारक उनकी मैयत के साथ कश्मीर ले जाया गया, तभी से यह वहां पर है.
कहा जाता है कि 26 दिसम्बर 1963 को हज़रत बल से बाल मुबारक ग़ायब हो गया था. इस ख़बर के फैलते ही लोग सड़कों पर उतर आए और कश्मीर व देश के कई हिस्सों में तनाव का माहौल पैदा हो गया. इसकी तलाश के लिए एक अवामी ऐक्शन कमेटी बनाई गई.
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहेरू ने 31 दिसम्बर को राष्ट्र के नाम आकाशवाणी पर संदेश दिया और लाल बहादुर शास्त्री को श्रीनगर भेजा. आख़िर 4जनवरी 1964को बाल मुबारक मिल गया. सरकार और लोगों ने राहत की सांस ली. तब से इसकी सुरक्षा व्यवस्था पुख़्ता कर दी गई.
ख़ानकाह-ए- बरकातिया
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहरा में ख़ानकाह-ए-बरकातिया में भी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कई निशानियां मौजूद हैं. इनमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाढ़ी मुबारक का बाल, क़दम शरीफ़ का निशान और नालैन शामिल है.
यहां हर साल उर्स के दौरान इन पाक निशानियों की ज़ियारत करवाई जाती है. कहा जाता है कि ये पाक निशानियां खाड़ी मुल्कों से होती हुई सत्रहवीं सदी में हज़रत सैयद शाह हमज़ा ऐनी रहमतुल्लाह अलैह तक पहुंचीं. उन्होंने इन्हें बड़े ही एहतराम से संभाल कर रखा. तभी से इनकी ज़ियारत का सिलसिला चला आ रहा है.
मदरसा मज़हरुल उलूम
उत्तर प्रदेश के कन्नौज ज़िले के गुरसहायगंज के मदरसा मज़हरुल उलूम में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाढ़ी मुबारक का बाल रखा हुआ है. इस मदरसे के संस्थापक हाजी मज़हरुल अरब से यह बाल मुबारक लाए थे. इस बाल को कांच के एक शोकेस में बड़े ही एहराम से रखा गया है.
हर साल सालाना जलसे के आख़िरी दिन जुमे को इस बाल की ज़ियारत करवाई जाती है. जलसा इस तरह आयोजित किया जाता है कि इसका समापन जुमे के दिन होता है. इस दिन सलाम पढ़ा जाता है. फिर उसके बाद ज़ायरीनों को बाल मुबारक की ज़ियारत करवाई जाती है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
सैयद सालार मसऊद ग़ाज़ी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह
उत्तर प्रदेश के बहराइच में सैयद सालार मसऊद ग़ाज़ी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाक निशानियां रखी हुई हैं. दरगाह परिसर में बने रसूल हुजरे में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ और क़दम मुबारक के निशान वाला पत्थर रखा हुआ है.
कहा जाता है कि बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अरब से यह पत्थर मंगवाया था. बादशाह ने यहां की इमारत भी तामीर करवाई थी. यहां हर साल उर्स के मौक़े पर दूर-दूर से ज़ायरीन आते हैं और इस पत्थर को चूमते हैं.
हज़रत शेख़ मख़दूम बर्राक शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह
उत्तर प्रदेश के फ़र्रूख़ाबाद ज़िले के गांव शेख़पुर में हज़रत शेख़ मख़दूम बुर्राक़ लंगर जहां रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह में भी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दो निशानियां रखी हुई हैं. इनमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दम मुबारक के निशान और जुब्बा शरीफ़ शामिल है. दरगाह के साहिबे-सज्जादा हज़रत अज़ीज़ हक़ उर्फ़ ग़ालिब मियां साहिब के मुताबिक़ यहां हर साल छड़ियों का मेला लगता है. इस दौरान ज़ायरीनों को जुब्बा शरीफ़ की ज़ियारत होती है.
तकिया दरगाह
उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गांव बारा में तकिया दरगाह में एक पत्थर पर रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दम मुबारक के निशान बने हुए हैं. दरगाह के गद्दीनशीं नासिर मोहम्मद हाशिब रज़ा क़ादरी का कहना है कि पत्थर पर पैग़म्बर साहब के क़दम रखते ही वह पिघल गया और उस पर क़दम मुबारक के निशान बन गए. यह पत्थर यहां सदियों से रखा हुआ है. यहां आने वाले ज़ायरीन इसकी ज़ियारत करते हैं.
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वाबस्ता ये तमाम निशानियां अक़ीदत का मर्कज़ हैं. आपके चाहने वालों के लिए ये तबर्रुकात हैं. इन्हें सदियों से बहुत ही एहतराम और हिफ़ाज़त से रखा गया है. ज़ायरीन इनकी ज़ियारत करके फ़ैज़ हासिल करते हैं.
(लेखिका आलिम हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है.आक़ा की निशानियां. सभी तवीरें नेट से ली गई हैं)