जयंती पर विशेष : मौलाना आज़ाद का बिहार से क्या है रिश्ता ?

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 11-11-2023
Special on birth anniversary: What is Maulana Azad's relation with Bihar?
Special on birth anniversary: What is Maulana Azad's relation with Bihar?

 

सेराज अनवर /पटना 
 
इमामूल हिन्द मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को आज बिहार शिद्दत से याद कर रहा है.इसलिए कि उनका रिश्ता बिहार से गहरा रहा है.संयुक्त बिहार के रामगढ़ अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था और रांची में नज़रबंदी के दौरान उन्होंने अंजुमन ए इस्लामिया की नींव रखी थी जो झारखंड के मुसलमानों के लिए आज यादगार के तौर पर है.

उनके के उस्ताद का ताल्लुक़ बिहार के अज़ीमाबाद से था.देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद के जन्म दिन पर शिक्षा दिवस मनाने वाला बिहार देश का पहला राज्य है.11 नवम्बर को अब राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा दिवस मनाया जाता है.
 
उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था और उनका पूरा नाम अब्दुल कलाम गुलाम मुहिउद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल-हुसैनी आज़ाद है. उन्हें आमतौर पर मौलाना आज़ाद के नाम से जाना जाता है, जहां मौलाना शब्द एक सम्माननीय शब्द है जिसका अर्थ है 'हमारे गुरु' और उन्होंने आज़ाद को अपने उपनाम के रूप में अपनाया.
 
बिहार जदयू के एमएलसी डॉ.ख़ालिद अनवर ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक को एक पत्र लिख कर राज्य के तमाम शिक्षण संस्थानों में 11 नवम्बर को शिक्षा दिवस आयोजित करने का निर्देश दिये जाने का आग्रह किया है. 
 
 इमारत ए शरिया की नींव रखने आये थे पटना 

आज बिहार झारखंड,ओड़िसा के मुसलमसनों का प्रतिनिधित्व संगठन इमारत ए शरिया की बुनियाद रखने मौलाना आज़ाद पटना के बांकीपुर आये थे.21 अप्रैल,1921 को इमारत ए शरिया के गठन के लिए पहली बैठक इसी जगह पर हुई थी.मौलाना आज़ाद के साथ देश के पांच सौ उलेमा इस बैठक में मौजूद थे.
 
इमारत ए शरिया के कार्यकारी अध्यक्ष मौलाना शिब्ली अल-क़ासमी बताते हैं कि पत्थर की मस्जिद सुल्तानगंज में बैठक हुई थी जिसमें हज़रत मौलाना अबुल कलाम आज़ाद मौजूद थे.इमारत ए शरिया आज एक मज़बूत शरई,सामाजिक इदारा है.
 
मौलाना का सियासी आग़ाज़ भी देखा जाये तो बिहार से शुरू होता है.1923 में बिहार के रामगढ़ अधिवेशन में वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे.1940 में रामगढ़ अधिवेशन के ही दौरान उन्हें पुनः कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया.
 
वे धर्म के आधार पर भारत विभाजन के प्रबल विरोधी थी, जिसके कारण उनका अपने करीबियों से भी काफी मतभेद रहा.1923 के रामगढ़ अधिवेशन में मौलाना आज़ाद द्वारा दिया गया भाषण आज भी स्मरणीय है.उन्होंने कहा था कि यदि हमारे बीच ऐसे हिन्दू दिमाग़ हैं जो एक हजार वर्ष पुराने हिन्दू ज़िन्दगी को वापस लाना चाहते हैं, तो उन्हें जानना चाहिए कि वे एक ऐसा सपना देख रहे हैं जो कभी पूरा नहीं होगा.
 
इसी तरह, अगर ऐसे मुस्लिम दिमाग हैं जो अपनी पुरानी संस्कृति और समाज को ताज़ा करना चाहते हैं, जिसे वे एक हजार साल पहले ईरान और मध्य एशिया से लाए थे, तो मैं उनसे कहूंगा कि जितनी जल्दी हो सके इस सपने से जाग जाएं, बेहतर होगा .क्योंकि यह एक अप्राकृतिक कल्पना है और यथार्थ की भूमि पर ऐसे विचार चल नहीं सकते.
 
हजारों वर्षों के हमारे साझा जीवन ने हमें एक एकजुट राष्ट्र के रूप में ढाला है. ऐसे टेम्पलेट नहीं बनाए जा सकते. वे सदियों से प्रकृति के छिपे हाथों से स्वनिर्मित हैं. यह सांचा ढल चुका है और इस पर भाग्य की मुहर लग चुकी है भले ही हम इसे पसंद करे या नहीं.
 
सच तो यह है कि मौलाना आज़ाद की राष्ट्रीय भूमिका इसी अधिवेशन से शुरू हुई.मौलाना आज़ाद द्वारा दिया गया भाषण एक यादगार उपदेश था.केवल इसलिए नहीं कि वह उपदेश उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष का उपदेश था, बल्कि इसलिए भी कि वह उपदेश आज के साथ-साथ कल भी प्रकाशपुंज बनकर हम भारतीयों का मार्गदर्शन करने का कर्तव्य निभाता रहेगा. इस उपदेश में मौलाना ने भारतीय सभ्यता और राजनीति दोनों के लिए एक स्पष्ट और व्यावहारिक कार्ययोजना प्रस्तुत की. 
 
 सादिक़पुर के थे उनके उस्ताद 

मौलाना आज़ाद का बिहार से रिश्ता महज़ 17 साल की उम्र से जुड़ गया था.मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने बिहार के अज़ीमाबाद जो अब पटना कहलाता है से ताल्लुक़ रखने वाले उस्ताद से उर्दू और अंग्रेज़ी की तालीम हासिल की.
 
मौलाना आज़ाद ने इस बात का ज़िक्र अपनी किताब इंडिया विन्स फ़्रीडम में किया है.वह लिखते हैं कि "मैंने सबसे पहले सर सैयद अहमद खान की रचनायें पढ़ीं.मैं पढ़ने के लिए तैयार हो गया. मैं आधुनिक शिक्षा में उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुआ.यह तथ्य मेरे सामने आया कि आधुनिक दुनिया में कोई भी व्यक्ति विज्ञान, दर्शन और साहित्य का अध्ययन किए बिना वास्तव में शिक्षित नहीं हो सकता है.
 
मैंने अंग्रेजी सीखने का फैसला किया. मैंने मौलवी मुहम्मद यूसुफ जाफ़री से बात की. जो उस समय पूर्वी पाठ्यचर्या के परीक्षक थे.उन्होंने मुझे तेजी से अंग्रेजी वर्णमाला सिखाई और प्यारे चरण सरकार की पहली किताब दी.
 
जिससे मुझे भाषा में कुछ प्रवाह मिला, मैंने बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया. मैंने इस पुस्तक के अंग्रेजी, फ़ारसी और उर्दू संस्करण एकत्र किए और उन्हें एक साथ पढ़ा. इससे मुझे पाठ को समझने में मदद मिली.शब्दकोश की मदद से मैंने अंग्रेजी अखबार भी पढ़ना शुरू कर दिया.
 
इस प्रकार जल्द ही मैंने अंग्रेजी किताबें पढ़ना सीख लिया और फिर खुद, खासकर इतिहास और किताबें दर्शनशास्त्र के अध्ययन के प्रति समर्पित कर दिया.यूसुफ जाफरी पटना के सादिकपुर परिवार चश्म व चिराग़ थे.उन्हें कलकत्ता में अंग्रेजों को उर्दू सिखाने और अनुवाद करने का काम सौंपा गया थे वहां उनकी मौलाना आजाद से दोस्ती हो गई और उन्होंने उन्हें अंग्रेजी पढ़ना सिखाया.
 
सिलसिला शुरू हुआ और फिर उन्होंने इतनी अंग्रेजी सीख ली की जीवन भर उसने साथ दिया. मौलाना आज़ाद की पहली नियमित पत्रिका, लिसान-उल-सादिक की व्यवस्था एवं प्रचार-प्रसार में भी यूसुफ़ जाफ़री का सहयोग प्राप्त था.
 
मौलाना इन क्रांतिकारियों की गतिविधियों के करीब हो गये जो लम्बे समय तक विलायत अली इनायत अली बंधुओं के नेतृत्व में पटना को मुख्यालय बनाकर सैयद अहमद शहीद के आंदोलन को जीवित रखा और भूमिगत गतिविधियां जारी रहीं.क़ाबिल ए ज़िक्र है कि उलमा ए सादिक़पुर ने जंग ए आज़ादी की ख़ातिर लाखों लाख की संख्या में शहादत पेश की. 
 
 रांची में अंजुमन इस्लामिया की रखी नींव 
 
मौलाना आजाद ने रांची स्थित अंजुमन इस्लामिया की नींव खुद अपने हाथों से रखी थी. ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें कोलकाता से हटाकर किसी दूसरे शहर में नजरबंदी में रखने का आदेश दिया.कई राज्यों ने जब उन्हें अपने यहां रखने से इनकार कर दिया, तो एकीकृत बिहार के रांची शहर में उन्हें नजरबंदी के दौरान रखने की मंजूरी प्रदान की गयी.
 
मार्च 1916 में रांची पहुंचे मौलाना आज़ाद ने मोरहाबादी में निवास किया.यह इलाक़ा कोल,उरांव,मंडारी जैसी असभ्य आदिवासी जाति के लोग रहते थे.अलबत्ता,चंद बंगालियों ने गर्मी की छुट्टी बिताने केलिए कुछ बंगले बना रखे थे .
 
इन बंगालियों में राबिन्द्र नाथ टैगोर का ख़ानदान भी था.चंद महीने बाद ही रमज़ान का महीना शुरू हो गया और मौलाना जुमा की नमाज़ अदा करने शहर की जामा मस्जिद पहुंचे.वहां उन्हें देख कर मुसलमान बहुत ख़ुश हुए और इमामत करने की गुज़ारिश की.मौलाना ने इमामत के साथ ख़ुतबा भी पढ़ा.
 
उनकी बढ़ती लोकप्रियता से अंग्रेज डर गए और 8 जुलाई,1916 को ब्रिटिश हुकूमत ने मौलाना आज़ाद की नज़रबंदी का आदेश जारी कर दिया. जंग ए आज़ादी के दौरान रांची में करीब साढ़े तीन साल (30 मार्च 1916 से 31 दिसंबर 1919) की नजरबंदी के दौरान मौलाना अबुल कलाम आजाद ने आधुनिक शिक्षा की रूपरेखा अपने मन मस्तिष्क में तय कर ली थी.
 
रांची में नजरबंदी में रहने के दौरान मौलाना आजाद ने गरीबों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास किया और स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्हें देश के पहले शिक्षामंत्री का दायित्व मिला, तो उन्होंने देश में आधुनिक शिक्षा की बुनियाद रखी. देश में आईआईटी, आईएसएम और यूजीसी जैसे उच्च शिक्षा की बुनियाद को मजबूत करने वाले शैक्षणिक संस्थान की बुनियाद रखी.
 
अंजुमन इस्लामिया के पूर्व अध्यक्ष इबरार अहमद का कहना है कि नजरबंदी के दौरान वे प्रत्येक दिन मेन रोड स्थित जामा मस्मिद में तक़रीर करने आते थे.उनका मानना था कि राष्ट्र और धर्म में कोई संबंध नहीं है.राजनीति को धर्म से दूर रखना चाहिए और इस तरह के समाज की नींव रखने की जरुरत है, जहां विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के बीच आपसी सौहार्द हो. 
 
 2007 से बिहार में मनाया जा रहा शिक्षा दिवस 

देश में सबसे पहले 2007 में बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती पर शिक्षा दिवस मनाने का फैसला लिया था.और केंद्र सरकार को भी आज के दिन को शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया था.
 
अब केंद्र सरकार भी शिक्षा दिवस मना रही है. बिहार में स्कूल के बच्चों को मौलाना आजाद की जीवनी पढ़ाई जा रही है कि किस तरह संघर्ष के बाद उन्होंने सफलता हासिल की और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान रहा.
 
इस सिलसिले में जदयू के एमएलसी ख़ालिद अनवर ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक को एक पत्र लिखा है.जिसमें उन्होंने कहा है कि सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षा दिवस समारोह के आयोजन का निर्देश जारी किया जाये.ख़ालिद अनवर ने अपने पत्र में मौलाना आज़ाद की जयंती,मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल और बिहार के गौरवपूर्ण इतिहास की चर्चा की है.
 
उन्होंने लिखा है कि पूर्वजों का मान-सम्मान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विचारधारा का लाज़मी हिस्सा रहा है.उन्होंने बिहार के समाज को जिस तरह तैयार किया है उसमें सबकी इज्ज़त और सबका सम्मान हर जगह देखने को मिलता है.
 
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों को जो एहतेराम बिहार ने दिया है वह देश के किसी राज्य में देखने को नहीं मिलता.महान स्वतंत्रता सेनानी, भारत रत्न एवं देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती 11 नवम्बर को शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का सबसे पहला फैसला हमारे नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने किया था.
 
जिसके बाद भारत सरकार द्वारा भी पूरे देश में 11 नवम्बर को शिक्षा दिवस मनाया जाता है.अनुरोध है कि राज्य के तमाम शिक्षण संस्थानों में 11 नवम्बर को शिक्षा दिवस आयोजित करने का निर्देश दिया जाए.