एएमयू में शेरवानी और पायजामा: एक परंपरा और पहचान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 17-10-2024
Sherwani and Pajama at AMU
Sherwani and Pajama at AMU

 

राकेश चौरासिया

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई थी. इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य मुस्लिम समाज को आधुनिक शिक्षा और विज्ञान में पारंगत बनाना था, ताकि वे समाज और राष्ट्र के विकास में सक्रिय योगदान दे सकें.

यहां की शिक्षा प्रणाली और परंपराएं दोनों ही इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती हैं. एएमयू की सबसे महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक है शेरवानी और पायजामा पहनना, जो विश्वविद्यालय के छात्रों की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कुछ छात्र साथ में फर की टोपी भी पहनते हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शेरवानी और पायजामा पहनना लंबे समय से एक विशिष्ट परंपरा रही है. शेरवानी को अचकन भी कहा जाता है. यह पोशाक न केवल छात्रों की पहचान को दर्शाती है, बल्कि इसे पहनने का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखना और राष्ट्रीय और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में शैक्षणिक गरिमा को प्रकट करना भी है.

शेरवानी एक लंबी, कॉलर वाली कोट की तरह होती है, जो भारत और पाकिस्तान के पारंपरिक पहनावे का हिस्सा है, जबकि पायजामा एक ढीली, आरामदायक पतलून होती है जो शेरवानी के साथ पहनी जाती है.

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दीक्षांत समारोह

एएमयू के दीक्षांत समारोह में छात्रों को शेरवानी और पायजामा पहनने की अनिवार्यता होती है. इस विशेष अवसर पर यह परंपरागत पोशाक छात्रों की गरिमा और विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करती है. शेरवानी पहनकर छात्र अपनी डिग्री ग्रहण करते हैं, जो उनकी शैक्षिक उपलब्धि का प्रतीक होता है.

विशेष व्याख्यान और अतिथि आगमन

जब विश्वविद्यालय में कोई विशेष अतिथि या उच्चस्तरीय अधिकारी आता है, जैसे कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, या कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि, तो उस अवसर पर छात्रों को शेरवानी और पायजामा पहनकर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलता है. यह परिधान विश्वविद्यालय के पारंपरिक सम्मान और आदर का प्रतीक होता है.

प्रतिनिधित्व कार्यक्रमों में

जब छात्र विश्वविद्यालय के बाहर किसी कार्यक्रम में, जैसे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, शैक्षिक दौरे, या सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व के लिए जाते हैं, तो उन्हें शेरवानी और पायजामा पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यह एएमयू की प्रतिष्ठा और परंपरागत पहचान को बनाए रखने के लिए किया जाता है.

समारोह और त्योहारों पर

विश्वविद्यालय में होने वाले विभिन्न समारोहों जैसे सर सैयद दिवस, ईद, या अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शेरवानी और पायजामा पहनना सामान्य प्रचलन है. यह पोशाक न केवल छात्रों के लिए एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक होती है, बल्कि यह विश्वविद्यालय के अनुशासन और एकजुटता को भी दर्शाती है.

शेरवानी का ऐतिहासिक महत्व

शेरवानी का भारतीय उपमहाद्वीप में एक लंबा और समृद्ध इतिहास है. इसे मुगल काल के दौरान शाही पोशाक के रूप में पहचाना जाता था और यह विशेष रूप से अमीरों और उच्च वर्ग के लोगों द्वारा पहनी जाती थी. शेरवानी का संबंध शाही परिवारों और नवाबों से भी है, जिन्होंने इसे प्रतिष्ठा और सम्मान के प्रतीक के रूप में अपनाया.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शेरवानी को पहनना इस ऐतिहासिक विरासत को आगे बढ़ाने का एक तरीका है, जो छात्रों के आत्मसम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाता है.

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शेरवानी और पायजामा का आधुनिक संदर्भ

आज के समय में, जब अधिकतर विश्वविद्यालयों में छात्रों के लिए औपचारिक पोशाक की कोई सख्त अनिवार्यता नहीं है, एएमयू में शेरवानी और पायजामा पहनने की परंपरा छात्रों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़े रखती है. यह एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो अलीगढ़ के छात्रों को अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों से अलग करता है. शेरवानी और पायजामा का पहनना छात्रों के बीच गर्व और सम्मान की भावना को बढ़ाता है और उन्हें अपने इतिहास और परंपराओं की याद दिलाता है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शेरवानी और पायजामा पहनना केवल एक वेशभूषा नहीं है, बल्कि यह एक पहचान, एक परंपरा, और एक गर्व की भावना को दर्शाता है. यह पोशाक एएमयू की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जो छात्रों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों और इतिहास से जोड़ती है.

विशेष अवसरों पर इसे पहनकर छात्र न केवल अपनी गरिमा का प्रदर्शन करते हैं, बल्कि वे विश्वविद्यालय की शैक्षिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी आगे बढ़ाते हैं. शेरवानी और पायजामा पहनने की यह परंपरा आने वाले समय में भी एएमयू के छात्रों के बीच जीवित रहेगी, और यह विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा और पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बनी रहेगी.