-फ़िरदौस ख़ान
इस्लामी साल के आठवें माह शाबान की पन्द्रहवीं तारीख़ को शबे-बरात कहते हैं. शब का मतलब है रात और बरात का मतलब है बरी होना यानी आज़ाद होना, यानी अपने सग़ीरा और कबीरा गुनाहों से तौबा करके अल्लाह से बख़्शीश मांगना. सग़ीरा छोटे गुनाहों को कहा जाता है, जैसे झूठ बोलना, किसी की बुराई करना, अपने वालिदैन और बड़ों की बात न मानना, किसी के साथ बुरा बर्ताव करना आदि.
कबीरा बड़े गुनाहों को कहा जाता है, जैसे शिर्क और वे तमाम गुनाह, जिनके लिए क़ुरआन करीम में दोज़क़ की सज़ा का ज़िक्र किया गया है. शबे-बरात को निजात वाली रात, रहमत वाली रात, बरकत वाली रात और परवाना रात भी कहा जाता है.
अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि शाबान मेरा महीना है. इसलिए आशिक़े-रसूल के लिए इस माह की बहुत अहमियत है. इसी माह क़िब्ला बदला गया था. पहले कुछ अरसे तक बैतुल मुक़द्दस क़िब्ला रहा और फिर अल्लाह तआला ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को काबा शरीफ़ की तरफ़ रुख़ करके नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया। क़ुरआन करीम में इसका ज़िक्र है.
शबे-बरात में लोग क़ब्रिस्तान जाकर फ़ातिहा पढ़ते हैं और अहले क़ब्रिस्तान के लिए मग़फ़िरत की दुआ करते हैं. वे क़ब्रिस्तान में मोमबत्तियां जलाकर रौशनी करते हैं और अगरबत्तियां भी जलाते हैं. बहुत से लोग अपने अज़ीज़ों की क़ब्रों पर फूल रखते हैं.
वे रातभर जागकर इबादत करते हैं. वे क़ुरआन पढ़ते है, नफ़िल नमाज़ पढ़ते हैं और ज़िक्रे-इलाही में मशग़ूल रहते हैं. वे अपने गुनाहों के लिए तौबा करते हैं और अल्लाह तआला से बख़्शीश मांगते हैं. वे अगले दिन रोज़ा रखते हैं. शाबान की पन्द्रहवीं तारीख़ का रोज़ा हज़ारी रोज़ा कहलाता है, क्योंकि इसका सवाब एक हज़ार रोज़ों के बराबर माना जाता है. इस दिन लोग अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त इबादत में गुज़ारना चाहते हैं.
शबे-बरात की फ़ज़ीलत
शबे-बरात की बड़ी अहमियत है. मुख़तलिफ़ हदीसों में शबे-बरात की फ़ज़ीलत बयान की गई है. हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम शाबान की पन्द्रहवीं रात को मेरे पास आए और अर्ज़ किया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आसमान की तरफ़ सर उठाएं.
मैंने पूछा- ये कौन सी रात है?
उन्होंने फ़रमाया- ये वह रात है, जिसमें अल्लाह तआला रहमत के दरवाज़ों में से तीन सौ दरवाज़े खोलता है और हर उस शख़्स को बख़्श देता है, जो मुशरिक न हो. अलबत्ता जादूगर, काहिन, शराबी, सूदख़ोर और ज़िना करने वाले की उस वक़्त तक बख़्शीश नहीं होती, जब तक वे अपने गुनाहों से तौबा न कर ले.
जब रात का चौथा हिस्सा गुज़र गया तो हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अपना सर उठाएं. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर उठाया, तो देखा कि जन्नत के दरवाज़े खुले हुए हैं और पहले दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि इस रात को रुकू करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है.
दूसरे दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि इस रात में सजदा करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. तीसरे दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि इस रात में दुआ करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. चौथे दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि इस रात में ज़िक्रे-इलाही करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है.
पांचवें दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि अल्लाह तआला के ख़ौफ़ से रोने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. छठे दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि इस रात तमाम मुसलमानों के लिए ख़ुशख़बरी है. सातवें दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि क्या कोई मांगने वाला है, जिसके सवाल के मुताबिक़ अता किया जाए. आठवें दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता आवाज़ दे रहा है कि क्या कोई बख़्शीश मांगने वाला है, जिसे बख़्श दिया जाए.
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- ऐ जिब्राईल अलैहिस्सलाम! ये दरवाज़े कब तक खुले रहेंगे? उन्होंने फ़रमाया- रात के शुरू होने से लेकर सूरज के निकलने तक ये दरवाज़े खुले रहेंगे. फिर उन्होंने फ़रमाया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! इस रात अल्लाह क़बीला बनू कलब की बकरियों के बालों के बराबर लोगों को दोज़ख़ से आज़ाद करता है. (जामी तिर्मज़ी, इब्ने माजा)
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- क्या तुम जानती हो कि शाबान की पन्द्रहवीं शब में क्या होता है? मैंने कहा- इस रात में क्या होता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- आइन्दा साल में होने वाले हर बच्चे का नाम इस रात लिख दिया जाता है और इसी रात आइन्दा साल मरने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं. इसी रात बन्दों का रिज़्क़ उतरता है और इसी रात लोगों के आमाल उठा लिए जाते हैं. (मुसनद अबू याला)
हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि मुझे ये बात पसंद है कि इन चार रातों में आदमी ख़ुद को तमाम दुनियावी मसरूफ़ियात से इलाही की इबादत के लिए फ़ारिग़ रखे. वे चार रातें हैं- ईदुल फ़ित्र की रात, ईदुल अज़हा की रात, शाबान की पन्द्रहवीं रात और रजब की पहली रात. (इब्न अल जावज़ी)
हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि शाबान का चांद देखते ही सहाबा किराम तिलावते क़ुरआन में मशग़ूल हो जाते और अपने मालों की ज़कात निकालते, ताकि कमज़ोर व मोहताज लोग रमज़ान के रोज़े रखने पर क़ादिर हो सकें. हुक्मरान क़ैदियों को रिहा करते. ताजिर सफ़र करते, ताकि क़र्ज़ अदा कर सकें और रमज़ान में एतिकाफ़ कर सकें.
हज़रत ताऊस यमानी फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से शबे बरात और उसमें होने वाले अमल के बारे पूछा, तो आपने फ़रमाया कि मैं इस रात को तीन हिस्सों में तक़सीम करता हूं. एक हिस्से में नाना जान हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद पढ़ता हूं.
दूसरे हिस्से में अपने रब से इस्तग़फ़ार करता हूं और तीसरे हिस्से में नमाज़ पढ़ता हूं. मैंने अर्ज़ किया कि जो शख़्स ये अमल करे उसके लिए क्या सवाब है? आपने फ़रमाया- मैंने वालिद माजिद हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सुना और उन्होंने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना- ये अमल करने वालों को मुक़र्रेबीन लोगों में लिख दिया जाता है.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)