दयाराम वशिष्ठ / फरीदाबाद
‘‘असफलता केवल एक सबक की तरह है, हारना तब होता है, जब आप प्रयास करना बंद कर देते हैं.’’ यह शब्द हैं रेहान अहमद, जो अपनी मेहनत, लगन और धैर्य से न केवल खुद को बल्कि अपने पूरे परिवार को सफलता की ऊंचाइयों तक लेकर पहुंचे हैं. रेहान अहमद का जीवन एक प्रेरणा है, जो यह साबित करता है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, अगर इंसान के पास मेहनत और आत्मविश्वास हो, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है.
रेहान अहमद का जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हुआ था. उनका जीवन किसी भी आम लड़के जैसा नहीं था, क्योंकि उन्होंने कभी भी खेल-कूद या सामान्य बचपन का आनंद नहीं लिया. उनका पूरा समय वुडन आर्ट यानी लकड़ी की कारीगरी में गुजरता था.
यह कड़ी मेहनत उन्होंने बचपन से ही अपने पिता दिलशाद मोहम्मद से सीखी है और जो अब उनके जीवन का मुख्य हिस्सा बन गई. आज रेहान अहमद न केवल अपनी कला के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं, बल्कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी कला का लोहा माने जाते हैं.
पिता के सपनों को साकार करते हुए
रेहान अहमद ने वुडन आर्ट की शुरुआत तब की, जब वह केवल सात-आठ साल के थे. उनके पिता दिलशाद मोहम्मद खुद एक प्रसिद्ध वुडन आर्टिस्ट थे और उन्होंने रेहान को इस कला में पारंगत करने का सपना देखा था.
लेकिन यह राह आसान नहीं थी. रेहान को लकड़ी की छिलाई करते हुए कई बार हाथ में छाले भी पड़े, साथ ही पिता की डांट भी उन्हें झेलनी पड़ी. बावजूद इसके, रेहान का सपना था कि वह अपने पिता की तरह वुडन आर्ट में नाम कमाए.
अनपढ़ता को मात देते हुए
रेहान अहमद का एक बड़ा संघर्ष उनकी अनपढ़ता थी. उन्होंने स्कूल में कभी शिक्षा नहीं प्राप्त कीऔर यही कारण था कि उन्हें मेलों में ग्राहक से बात करने में हिचकिचाहट महसूस होती थी.
हालांकि, रेहान ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपने प्राइवेट गुरु इरशाद से एबीसीडी और हिन्दी का कखगघ का ज्ञान अर्जित किया. इसके लिए उन्होंने कई महीनों तक कड़ी मेहनत की और अपने आत्मविश्वास को बढ़ाया.
अब, वह मेलों में अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में ग्राहकों से बात कर सकते हैं और अपने वुडन आर्ट के बारे में उन्हें समझा सकते थे. आज वह अपनी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर लाखों का कारोबार कर रहे हैं.
नेशनल अवार्ड से मिली पहचान
रेहान अहमद की मेहनत ने उन्हें वर्ष 2006 में वुडन आर्ट में नेशनल अवार्ड दिलवाया. इस सम्मान को उन्होंने अपने पिता की देन माना, क्योंकि अगर उनके पिता ने उन्हें वुडन कला के हर पहलु को बारीकी से न सिखाया होता, तो शायद वह यह अवार्ड हासिल नहीं कर पाते. इसके बाद, उन्हें देश-विदेश में वुडन कला की ट्रेनिंग देने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा.
मेहनत से कारोबार में सफलता
रेहान की कड़ी मेहनत ने उन्हें आज 200 गज के अपने कारखाने तक पहुंचा दिया है, जहां पर उनके पास पांच कारीगर काम करते हैं. मेलों में उन्हें कई ऑर्डर मिलते हैं, जिन्हें वे अपने कारखाने में पूरा करते हैं. पहले 500 रुपये से काम शुरू करने वाले रेहान आज लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं और वुडन आर्ट के क्षेत्र में अपना नाम बना चुके हैं.
बच्चों को दे रहे हैं वुडन कला की शिक्षा
रेहान अहमद अब केवल अपने कारोबार में ही नहीं, बल्कि स्कूली बच्चों को वुडन कला की शिक्षा देने में भी सक्रिय हैं. उन्हें दिल्ली के सरदार पटेल इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए कई बार बुलाया गया है. अब तक वह 300 से अधिक बच्चों को वुडन आर्ट के बारे में सिखा चुके हैं, ताकि भविष्य में वे इस कला को सीखकर अपना करियर बना सकें.
भविष्य के लिए योजना
रेहान अहमद का मानना है कि हरियाणा में युवाओं को वुडन आर्ट में दक्षता हासिल करने की जरूरत है. उनका कहना है कि यदि युवा इस कला को सीखते हैं, तो उन्हें भविष्य में रोजगार की कोई समस्या नहीं होगी. वह युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वे किसी भी क्षेत्र में मेहनत करें, ताकि वे खुद को और अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दे सकें.
भाई ने भी सीखा काम
रेहान के चचेरे भाई हैदर ने भी उनकी सफलता से प्रेरित होकर 12वीं कक्षा पास की और उनके साथ काम सीखना शुरू कर दिया. आज हैदर ने तीन साल में वुडन आर्ट के 50 फीसदी काम को सीख लिया है और वह जल्द ही अपने भाई के साथ मिलकर अवार्डी बनने का सपना देख रहे हैं.
कड़ी मेहनत से मिली सफलता की कहानी
रेहान अहमद की कहानी यह साबित करती है कि अगर किसी इंसान के पास संघर्ष और मेहनत करने की इच्छा हो, तो कोई भी बाधा उसे सफलता की ओर नहीं बढ़ने से रोक सकती. उनकी यात्रा न केवल एक शिल्पकार के रूप में सफलता की कहानी है, बल्कि यह जीवन में कठिनाईयों को पार करने और एक मजबूत आत्मविश्वास को अर्जित करने की भी प्रेरणा है.
आज, रेहान अहमद अपनी कला से न केवल अपने परिवार का नाम रोशन कर रहे हैं, बल्कि वे समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन चुके हैं.