रामसा पीर: बाबा रामदेव को मुस्लिम क्यों पूजते हैं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 29-08-2024
Ramsa Peer: Why Muslims worship Baba Ramdev
Ramsa Peer: Why Muslims worship Baba Ramdev

 

राकेश चौरासिया

बाबा रामदेव को मुस्लिम समुदाय में रामसा पीर के नाम से भी जाना जाता है. वे राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं में से एक हैं. राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित रामदेवरा मंदिर बाबा रामदेव का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है. बाबा रामदेव का 640वां भादों मेला 5 सितंबर को शुरू होगा. इसके लिए हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने समान रूप से तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं.

बाबा रामदेव का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले के ऊंडु काशमीर गाँव में हुआ था. वे अजमालजी तंवर की संतान थे और उनकी माता का नाम मैणादे था. रामदेव जी को मारवाड़ के राठौड़ राजा, राव मल्लीनाथ, ने पोकरण की जागीर प्रदान की थी. उनके प्रमुख सहयोगी हरजी भाटी थे, और डाली बाई उनकी प्रसिद्ध भक्त थीं.

बाबा रामदेव और रामसा पीर की मान्यता

बाबा रामदेव का जीवन और उनके कार्य मानवता और समानता की मिसाल हैं. वे छुआछूत और भेदभाव को मिटाने वाले देवता माने जाते हैं. उनके जीवनकाल में उन्होंने विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच समरसता और सद्भावना का संदेश दिया. उनके अनुयायी न केवल हिन्दू समुदाय से हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय में भी उन्हें रामसा पीर के नाम से पूजा जाता है. उनकी चमत्कारी शक्तियों और उनके अद्वितीय कार्यों के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली और वे एक लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे.

पांच पीरों की कथा

रामदेव जी की शक्तियों के संबंध में कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध कथा पांच पीरों से जुड़ी है. किंवदंती के अनुसार, मक्का से पांच पीर रामदेव जी की चमत्कारी शक्तियों की परीक्षा लेने के लिए आए थे. जब रामदेव जी ने उन्हें भोजन का आमंत्रण दिया, तो पीरों ने कहा कि वे केवल अपने बर्तनों में ही भोजन करते हैं, जो उस समय मक्का में थे. इस पर रामदेव जी मुस्कुराए और कहा कि उनके बर्तन जल्द ही आ जाएंगे. तभी पांचों पीरों ने देखा कि उनके बर्तन मक्का से उड़ते हुए आ रहे थे. रामदेव जी की इस चमत्कारी घटना से प्रभावित होकर पांचों पीरों ने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें श्रामसा पीरश् का नाम दिया. इसके बाद वे पीर रामदेव जी के साथ रहने का निर्णय किया और उनकी मजारें भी रामदेव जी की समाधि के निकट स्थित हैं.

मुस्लिमों की आस्था

बाबा रामदेव का जीवन समाज सुधार और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित था. वे सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करते थे और उन्होंने गरीबों और दलितों की मदद की. वे न केवल राजस्थान में, बल्कि गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, मुंबई और दिल्ली जैसे स्थानों में भी पूजे जाते हैं. उनके अनुयायी उनकी पूजा पूरे उत्साह और श्रद्धा से करते हैं. उन्हें अक्सर घोड़े पर सवार दिखाया जाता है, और उनके पगल्ये (चरण चिन्ह) उनके मंदिरों में पूजे जाते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग भी समान रूप से उनमें आस्था रखते हैं और उनके दरबार में परिवार सहित जाकर मन्नतें मांगते हैं. कई मुस्लिम भाई मन्नतें पूरी होने पर शुकराना का प्रसाद चढ़ाने भी आते हैं.

रामदेवरा मेला और धार्मिक आयोजन

रामदेवरा में हर साल दो बार भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है. पहला मेला भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया से दशमी तक आयोजित होता है और दूसरा मेला माघ माह में. भाद्रपद माह में आयोजित मेला राजस्थान के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है. इस दौरान हजारों श्रद्धालु हाथों में पचरंगी ध्वजा लेकर रामदेवरा की ओर पैदल यात्रा करते हैं. इन यात्राओं में विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल होते हैं और वे पूरे उत्साह से बाबा रामदेव के दरबार में हाजिरी लगाते हैं. रामदेवरा मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़ी संख्या में धर्मशालाएं और विश्राम स्थल बनाए जाते हैं. मेले के दौरान सरकार की ओर से व्यापक प्रबंध किए जाते हैं और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा निरूशुल्क भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.

रामदेवरा मेले में आने वाले श्रद्धालु जोधपुर में स्थित मसूरिया पहाड़ी पर बाबा रामदेव जी के गुरु बाबा बालीनाथ जी की समाधि के दर्शन के बाद ही रामदेवरा पहुंचते हैं. जोधपुर में विभिन्न सेवा शिविर लगाए जाते हैं, जहां जातरुओं के लिए चाय, दूध, कॉफी, जूस, बिस्किट, फल, नाश्ता और पूर्ण भोजन की व्यवस्था की जाती है. इसके अलावा, पैदल यात्रियों के पांवों में पड़े छालों पर मरहम पट्टी की जाती है और उनके विश्राम, नहाने-धोने की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं.

बाबा रामदेव जी का विवाह और परिवार

बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा राजपूत दलै सिंह की पुत्री निहालदे के साथ हुआ था. उनके परिवार के लोग भी उनकी पूजा करते हैं और उनके समाधि स्थल पर मौजूद हैं. उनके समाधि स्थल रामदेवरा में उनके परिवार की समाधियां भी स्थित हैं, जिसमें उनकी मुंहबोली बहन डाली बाई की समाधि, डालीबाई का कंगन और राम झरोखा शामिल हैं.

पाकिस्तान में भी मान्यता

रामदेव जी का जीवन सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का प्रतीक है. उनकी समाधि पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग श्रद्धा से आते हैं. यह मंदिर सांप्रदायिक एकता का जीवंत उदाहरण है, जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक ही देवता की पूजा करते हैं. बाबा रामदेव की पूजा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी की जाती है. वहां के लोग भी उन्हें ‘रामसा पीर’ के नाम से मान्यता देते हैं और उनके चमत्कारी कार्यों को याद करते हैं.

बाबा रामदेव जी का जीवन और उनके कार्य आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. वे समाज में समरसता, समानता और भाईचारे का संदेश देते हैं. उनका मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी है. रामदेव जी की पूजा और उनके मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालु उनके प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक हैं. उनके जीवन के आदर्श और उनकी शिक्षाएं आज भी समाज के विभिन्न वर्गों को प्रेरित करती हैं.