गौस सिवानी /नई दिल्ली
दिसंबर 2021 में, मुझे एक मीडिया रिपोर्ट मिली, जिसमें कहा गया था, “लगभग पचास वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद, रामपुर जिला न्यायालय ने रामपुर नवाब परिवार के संपत्ति विवाद में फैसला सुनाया है. संपत्ति को अब 16 कानूनी वारिसों में बांटा जाएगा. रामपुर के अंतिम नवाब रजा अली खान की 1966 में मृत्यु हो गई थी. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, उनकी 2,664 करोड़ रुपये की संपत्ति तय की गई.
वास्तव में रामपुर का नवाब परिवार, जिसका गौरवशाली इतिहास है, आज भी रामपुर और उसके आसपास के जिलों के लिए खास है. जहां इस परिवार ने लंबे समय तक अपने राज्य पर शासन किया, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्र भारत में संसद और विधानसभा तक भी इसकी पहुंच थी.
पूर्व सांसद मिकी मियां और नूर बेगम एक ही परिवार से ताल्लुक रखते हैं. नीचे उसी परिवार के बारे में कुछ जानकारी दी गई है, जिन्होंने न केवल राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि सभ्यता और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. कवियों, लेखकों, संगीतकारों का संरक्षण भी इस परिवार की महत्वपूर्ण कृतियों में शुमार है.
रामपुर के नवाब
भारत की स्वतंत्रता से पहले, रामपुर राज्य सहित कई छोटे राज्य थे.1719 में, पहले शासक नवाब अली मुहम्मद खान ने बागडोर संभाली. नवाब फैजुल्लाह खान, नवाब हाफिज रहमत खान बरिश, नवाब मुहम्मद अली खान, नवाब गुलाम मुहम्मद खान, नवाब अहमद अली खान, नवाब मुहम्मद सईद खान, नवाब यूसुफ अली खान सहित राज्य में कुल 11 नवाब थे. इसमें नवाब मुहम्मद मुश्ताक अली खान, नवाब हामिद अली खान शामिल थे.
अंतिम नवाब रजा अली खान रहे. रामपुर रियासत 15 तोपों की सलामी के साथ ब्रिटिश भारत का नवाबी रियासत था और उसके पास काफी दौलत भी थी, जो बाद में भारत में विलय हो गया.
निजी रेलवे स्टेशन
आजादी से पहले रामपुर के नवाबों का अपना रेलवे स्टेशन हुआ करता था. जहां दो स्पेशल कोच हमेशा तैयार रहते थे. जब भी नवाब परिवार को दिल्ली, लखनऊ या कहीं और ट्रेन से यात्रा करनी होती थी,
वे अपने कोच में चढ़ जाते और कोच को ट्रेन में जोड़ दिया जाता. रामपुर के नौवें नवाब हामिद अली खान के समय में जब रेलवे लाइन जिले से होकर गुजरती थी, तो उसने रेलवे स्टेशन के पास अपने लिए एक अलग स्टेशन बनाया था. रेल लाइन भी बिछाई गई थी.
निजी रेलवे कोच या विलासिता ?
वर्तमान में प्रस्तावित संपत्ति वितरण योजना में रेलवे के दो ऐतिहासिक कोच भी शामिल हैं. मूल्यांकन में इनकी कीमत 117.42 मिलियन रुपए थी लेकिन रखरखाव के अभाव में कीमत आधी रह गई. दिलचस्प बात यह है कि ये कोच इतने आधुनिक थे कि वे 33 मिमी सिनेमा प्रोजेक्टर, 16 मिमी सिनेमा प्रोजेक्टर, कैमरे, आयातित रेडियो ट्रांजिस्टर और टेप रिकॉर्डर से लैस थे.
कोच के पास सारी विलासिता थी. बिस्तर, कुर्सी, तकिया, सीट, चांदी के बर्तन, कांच, व्हिस्की, बीयर की बोतलें, अंग्रेजी क्रॉकरी, बड़ी सिगरेट और सिगार का डिब्बा, चांदी का पानदान, चांदी की कैंटीन सेट, चांदी का हुक्का, चांदी का बिस्तर, तलवार और विभिन्न प्रकार की बंदूकें आदि.
नवाब परिवार की संपत्ति में 1073 एकड़ जमीन, कोठी खास बाग, कोठी बेनजीर, लखी बाग, कांडा और नवाब रेलवे स्टेशन शामिल हैं, जबकि चल और अचल संपत्ति में हथियार और अन्य कीमती सामान शामिल हैं.
संपत्ति में छह चांदी के बिस्तर, 20 चांदी के पानदान, छह खसदान और 20 ईगल, 20 सिगार बॉक्स और चार हुक्का शामिल हैं. पूर्व सांसद बेगम नूरबानो का कहना है कि वह 1956 में दुल्हन बनकर खास बाग आई थीं. फिर वह चांदी के बिस्तर पर सो गई. खास बाग भारत का पहला वातानुकूलित महल था.
सांस्कृतिक विशेषता
रामपुर राज्य न केवल एक राजनीतिक राज्य था.विशेष सांस्कृतिक महत्व का भी था जिसे कार्यालय को व्यक्त करने की आवश्यकता है. वे ज्ञान के पूजारी थे. विद्वानों और छात्रों को छात्रवृत्ति भी देते थे.
इसमें गालिब भी शामिल थे. रामपुर के नवाब यूसुफ अली खां गालिब के छात्र थे. मिर्जा को वजीफा के रूप में उचित रकम भेजते थे. इसके अलावा, मिर्जादाग देहलवी सहित सैकड़ों कवियों को रामपुर के नवाबों का संरक्षण प्राप्त था.
पुस्तकालय
रामपुर के नवाब ज्ञान के मित्र थे. उनके ज्ञान की मित्रता का प्रतीक रजा पुस्तकालय है, जो कभी भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय हुआ करता था. आज भी बहुत महत्वपूर्ण है. उर्दू, फारसी और तुर्की भाषाओं में हजारों दुर्लभ पुस्तकें और पांडुलिपियां यहां उपलब्ध हैं.
नवाबी टेबल
रामपुर का नवाब खाने-पीने का शौकीन था. उनकी मेज देश-विदेश में प्रसिद्ध थी. उनके पास रसोइयों की पूरी फौज थी. रसोइया पूरा दिन उच्च गुणवत्ता वाला भोजन तैयार करने और नए स्वादों के साथ प्रयोग करने में व्यस्त रहते थे. नवाबी दस्तखान में बड़ों को आमंत्रित किया जाता था.राज्य के विघटन के बाद, नवाब के लिए दस्तरखान को जारी रखना मुश्किल हो गया.
राजनीति में नवाब परिवार
आजादी के बाद नवाब परिवार ने राजनीति में सक्रिय भाग लिया. मेजर नवाब सैयद जुल्फिकार अली खान बहादुर (11 मार्च 1933 - 5 अप्रैल 1992) लोकसभा पहुंचे.
उन्हें मिकी मियां के नाम से जाना जाता था. वह नवाब सर सैयद रजा अली खान बहादुर के दूसरे बेटे थे. 1984 और 1989 में, वह कांग्रेस के टिकट पर रामपुर लोकसभा सीट के लिए चुने गए. यह भी दिलचस्प है कि मिकी मियां ने लंबे समय तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन कभी संसद को संबोधित नहीं किया.
बेगम नूर बानो
मिकी मियां के बाद, उनकी पत्नी बेगम नूर बानो ने 11वीं और 13वीं लोकसभा में सांसद के रूप में कार्य किया. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के टिकट पर रामपुर से चुनी गईं.
बेगम नूर बानो का जन्म नवाब अमीनुद्दीन अहमद खान के घर हुआ था, जो लोहारू (भिवानी-हरियाणा) के अंतिम शासक नवाब थे. उनकी शिक्षा एमजीडी गर्ल्स पब्लिक स्कूल, जयपुर में हुई थी.
वह 1992 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में शामिल हुईं और 1996 में 36.96 प्रतिशत वोट के साथ लोकसभा के लिए चुनी गईं. वह अगले चुनाव में मुख्तार अब्बास नकवी से हार गईं.
संगीत और नृत्य की सराहना करने वाली, नूर बनुनिन देवी फाउंडेशन और रामपुर परिवार की संरक्षक हैं. बानो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक फारसी और अरबी पुस्तकों और पर्यावरण और वन संरक्षण पर शोध में रुचि रखती हैं. उन्हें पढ़ना, पेंटिंग, बागवानी और संगीत पसंद है. वह देश भर के कई स्पोर्ट्स क्लबों की सदस्य रही हैं.
नवाब काजिम अली खान और हैदर अली खान
मिकी मियां और बेगम नूर बानो के तीन बच्चे हैं. इनमें नवाबजादा सैयद मुहम्मद काजिम अली खान बहादुर (16 अक्टूबर 1960) हैं जो राजनीति में सक्रिय हैं. वह कई बार विधायक चुने जा चुके है.
मौजूदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार भी हैं. उनके अलावा उनके बेटे नवाबजादा सैयद हैदर अली खान बहादुर (19 मार्च 1990) भी चुनाव लड़ रहे हैं.
राजनीति जारी
मौजूदा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रामपुर नवाब परिवार का सम्मान भी दांव पर लगा है. आजम खान 9 बार रामपुर शहर से विधायक रह चुके हैं. अब उनकी पत्नी डॉ. तजीन फातिमा विधायक हैं. इस बार शहर में नवाब खानदान और आजम खान के बीच सीधा मुकाबला होने जा रहा है.
आजम खान सपा के टिकट पर जेल से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि नवाब परिवार के नवीद मियां (नवाब काजिम अली खान) कांग्रेस के टिकट पर शहर की सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इतना ही नहीं, आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम सावर टांडा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि नवीद मियां के बेटे हमजा मियां उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
42 साल से रामपुर की राजनीति में आजम खान का दबदबा है. वह चार बार राज्य सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री रह चुके हैं. विपक्ष के नेता और राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं.
दूसरी ओर नवाब परिवार का भी रामपुर की राजनीति में अच्छा प्रभाव रहा है. नवीद मियां सावर टांडा सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं. एक बार बिलासपुर से निर्वाचित हुए थे. वह राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
उनके पिता नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां पांच बार सांसद रह चुके हैं.उनकी मां बेगम नूर बानो दो बार सांसद रह चुकी हैं. कांग्रेस और सपा दोनों ने बाप-बेटे को टिकट दिया है.
इस बार कांग्रेस ने पूर्व विधायक नवीद मियां के साथ उनके बेटे हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां को भी टिकट दिया है. रामपुर सिटी विधानसभा से नवीद मियां कांग्रेस के उम्मीदवार हैं .
उनके बेटे हमजा मियां सावर सीट से हैं. सपा ने लगभग दो साल से सीतापुर जेल में बंद आजम खान को रामपुर शहर से और उनके बेटे अब्दुल्ला को सावर टांडा से मैदान में उतारा है.
ऐसे में दोनों परिवार आमने-सामने हैं. आजम खान राजनीति की शुरुआत से ही नवाब परिवार को निशाने पर लेते रहे हैं. इस बार वह जेल में है.