रमज़ान 2025 : चाँद देखने की दुआ

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 28-02-2025
Ramadan 2025 : Prayer for Sighing the Moon
Ramadan 2025 : Prayer for Sighing the Moon

 

-फ़िरदौस ख़ान

साल में दो चाँद ऐसे होते हैं, जिनका बेसब्री से इंतज़ार किया जाता है. एक रमज़ान का चाँद और दूसरा ईद का चाँद. दिनभर चाँद का इंतज़ार रहता है और शाम ढलते ही लोग चाँद देखने के लिए छतों पर चढ़ जाते हैं. जब चाँद नज़र आ जाता है, तो इसे देखकर ये दुआ पढ़ी जाती है-

اللهُ أكبراللَّهُمَّ أَهْلِلْهُ عَلَيْنَا بِالْأمْنِ وَالْإِيمَانِ وَالسَّلَامَةِ وَالْإِسْلَامِ وَالتَّوْفِيقِ لِمَا يحِبُّ رَبُّنا وَيرْضَى رَبنا وَرَبُّكَ اللَّهُ

यानी अल्लाह सबसे बड़ा है. ऐ अल्लाह, हम पर इस चाँद को अमन, ईमान, सलामती, इस्लाम और उस चीज़ की तौफ़ीक़ के साथ तुलुअ फ़रमा, जो तुझे पसंद है और जिसमें तेरी रज़ा है. (ऐ चाँद) मेरा और तेरा रब अल्लाह है.

अल्लाह तआला के नज़दीक दुआ की सबसे ज़्यादा अहमियत है. अल्लाह को दुआ मांगने वाले लोग बहुत पसंद हैं. अल्लाह तआला पसंद करता है कि हर चीज़ उसी से मांगी जाए. इसलिए जो शख़्स अल्लाह से नहीं मांगता, वह उस पर नाराज़ होता है. इस बाबत अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में अपने बन्दों से वादा किया है- “और तुम्हारा परवरदिगार फ़रमाता है कि तुम मुझसे दुआएं मांगो, मैं ज़रूर क़ुबूल करूंगा.”(क़ुरआन 40:60)   

मुख़तलिफ़ हदीसों में दुआ की अहमियत बयान की गई है. अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “दुआ इबादत है.” (तिर्मिज़ी 3372, सहीह तिर्मिज़ी 2590, अबू दाऊद 1479, इब्ने माजा 3828)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तक़रीबन हर मौक़े के लिए दुआ सिखाई है. मसलन सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक की दुआएं हैं. खाना खाने से पहले की दुआ और खाना खाने के बाद की दुआ, पानी पीने से पहले की दुआ और पानी पीने के बाद की दुआ.

किसी काम को शुरू करने से पहले की दुआ और काम पूरा होने के बाद की दुआ. घर से निकलते वक़्त की दुआ और घर में दाख़िल होते वक़्त की दुआ. दुख में पढ़ने की दुआ और ख़ुशी में पढ़ने की दुआ. इन दुआओं में अल्लाह से हिफ़ाज़त, सेहत, ख़ुशहाली और कामयाबी आदि तलब की जाती है और दुआएं पूरी होने के बाद अल्लाह का शुक्र अदा किया जाता है.

दुआ मांगने के भी आदाब हुआ करते हैं, यानी दुआ किस तरह मांगनी चाहिए. दुआ मांगने से पहले बिस्लिमिल्लाह पढ़ी जाए.

بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ

यानी अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है.

इसके बाद दरूद शरीफ़ पढ़ें, यानी अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद भेजें. जो भी दरूद याद हो, वह पढ़ा जा सकता है. दरूद इब्राहिमी यानी नमाज़ वाला दरूद पढ़ना अफ़ज़ल है. इसके बाद दुआ मांगे. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “हर दुआ तब तक क़ुबूलियत से महरूम रहती है, जब तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद न पढ़ा जाए.'' (जामी सही 4399)

अमल

मुख़तलिफ़ हदीसों में कई दुआओं का ज़िक्र है. रमज़ान का चाँद देखकर तीन, सात या ग्यारह बार सूरह फ़ातिहा पढ़कर भी दुआ मांगी जा सकती है. सूरह फ़ातिहा-  

اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ(1) الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ(2) مٰلِكِ یَوْمِ الدِّیْنِﭤ(3) اِیَّاكَ نَعْبُدُ وَ اِیَّاكَ نَسْتَعِیْنُﭤ(4) اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ(5) صِرَاطَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْهِمْ غَیْرِالْمَغْضُوْبِعَلَیْهِمْوَلَاالضَّآلِّیْنَ(7)

यानी

1. अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है.

2. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें सिर्फ़ अल्लाह ही के लिए हैं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.

3. वह बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है.

4. वह जज़ा और सज़ा के दिन का मालिक है.  

5. हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं

6. हमें सीधे रास्ते पर चला.

7. उन लोगों के रास्ते पर, जिन पर तूने नेअमतें अता की हैं, उन लोगों के रास्ते पर नहीं जिन पर तेरा ग़ज़ब हुआ है और जो गुमराह हैं.

(फ़िरदौस ख़ान के ‘फ़हम अल क़ुरआन’ से)

 
यानी अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं. 
 
मुसलमान चाँद क्यों देखते हैं 

इस्लामी साल यानी हिजरी कैलेंडर चाँद पर आधारित है. चाँद का महीना 29 या 30 दिन का होता है. यह महीना कितने दिन का है या अगला महीना कब शुरू होगा, यह जानने के लिए चाँद देखा जाता है. अंग्रेज़ी तारीख़ आधी रात में 12 बजे बदल जाती है, लेकिन इस्लामी तारीख़ सूरज ढलने के बाद बदलती है.
 
इसी तरह इस्लामी महीना चाँद दिखने के बाद ही शुरू होता है. यानी अमावास के बाद शाम ढलने के बाद जब चाँद दिखाई देता है, तभी से पहली तारीख़ शुरू हो जाती है. इस तरह अगले दिन शाम ढलने के बाद दूसरी तारीख़ शुरू हो जाती है.
इसकी वजह यह है कि अल्लाह ने जब सृष्टि की रचना की, तो सबसे पहले रात बनाई गई थी. अगर बादलों की वजह से इस्लामी महीने की 30 तारीख़ को चाँद दिखाई नहीं दिया, तब भी अगला महीना शुरू होना मान लिया जाता है, क्योंकि चाँद का महीना 29 या 30 दिन का ही होता है.
 
इस वजह से इस्लामी त्यौहार हर साल कुछ दिन पहले आते हैं. मसलन रमज़ान कभी गर्मी के मौसम में, तो कभी सर्दी के मौसम में आते हैं. रमज़ान साल-दर-साल सर्दियों की तरफ़ जा रहे हैं.  

 

(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)