Ram is present in Japan in the form of 'Tamawaka' and 'Momotara', the film has been made.
मलिक असगर हाशमी
जापान में ‘होबुत्सुशु’ और ‘सैम्बो-एकोटोबा’ सबसे लोकप्रिय संस्करणों से एक है.‘बोनटेनकोकू के नाम से जाने जाने वाले एक अन्य संस्करण में, तमावाका (भगवान राम) को एक बांसुरी वादक के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपनी पत्नी हिमेगिनी (सीता) को बचाता है, जिसे राजा बारामोन (रावण) ने बंदी बना लिया था.’
जापान के इतिहास को संग्रहित करने वाले क्लियो क्रोनिकल्स ने 4 अगस्त 2020 को ट्वीट कर यह बताने की कोशिश की थी कि दुनिया में रामायण के मौजूद तकरीबन 300 संस्करणों में एक यह भी है. रामायण के एक अन्य जापानी संस्करण में ‘मोमोटारो’ को भगवान राम बताया गया है.
जापानियों में राम और सीता इस हद तक लोकप्रिय हैं कि इनपर 1993 में करोड़ो रूपये खर्च कर एक जापनी फिल्म भी बन चुकी है, जिसके पीएम मोदी भी कायल हैं. मोमोटारो प्राचीन जापान के नायकों में रहे हैं. जापानी इतिहास के अनुसार मोमोटारो की कहानी रामायण से काफी मिलती जुलती है.
दावा है कि उनमें भगवान राम जैसी ही विशेषताएं हैं. वह महान माता-पिता से पैदा हुए. उन्होंने दानव द्वीप या लंका की यात्रा की. जापानी संस्कृति के अनुसार, मोमोटारो लंका की यात्रा करते हैं. उसके साथ एक बंदर, एक कुत्ता और एक तीतर होते हैं. जहां बंदर हनुमान का प्रतीक है, वहीं तीतर जापान का प्रतीक है और मोर परिवार से संबंधित.
जापान की प्राचीन कथा में इस बात का जिक्र है कि बंदर भगवान हनुमान से मिलता जुलता है. जैसे राम और हनुमान ने रावण को हराया और मोमोटारो ने दानव द्वीप के राक्षसों को हराया. रास्ते में, उन सभी को इस कठिन परीक्षा से बचने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है. जरूरी ताकत पाने के लिए वे बाजरे के लड्डू खाते हैं. बाजरे के लड्डू भारत और जापान दोनों का पसंदीदा खाद्य पदार्थ है.
राम और मोमोटारो दोनों को बुराई का नाश करने वाला माना जाता है. जबकि इससे पहले बुराई को नष्ट करने का जापानी प्रतीक आड़ू था. दूसरी ओर, राम विष्णु का एक रूप हैं जो बुरी संस्थाओं के विनाशक हैं. जापान में ऐसे कई रूपांकन हैं जिसमें मोमोटारो को दानव द्वीप की यात्रा को दर्शाया गया है. इसके अलावा, लगभग इन सभी रूपांकनों में बंदर की उपस्थिति भी है.
मोमोटारो की कहानी का संबंध रामायण से है या नहीं, यह कहना मुश्किल है. बावजूद इसक राम और इनके बीच कई समानताएं हैं. जापान की स्थिति यह है कि वहां का जो व्यक्ति बचपन से इस पौराणिक कथा पर विश्वास करता रहा है, उसके लिए समानताओं को नजरअंदाज न करना कठिन है. भारत और जापान बेशक सांस्कृतिक तौर पर एक दूसरे से अलग हों लेकिन ये कहानी इन दोनों के बीच एक अनोखी कड़ी जरूर है.
चाहे किसी बहाने सही जापानियों की राम और रामायण के प्रति लगाव को देखते हुए ही जापानी भाषा में ‘ रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ के नाम से एक फिल्म बन चुकी है. इस फिल्म का निर्माण करोड़ो रूपये खर्च कर कोइची सासाकी, राम मोहन और यूगो साको ने 1993 में किया था.
अलग बात है कि 1997 में जब यह फिल्म भारत में रिलीज हुई तो बुरी तरह पिट गई. पिछले कुछ वर्षों में रामायण की महाकाव्य कथा पर कई फिल्में और शो बनाए गए हैं. हालाकि, दावा किया गया है कि जापानी फिल्म, रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम, वाल्मिकी के महाकाव्य का सर्वश्रेष्ठ रूपांतरण है.
यह फिल्म 1993 में जापानी सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी, जबकि भारत में यह सीमित स्क्रीनों पर रिलीज होने के बावजूद इसके काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम के निर्माण पर 6.7 मिलियन डाॅलर खर्च हुए थे.
जापानी एनिमेटर यूगो साको को रामायण पर फिल्म बनाने का विचार तब आया जब वह 1980 के दशक में भारत आए थे. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 60 से अधिक बार भारत की यात्रा की और भगवान राम की कहानी को बड़े पर्दे पर लाने की अपनी खोज में अपने जीवन का एक दशक और 13 मिलियन डॉलर से अधिक समर्पित किया.
जब साको 1985 में पहली बार भारत आए, तो उन्होंने एक वृत्तचित्र, द रामायण अवशेष, फिल्माया, जो अयोध्या के पास एक पुरातात्विक खुदाई के बारे में था. यही वह समय था जब वे पहली बार भगवान राम की कहानी से परिचित हुए. उन्होंने महाकाव्य कहानी को एक फीचर-लेंथ फिल्म में सारांशित करने के लिए राम मोहन और लगभग 450 कलाकारों के साथ काम किया. मोहन को भारतीय एनीमेशन का जनक माना जाता है.
यह बताते हुए कि उन्होंने इस महाकाव्य को एनिमेटेड फिल्म में क्यों बनाना चाहते थे, यूगो ने एक बार कहा था, क्योंकि राम भगवान हैं, मुझे लगा कि उन्हें एक अभिनेता के बजाय एनीमेशन में चित्रित करना सबसे अच्छा होगा.
दूसरी ओर, दिवंगत राम मोहन की पत्नी शीला राव ने बताया कि सको इस तथ्य से प्रभावित थी कि एक विशाल महाकाव्य जो देवताओं और लोगों, पक्षियों और जानवरों और जादुई औषधि और युद्ध के साथ एक महान कहानी भी थी.
फिल्म ने जापान में अच्छा प्रदर्शन किया था. मगर 1997 में भारत में इसे खास प्रतिक्रिया नहीं मिली. फिल्म सीमित स्क्रीन पर रिलीज हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दर्शकों को आकर्षित करने के लिए फिल्म की मार्केटिंग ठीक से नहीं की गई.
कहा जाता है कि रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम को 2022 में एक नया जीवनदान मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान का दौरा किया और कार्यकारी निर्माता अत्सुशी मात्सुओ और योशी से मुलाकात की. जब पीएम नरेंद्र मोदी भारत लौटे तो उन्होंने मन की बात में फिल्म के बारे में बात भी की.
कहा, हमसे हजारों किलोमीटर दूर जापान में रहने वाले लोग, जो हमारी भाषा नहीं जानते, जो हमारी परंपराओं के बारे में ज्यादा नहीं जानते, उनका हमारी संस्कृति के प्रति समर्पण, ये श्रद्धा, ये सम्मान, बहुत प्रशंसनीय है.कौन भारतीय नहीं होगा जो उस पर गर्व न करें.